राजनारायण बोहरे

Inspirational

4.5  

राजनारायण बोहरे

Inspirational

जंगल मेरा मायका, पेड़ मेरे नाते

जंगल मेरा मायका, पेड़ मेरे नाते

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               बात छब्बीस मार्च सन उन्नीस सौ चौहततर की है। उत्तराखण्ड प्रांत के जिला चमोली के पहाड़ पर बसे गांव रैणी में सन्नाटा छाया हुआ था क्योंकि गांव के सारे पुरूष लोग चमोली के जिला कलेक्टर कार्यालय में गये थे जहां उन्हें उनकी जमीन लेने के बदले में सरकार की तरफ से उनको मुआवजा बंटने वाला था।

              अचानक चालीस पचास लोगों की एक टोली गांव की तरफ बढ़ती दिखी। सरपंच के घर के बाहर खेल रही एक छोटी सी बच्ची ने देखा कि माथे पर टोपी, बदन में कुर्ता, पजामा और जैकेट पहने पहाड़ी लोगों के साथ बहुत सारे अंजान दिखते लोग गांव की तरफ बढ़े चले आ रहे है। उस बच्ची वनदेवी ने इतने सारे लोग आते देखे तो पहले तो वह डर गयी फिर छिपती छिपाती चट्टानों के पीछे ऐसी जगह पहुंची जहां से होकर वे लोग निकलने वाले थे। वनदेवी ने सुना कि उनमें से ज्यादातर लोग मैदान में रहने वाले लोगों की कोई भाषा बोल रहे थे जिसका मतलब वनदेवी को समझ नहीं आया। हां उसे इतना जरूर दिखा कि उनमें से कुछ लोग पुलिस जैसी वरदी पहने थे और कुछ लोग मैदान में रहने वाले साहब लोगों जैसे नये से पैन्ट कमीज पहने थे। कुछ लोग जो पहाड़ी जैसे दिखते थे उनके हाथों में खूब तेज धार की कुल्हाड़ियां चमक रही थी। इसी के साथ बड़े बड़े रस्से भी कुछ लोगों के कंधे पर लटके हुए थे। वनदेवी को न तो ये लोग डाकू लग रहे थे और न ही चीन की सेना के जवान दिखते थे। वह सोचने लगी कि कौन लोग हो सकते हैं लेकिन उसे कोई बात समझ में नहीं आयी तो वह बिना आवाज़ किये अपनी छिपने की जगह से हटी और झाड़ियों में से छिपती हुयी गांव की तरफ दौड़ पड़ी।

              दौड़ते हुए वनदेवी ने मन ही मन सोच लिया था कि वह सीधे ही गांव की महिलाओं की नेता गौरा देवी के घर पहुंच के अंजान लोगों के झुंड को गांव की तरफ आने की सूचना देगी। जब वह गौरा देवी के घर पहुंची तब गौरा देवी अपने आंगन में बैठीं हुई थी और सामने बैठी आठ दस महिलाओं को पेड़ लगाने के फायदे समझा रही थीं- देखो बहनों, हम सबके जीवन का आधार ये पेड़ होते हैं। पेड़ अपनी जड़ों से पहाड़ की मिट्टी को जकड़ के रखते हैं जिससे पहाड़ों में कटान नहीं होती। आसमान का तेज पानी पेड़ अपने ऊपर रोक लेते हैं जिससे नीचे उग रही दूब नहीं उखड़ती ओर चारों ओर हरियाली बनी रहती है।’’

दौड़ने से थक कर हांफती हुई वन देवी सीधे गौरा देवी की गोद में ही जाकर गिरी और अटकते अटकते बताने लगी कि ऐसा लगता है कोई चालीस पचास बदमाश लोग अपने गांव पर हमला करने आ रहे हैं। एकाएक गौरा देवी उठ खड़ी हुई और सीधे अपने घर की छत पर जा पहुंची जहां खड़े होकर उन्होने चिल्ला कर कहा ‘‘ सब बहने अपने अपने घरों से निकल कर आ जाओ। हमे अकेला देख कर दुश्मन के आदमी हमारे मायके पर हमला करने आ रहे हैं। ’’

