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Sunita Mishra

Drama

4  

Sunita Mishra

Drama

ज्ञान की गागर

ज्ञान की गागर

3 mins
340

यशोधरा, मेंरी देवरानी, कान्वेंट की पढ़ी, सुन्दर, नौकरी करती आधुनिक महिला। मेरी ससुराल आधुनिक नहीं तो पुरातन पन्थी भी नहीं थी। परिवार में सभी सदस्य परिवार के लिये समर्पित भाव लिये । यशो सुबह आराम से उठती, तैयार हो नाश्ता कर, अपना लंच पैक कर, स्कूटी उठा, अपने ऑफिस चली जाती।

कई बार मां जी ने कहा भी"यशु बेटा, थोड़ा मधु का हाथ बँटा दिया करो रसोई में"उसका जवाब होता"मम्मी जी, मै कभी रसोई में गई ही नहींं, हमारे यहाँ तो खाना नौकर बनाते थे। "मै और मां दोनो ही मिलकर घर की व्यवस्था संभालते थे। छोटी ननद की शादी थी। हम लोगो की व्यस्तता बहुत बढ़ गई।

रिश्तेदारों की व्यवस्था देखना, सब मेहमानों की सुविधा का ध्यान रखना। माँ और मै भीतर की जिम्मेदारी संभाले थे। यशु ने बाहर की साज सज्जा। शादी के सारे वैवाहिक रीति रिवाज होने लगे। यशु हर मंगल कार्य में खुद को अलग अलग ढंग से संवारती। कभी साड़ी, कभी टॉप जीन्स, कभी प्लाजो कुर्ती।

विविध केश विन्यास, विभिन्न आभूषण, सबके आकर्षण की केंद्र बिन्दु। बात बात में ये जरुर बताती की वो कान्वेंट शिक्षित, नौकरी पेशा है। विदाई का वक्त आया। ननद की सास मां से मिलने आई। मां के गले लगकर बोली"बहिन, आपकी बेटी को हमारे घर कोई तकलीफ नहीं होगी। "फिर हँस कर बोली"पर घर के मंगल कार्यों में मै उसे भारतीय परिधान यानी साड़ी में ही देखना पसंद करुँगी। " "वो आपकी इच्छा का अनादर नहीं करेगी। मुझे विश्वास है उसपर "मां से भरे गले से कहा। वे ननद की सास का इशारा समझ गई थी।

ननद को ससुराल से विदा कराकर लाने के लिये, देवर और यशु तैयार हुए, शादी की भागदौड में मां थक गई थी, अस्वस्थ थी । ऐसे में मै उन्हे अकेला नहीं छोड़ सकती थी। यशु मां के पास आई, टॉप जीन्स में थी । शिकायती लहजे में बोली-मम्मी जी देखो न मनोज (देवर का नाम) को। कह रहा है, साड़ी पहिनो। बताईये क्या बुरी लग रही हूँ इस ड्रेस में। मै कल ही खरीद कर लायी हूँ। कितना मन था इसे पहिन कर दीदी (ननद) के यहाँ जाने का"शायद देवर के कानो में, ननद की सास की बात कहीं से पहुंची या उसे ही यशु का इस ड्रेस में बहिन के ससुराल जाना अच्छा न लग रहा हो।

"यशु बेटा, "मां ने प्यार से उसे अपने पास बिठाया, बोली--ये ड्रेस तुम्हे अच्छी लग रही है। पर हर मौके का अपना एक महत्व होता है। इस बात को समझो। केवल पढ़ने और नौकरी कर पैसा कमाने से आदमी ज्ञानी नहीं हो जाता। ज्ञान की गागर को, विनम्रता, सहयोग, सदभाव, सेवा, समय अनुकूलता, प्रेम, संस्कार,

आदि से भी लबालब भरा होना चाहिये। जीवन के रण क्षेत्र में तभी आदमी सफल होकर यश और नाम कमा सकता है। जाओ बिटिया मनोज की बात मान लो।


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