जन्मदिन मनाना है।
जन्मदिन मनाना है।
कोई बहुत पुरानी बात थोड़े ही ना है, कुछ साल पहले ही जब पिंकी बिट्टू और मोहन भैया की शादी नहीं हुई थी तब नीता के दोनों बच्चों के जन्मदिन पर बहुत अच्छा खाना बनता था और सब मिलकर नीता के दोनों बच्चे शानू और मोंटी के लिए खिलौने भी लाते थे और पूरा दिन मौज मस्ती में ही बीतता था।
पाठकगण आपकी जानकारी के लिए बता दूं नीता का विवाह संयुक्त परिवार में मुकेश के साथ हुआ था। उसके परिवार में मोहन, बिट्टू और पिंकी उसके ननद देवर थे। जल्दी ही नीता के भी दोनों बच्चे शानू और मोंटी हो गए थे जो कि पूरे घर के बहुत लाडले थे। उसके उपरांत ननद और देवर के विवाह हुए और सब ने अपनी अपनी नौकरियों के हिसाब से अलग-अलग घर बना लिए। माता जी की मृत्यु के बाद पिताजी भी अक्सर अपने किसी भी बच्चे के पास रहने चले जाते थे।
धीरे-धीरे सब भाई बहनों के भी परिवार बसने लगे। क्योंकि नीता अभी भी पुश्तैनी घर में ही थी और उसने सारे घर को इकट्ठा ही देखा था तो शानू और मोंटी अपने जन्मदिन को सबके साथ ही मनाना पसंद करते थे। शुरू में तो बुलाने पर सारे भाई बहन इकट्ठे हो जाते थे और फिर चलता था गिफ्ट का दौर। अब सब अपने अपने हिसाब से ही बहुत महंगे महंगे गिफ्ट लाने लगे थे। उन सबके बच्चे होने के बाद नीता और मुकेश को भी बच्चों को रिटर्न गिफ्ट भी देना पड़ता था। धीरे-धीरे घर में भी उसकी देवरानियां या ननद भी काम करवाना पसंद नहीं करती थी तो नीता के ऊपर सारे घर का काम भी आन पड़ता था। अब इस तरह से खर्चा भी बढ़ जाता था और हर त्यौहार के बाद शर्मिंदगी भी। आपस में अब एक अलग सी होड़ लग चुकी थी किस-किस का सामान कितना महंगा है। उनके बच्चों के जन्मदिन के लिए भी अब नीता और मुकेश को उतने ही महंगे खिलौने और लेन-देन का व्यवहार करना पड़ता था।
ऐसा नहीं कि मुकेश कम कमाता हो लेकिन क्योंकि पहले सारा घर इकट्ठा रहता था तो मुकेश की कमाई का अधिकतर हिस्सा घर में ही खर्च हो जाता था इसलिए अब खर्चे भी बढ़ गए थे और उनके पास बचत भी कम थी। यही एक कारण था कि वह अब जन्मदिन और एनिवर्सरी जैसे त्यौहार पर सबको बुलाने से कतराने लगे थे। धीरे-धीरे सब की व्यस्तताएं भी बड़ीं और कुछ भी कारण रहे हो अब जन्मदिन वगैरह पर सबका एक साथ इकट्ठा होना लगभग बंद ही हो गया था।
हालांकि शानू के पिछले जन्मदिन पर वह शानू को चिड़ियाघर दिखाने भी ले गए थे लेकिन फिर भी शानू खुश नहीं थी। वह पूरा समय अपने पुराने समय की जन्म दिनों को ही याद करती रही।अभी कुछ दिन बाद फिर शानू का जन्मदिन आना था। मुकेश और नीता ने फैसला किया था कि अबके भी बच्चों को कहीं घुमाने ले जाएंगे लेकिन शानू को इस प्रोग्राम से बहुत खुशी नहीं हो रही थी।
शानू के जन्मदिन पर वह सुबह उठी और अपने नए कपड़े पहन कर तैयार हो गई, तभी डोर बेल बजी तो नीता ने देखा दरवाजे पर मोहन और बिट्टू का परिवार अपने बच्चों के साथ आया था। आते ही उन्होंने दो डोलचियां किचन में रखी। उनमें से एक में छोले थे और एक में बहुत अच्छी मटर पनीर की सुगंधित सी सब्जी थी। थोड़ी देर में पिंकी भी अपने बच्चों के साथ आ गई। घर में फिर से धमाचौकड़ी सी मच गई। पिताजी भी मोहन के साथ ही आए थे। सारे भाई बहन खुशी-खुशी हंस रहे थे कि तभी पिंकी ने कहा भाभी मैं आटा गूंथ देती हूं अब पूरियां बनाकर हम सब बढ़िया पार्टी करेंगे। देवरानी भी हलवा बनाने के लिए रसोई में आ गई।
नीता और बच्चे बहुत खुश थे तभी डाइनिंग टेबल पर बैठकर मुकेश ने कहा यह प्रोग्राम सही है ना अब हम ऐसे ही सब की एनिवर्सरी और बर्थडे पर मिला करेंगे।
नीता को हैरान होता देख मुकेश ने नीता को बताया कि "जब मैं मोहन और पिंकी से फोन पर बात कर रहे थे तो उन्होंने बताया कि करोना कॉल के बाद तो ऐसा लगता है हम लोग बिल्कुल ही अकेले पड़ गए हैं। बिट्टू भी कह रहा था कि अब तो बच्चों के जन्मदिन पर भी वह मजा नहीं आता जो हम सारे इकट्ठे बैठकर खाना खाते थे तब आता था। फिर हम सब ने मिलकर यह प्रोग्राम बनाया है कि प्रत्येक के जन्मदिन पर हम दोनों भाई एक एक सब्जी बनाकर लाया करेंगे। गिफ्ट और रिटर्न गिफ्ट में किसी पर भी भार ना पड़े इसलिए हर एक के बच्चे के जन्मदिन पर ₹500 कैश इस दिए जाएंगे। इस तरह जन्मदिन का मतलब केवल खुशियां मनाना ही रह जाएगा। हम सब अब प्रत्येक के जन्मदिन पर और एनिवर्सरी को मिलजुल कर ही मनाएंगे। आज तो शानू के जन्मदिन पर इतवार है ही, अन्यथा हम मिलजुल कर किसी भी इतवार को ही बच्चों का जन्मदिन मनाया करेंगे।" खाना खाते हुए सारे बच्चे हे हे करके खुशी से चिल्ला उठे।
पाठकगण उसके बाद से अब पूरा परिवार खुशी से जन्मदिन और एनिवर्सरी मनाता है। वास्तव में ही यह जो दिखावे और गिफ्ट की प्रथा चल पड़ी है जिसके कारण आम लोग एक दूसरे से मिलने से भी कतराने लगे हैं, इसका भी इलाज करना जरूरी है ना? आप सब का इस बारे में क्या ख्याल है कमेंट में लिखिए।