              फिर तो पूरे गांव के हर घर के छत या छप्पर पर महिलायें ही महिलायें खड़ी दिखने लगी जो आपस मे एक दूसरे को हौसला बंधा रही थी कि चलो इन हमला करने वालों को अच्छा मजा चखा दें।

              बात की बात में घर घर से महिलाओं का निकलना शुरू हो गया और वे सब की सब गांव से सटे जंगल की ओर दौड़ पड़ी। जंगल के पास पहुंच कर उन्होंने पाया कि गांव में आ चुके आदमियो के उस समूह ने जंगल के कुछ पेड़ों को घेर रखा था और आपस मे सलाह मशवरा कर रहे थे।

              सहसा बहुत सारी महिलाओं को अपने आस पास पाकर वे लोग चौंके।

              तभी शेरनी की तरह दहाड़ती हुई गौरा देवी चिल्लाईं ‘‘ दूर हटो हमारे इन रिश्तेदारों से। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस जंगल में घुसने की ?’’

              सहम गये उन लोगों में से एक आदमी आगे बढ़ा ‘‘ ऐ बहन जी, सरकारी काम में रूकावट मत डालना। तुम्हे पता नहीं है क्या कि सरकार ने इस जंगल के सारे पेड़ नीलाम कर दिये हैं। देखों ये सब वरदी वाले लोग सरकार के वन विभाग के कर्मचारी हैं।’’

              ‘‘ वरदी वाले आदमी संग लाने का मतलब ये है क्या कि तुम मनमाने तरीके से पेड़ काटने लग जाओगे।’’ गौरा देवी ने आगे बढ़ रहे आदमी से चिल्ला कर कहा।

              ‘‘ देखो बहन जी तुम बेकार में हमारा समय खराब कर रही हो। हमे ये पेड़ तो हर कीमत पर काट गिराना है। इन पेड़ों की मुंहमांगी कीमत मिली है सरकार को। हमने अपना खजाना लूटा दिया इन पेड़ों पर। सो हम छोड़ेंगे नहीं।’’ वो आदमी फिर चिल्लाया।

              गौरा देवी ने अडिग होकर कहा ‘‘ देखो भले आदमी, ये पेड़ तो तुम कभी नहीं काट पाओगे। ’’

              ‘‘ ये सरकारी पेड़ हैं बहन जी , आपके पिता जी के पेड़ नहीं है।’’ अब उस आदमी ने गौरा देवी को अपमानित करते हुये डांटना शुरू किया था।

              ‘‘ ये जंगल हमारा मायका है और ये पेड़ हमारे नातेदार। अगर ये पेड़ कट गये तो न हमारे घर बचेंगे न खेत। सब मिट जायेगा। पेड़ हैं तो हमारे यहां हरियाली है। हम तुम्हें इन पेड़ों से हाथ भी नहीं लगाने देंगे। खबरदार जो किसी ने कुल्हाड़ी चलाई। ’’ उन सब बाहर के आदमियों को डांटते हुए गौरा देवी ने अपने गांव की महिलाओं से कहा ‘‘ क्यों बहनों हमने ठीक कहा? ’’

              ‘‘ हां ठीक कहा ’’ सारी महिलायें गुस्से से कांप रही थीं।

              सहसा गौरा देवी अपनी जगह से उछली और उस पेड़ के पास पहुंची जिसे बाहर से आये मजदूरों ने घेर रखा था। शेरनी की तरह मजदूरों के घेरे के बीच से निकलती हुयी वे पेड़ तक पहुंची और उससे लिपट गयी। फिर तो गांव भर की औरतें एक एक पेड़ से जा चिपकीं।

              मजदूरों और वन विभाग के लोगों को काटो तो खून नहीं।

              गौरा देवी को डांटने वाले आदमी ने अब तक हार नहीं मानी थी। वह फिर चिल्लाया ‘‘ देखों बहन जी सरकारी काम में रूकावट डालने के जुर्म में ये वन विभाग के लोग आपको पकड़ के जेल में डाल देंगे।’’

