Bhushan Kumar

Children Stories Classics

4  

Bhushan Kumar

Children Stories Classics

दृढ़ निश्चय

दृढ़ निश्चय

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विद्यालय में सब उसे मंदबुद्धि कहते थे. उसके गुरुजन भी उससे नाराज रहते थे क्योंकि वह पढने में बहुत कमजोर था और उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी कम था.

          

कक्षा में उसका प्रदर्शन हमेशा ही खराब रहता था. और बच्चे उसका उपहास उड़ाने से कभी नहीं चूकते थे. पढने जाना तो मानो एक सजा के समान हो गया था, वह जैसे ही कक्षा में घुसता और बच्चे उस पर हंसने लगते, कोई उसे महामूर्ख तो कोई उसे बैलों का राजा कहता, यहाँ तक की कुछ अध्यापक भी उसका उपहास उड़ाने से बाज नहीं आते. इन सबसे परेशान होकर उसने स्कूल जाना ही छोड़ दिया.

          

अब वह दिन भर इधर-उधर भटकता और अपना समय नष्ट करता. एक दिन इसी तरह कहीं से जा रहा था , घूमते-घूमते उसे प्यास लग गयी. वह इधर-उधर पानी खोजने लगा. अन्त में उसे एक कुआँ दिखाई दिया. वह वहां गया और कुएँ से पानी खींच कर अपनी प्यास बुझाई. अब वह बहुत थक चुका था, इसलिए पानी पीने के पश्चात् वहीं बैठ गया. 

          

तभी उस की दृष्टि पत्थर पर पड़े उस निशान पर गई जिस पर बार-बार कुएँ से पानी खींचने के कारण से रस्सी का निशान बन गया था. वह मन ही मन सोचने लगा कि जब बार-बार पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर भी रस्सी का निशान पड़ सकता है तो लगातार परिश्रम करने से मुझे भी विद्या आ सकती है. उसने दृढ़ निश्चय कर फिर से विद्यालय जाना आरम्भ कर दिया.

          

कुछ दिन तक लोग उसी प्रकार उसका उपहास उड़ाते रहे पर धीरे-धीरे उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने भी उसे सहयोग करना आरम्भ कर दिया. उसने मन लगाकर अथक परिश्रम किया. कुछ वर्षों पश्चात् यही विद्यार्थी संस्कृत व्याकरण के प्रकाण्ड विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुआ. इन्होंने महापंडित भट्टोजि दीक्षित जी से शिक्षा ग्रहण की.

          

शिक्षा:-

हम अपनी किसी भी कमजोरी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, बस आवश्यकता है दृढ़ निश्चय, कठिन परिश्रम और धैर्य के साथ अपने लक्ष्य के प्रति स्वयं को समर्पित करने की।



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