              पेड़ से चिपकी हुई गौरा देवी चिल्ला रही थीं ‘‘हमको डराने की कोशिश मत करो शहरी बाबू। तुम में हिम्मत है तो चलाओ कुल्हाड़ी, पहले हम मरेंगे फिर ये पेड़ कट पायेंगे। इन वन विभाग वालों से कहो कि अगर इनमें हिम्मत है तो हमे पकड़ के जेल में डालें।’’

              बड़ी आशा से उस आदमी ने वन विभाग वाले लोगेां की तरफ देखा तो उसे लगा कि वन विभाग वाले अपने कदम पीछे की ओर बढ़ाने लगे हैं। उस आदमी की हिम्मत टूटने लगी फिर भी उसने एक और कोशिश करनी चाही , वह बोला ‘‘ आप लोगों के घर वाले आ जाये तो उनसे बात करेंगे। क्योंकि आप लोग कानून को नहीं जानती और कानून अपने हाथ में ले रही हो।’’

              अब तो गौरा देवी को गुस्सा ही आ गया , वे आंखे लाल करके बोली ‘‘ अपनी खैर चाहते हो तो चुपचाप भाग जाओ डरपोक लोगों। हमारे घर वाले आ गये तो तुम्हारी आफत आ जायेगी। ’’

              ‘‘ बहन जी, आपको तो हम लोग जानते हैं। आप तो चण्डी प्रसाद भटट जी और गोविन्द सिंह रावत के साथ सब गांवों में पेड़ों की रखवाली की अलख जगाती घूमती रहती हो। ’’ वन विभाग का एक कर्मचारी हाथ जोड़ कर गौरा देवी से बोला।

‘‘अरे मूरख, फिर भी तुम हमारे पेड़ काटने आ गये।’’ गौरा देवी हाथ जोड़े खड़े उस आदमी को शर्मिन्दा किया।

‘‘ आप बेकार गुस्सा हो रही हो, ये पेड़ तो अब बूढ़े हो चुके हैं । बहुत जूने पुराने पेड़ हैं कभी भी गिर जायेगे और इनके नीचे कोई भी कुचल जायेगा। इन पेड़ों की कटाई के बाद सरकार यहां पर इसी तरह के हजारों पेड़ लगायेगी। ’’ वो कर्मचारी अब भी हाथ जोड़ कर गौरा देवी से विनती कर रहा था ‘‘ मान जाओ बहन जी , इन पेड़ों के लिए काहे को सरकारी काम में रूकावट डाल रही हो।’’

‘‘ सुनो ये वर्दी वाले भैया, अब बहुत देर हो गयी तुम लोगों को यहां। या तो चुपचाप भाग जाओ या फिर चलाओ कुल्हाड़ी और हम सबको भी काट डालो।’’ गौरा देवी ने अब की बार बहुत आराम से अपनी बात कही।

‘‘ हम लोग तो ये सोच कर आये थे ....’’ वह कर्मचारी कुछ कहने की कोशिश कर रहा था कि उसकी बात काट कर गौरा देवी चीख उठी ‘‘ क्या सोच कर आये थे ? बताओ, क्या सोच रहे थे कि आज के दिन गांव भर के मर्द लोग अपनी जमीनों का मुआवजा लेने कलेक्टर के पास गए होंगे सो चुपचाप जाके पेड़ काट लेंगे।’’

वे लोग गौरा देवी के पांवों में झुक के उन्हे ललचाने लगे ‘‘ बहन जी, हम कोई भी उन दस पेड़ों को नहीं काटेंगे जिन पर आप हाथ रख दोगी। बस दया करो और हमे अपना काम करने दो।’’

उसकी बात सुन कर गौरा देवी कुछ कहने वाली ही थीं कि एकाएक चुप हो गयीं और उन लोगों की तरफ से मुंह फेर कर पेड़ से ऐसे चिपक के खड़ी हो गयी मानो उनका कोई भाई बंधु उनके गले लग के खड़ा हो।

पसीना पसीना हो चुके पेड़ कटैया लोग धीरे धीरे एक एक करके जमीन पर बैठने लगे। उनकी समझ में ऐसा कोई रास्ता नहीं आ रहा था जिसे अपना कर वे अपना उल्लू सीधा कर सकें।

उस दिन सूरज अस्त होने तक वे लोग यों ही जमीन पर बैठे रहे और महिलायें यों ही पेड़ों से चिपक के खड़ी रही। अंत में महिलाओं की जीत हुई। वे लोग मुंह पर मलाल लिये अपने घरों को लौट पड़े तो महिलायें आपस में एक दूसरे की तरफ ताकती हुई नये उत्साह से वह गीत गाने लगी जो राजस्थान की अमृता देवी ने पेड़ों को बचाने के लिए गाया था ‘‘ बाम लिया दाग लगे टुकड़ों देवो न दान, सर साठे रूख रहे तो भी सस्तो जान। ’’

वन देवी झाड़ियों के पीछे छिप कर अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी और आरंभ से अब तक की बातें सुन रही थी। दुश्मनों के जाते ही सारी लड़कियाँ बाहर निकल आयीं और गौरा देवी सहित उन सब महिलाओं की जीत पर चिल्ला उठी ‘‘ हो ओ ऽऽऽ’’

पेड़ काटने वाले वापस न आ जायें इसलिए किसी भी महिला ने अपनी जगह नहीं छोड़ी। वन देवी ने गौरा देवी से पूछा -- ‘ताई आप को डर नहीं लगता क्या?’

गौरा देवी ने कहा ‘‘डर तो लगता है बेटी, लेकिन एक एक पेड़ पचास पचास आदमी की जिन्दगी से ज्यादा कीमती है। इन पेड़ों से हमको सांस लेने को आक्सीजन गैस मिलती है। इनकी हरियाली से हमारी आंखें ठीक रहती है। पेड़ जिस जगह होते हैं उसके ऊपर बादल रूक कर खूब सारी बरसात करते है। अगर ये पेड़ नहीं रहे तो हम लोग भी नहीं बच पायेंगे । ये तो हमारे सिर के ऊपर बुजुर्ग की तरह रहते हैं वन देवी। ’’

इतना कह कर गौरा देवी ने बच्चों को एक कहानी सुनाना शुरू कर दी। बहुत पहले की बात है, उन दिनों पूरे राजस्थान में चारों ओर रेत ही रेत उड़ती रहती थी केवल जोधपुर राज्य के खेजड़ली गांव में एक घना जंगल था जिसकी रखवाली इस गांव के सब लोग अपने बच्चों की तरह करते थे। इस गांव में बिश्नोई जाति के लोग रहते थे जिनके संत जंभोजी महाराज ने उन्हे सौगंध दिलाई थी िक वे कभी भी हरा वृक्ष न तो काटेंगे न किसी को काटने देंगे भले ही उनकी जान क्यों न चली जाये। उन्ही दिनों जोधपुर के राजा ने अपना महल बनबाना शुरू किया था तो बाहर ने ईंट बनाने वाले बुलाये गये थे जिन्होंने कहा था कि ईंट तब ही बन पायेगी जब खूब मोटी मोटी लकड़ियां जला कर उनके बीच में ईैंट सजाई जायें। राजा ने अपने सैनिकों को हुकम दिया कि जहां कही भी पेड़ दिखें हाथोंहाथ काटो और उसकी लकड़ी ले कर आआ। सैनिक लोग अपने साथ लकड़ी काटने वाले लकड़हारे लेकर पेड़ों की तलाश में यहां वहां भटकने लगे, लेकिन कहीं पेड़ हों तो लकड़ी मिले। तभी किसी ने उनको सूचना दी कि खेजड़ली गांव में बहुत सारे पेड़ हैं, फिर क्या था सैनिकों की भीड़ खेजड़ली की तरफ दौड़ पड़ी। उस दिन गांव के सारे लोग अपने खेतों पर काम करने गये थे और आज की तरह गांव में केवल महिलायें और बच्चे बचे थे सो सैनिक और लकड़हारे मिल कर गांव के पेड़ काटने की तैयारी करने लगे। उस गांव की एक परोपकारी महिला अमृता देवी को जब ये खबर मिली तो वह अपनी तीन बेटियों के साथ वहां आ पहुंची। उसने अपनी बेटी आसु बाई, भागू बाई और रतनी बाई के साथ पेड़ों के पास खड़े हो कर उन सैनिकों से प्रार्थना करी ‘‘ हे भाई, ये हरे भरे पेड़ इस धरती की शोभा है, हमारे गांव के लिऐ इन पेड़ों से बहुत सारी चीजे मिलती हैं, आप इन्हे मत काटो।’’ लेकिन सैनिकों ने एक न सुनी उन्होने लकड़हारों को इशारा किया तो आगे बढ़ कर पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाने लगे। अमृतादेवी उन लोगों का क्या बिगाड़ सकती थीं, उन्होंने एक बार और प्रार्थना की फिर सीधे जाकर पेड़ों से चिपक के खड़ी होगयी। सैनिकों को इशारा पाकर लकड़हारे नहीं रूके वे पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाते रहे। पेड़ बचाने के लिए अमृता देवी और उनकी तीनों बेटियों ने अपने प्राण त्याग दिये। आस पास के गांवों में यह समाचार आग की तरह फैल गया। जो भी सुनता वह उस जगह जा पहुंचता और पेड़ों की रक्षा के लिये खड़ा हो जाता। एक एक करके तीन सौ तिरेसठ लोगों ने पेड़ बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी। किसी ने जोधपुर के राजा को यह खबर दी तो वे भागे भागे वहां आये और अपने सैनिकों को तत्काल जंगल काटना बंद करने का हुक्म दिया और सबके सामने प्रतिज्ञा ली कि उनके राज्य मे एक भी पेड़ नहीं काटा जायेगा, उनका महल भले ही न बने लेकिन जिस जंगल के लिए बिश्नोई जाति के इन गांव वासियों ने अपनी जान दे दी उस जंगल की हमेशा रक्षा की जावेगी।

वन देवी ने यह किस्सा सुना तो बहुत खुश हो गयी । वह बोली ‘‘ताई इस बात का मतलब है कि भले ही हमे किसी से झकड़ा मोल क्यों न लेना पड़े हमे कोई हरा भरा पेड़ नहीं काटना चाहिये क्योंकि इस पेड़ से पचासों आदमी की सांसे चलती है। ’’

‘‘ हां वन देवी , तुम बहुत समझदार हो। तुम्हारे पिताजी ने इसी लिये तुम्हारा नाम वन देवी रखा है, तुम तो जंगल की देवी हो। ’’

अब वन देवी चौंकी और बोली ‘‘हां ताई हमारा नाम भी तो वन देवी है! आप तो आगे का किस्सा सुनाओ।’’

गौरा देवी सुनाने लगीं ‘‘ वहां का किस्सा तो वहां के जंगलो का था, हमारा किस्सा इन जंगलों का है। सन उन्नीस सौ बासठ में जब चीन ने हमारे देश पर हमला किया था तो इन पेड़ों की ओट में छिप कर उनकी फौज धीरे धीरे आगे बढ़ती रही थी और हमारे देश का बहुत सारा हिस्सा उन्होंने दबा लिया था। हमारे देश के हेलीकाप्टर चीन के सैनिकों को देख नहीं पाते थे जबकि पेड़ों के नीचे छिपे वे लोग हमारी सेना के हेलीकाप्टर पर गोलियां चलाते रहते थे। इसलिए हमारी सेना का बहुत नुकसान हुआ। बाद मे जब लड़ाई बंद हुई तो हमारे देश की सरकार ने बहुत सारे पेड़ काट दिये और बाकी बचे पेड़ों को ठेकेदारों को बेच दिया जिससे वे इन्हें  काट कर मैदान मे रहने वाले लोगो के लिए घर का सामान बनवायें। पेड़ कट जायेगे तो सारे पहाड़ खाली खाली हो जायेगे। इसलिये पहाड़ियों के एक समझदार नेता चण्डीप्रसाद भटट ने जंगल बचाने के लिए हम लोगों को जगाने का काम आरंभ किया है। इस काम मेंउनके साथ गोविंद प्रसाद रावत भी खड़े हो गये । उधर सुंदरलाल बहुगुणा भी पूरे देश में पेड़ बचाने केलिए लोगों को जगाते हुए फिर रहे हैं। इस तरफ के गांवों में उन लोगो ने हमको यह काम सोंपा है। तुम्हे पता नहीं कि सरकार ने हमारे खेतों की बहुत सारी जमीन ले ली है। उसी जमीन के बदले मे रूपया लेने आज तुम्हारे पिताजी और दूसरे लोग चमोली के कलेक्टर के पास गये हैं। ’’

‘‘ अरे सब लोग चमोली से वापस लौट आये ’’ सहसा एक महिला चिललाई।

सबने देखा गांव के लोग तेज कदमों से उधर ही चले आ रहे थे। वनदेवी के पिता ने पूछा ‘‘ गौरा भाभी , आप सब लोग ठीकठाक हो न। किसी का कोई नुकसान तो नहीं हुआ। ’’

‘‘ अरे नहीं भाई, किसी का कुछ नहीं विगड़ा । हमसे डर के हमारे पेड़ों के दुश्मन भाग खड़े हुये। आज तो हमारी बहुत बड़ी जीत हुई है। ’’ कहती गौरा देवी ने पेड़ को छोड़ा और सबके बीच आकर बेठ गयी।

              अगले दिन से यह समाचार चण्डी प्रसाद भटट और गोविंद रावत ने जब यह खबर सुनी तो वे रैणी गांव तक भागे चले आये। उन्होंने  गौरा देवी की बहुत तारीफ की जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगा के पेड़ काटने वालों से लोहा लिया था और आखिरी में उन्हें  धूल चटा दी थी। जल्दी ही यह खबर दिल्ली के एक अखबार मे छपी तो हल्ला मच गया। एक मुँह से दूसरे मुंह होते हुये सारा समाचार गाँव गाँव में फैलने लगा। जो सुनता वह इस जंगल को देखने आता। जंगल को देखने वाले लोग गौरा देवी से मिलने जरूर पहुंचते।

पहाड़ों में गौरा देवी का नाम जंगल की सबसे बड़ी रक्षक के रूप में फैलने लगा। गौरा देवी गांव गांव मे जाकर जंगल बचाने और अधिक से अधिक पेड़ लगाने का प्रचार करने लगी। वे कहती थी कि सरकार के भरोसे क्या क्या करोगे? पेड़ लगाना पूरे समाज की जिम्मेदारी है । हर आदमी को दो चार पेड़ लगाना चाहिये। पुराने पेड़ों को काटने से बचाने की जिम्मेदारी भी हर आदमी की है।

आज भी उत्तराखण्ड राज्य में गौरा देवी का नाम बडे़ आदर के साथ लिया जाता है। उनके द्वारा बढ़ाया गया चिपको आंदोलन अब पूरे भारतवर्ष में फैल चुका है। जहां भी जंगल काटे जाते हैं वहां के लोग पेड़ों से चिपक कर अपनी जान की बाजी लगा देते हैं और इस तरह दुनिया में उन पेड़ों के प्रति अपनी श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं जिनके कारण इस दुनिया में बहुत सारी ऑक्सीजन है, हरियाली है, बरसात है, ढेर सारी लकड़ियां हैं ।

हमे भी पेड़ों की रक्षा के लिए संकल्प लेना चाहिये।

                                                                         






              

              

               

        



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