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Abhishek Yadav

Abstract

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Abhishek Yadav

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"जमाना बदल गया है"

"जमाना बदल गया है"

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लोकतंत्र भीड़ तंत्र हो गया है

स्वतंत्रता सीमित हो गई है 

प्रेम ढोंग हो गया है

गुरु (टीचर) हो गया है


मुस्कुराहट तो अब कम होने लगी है

मनुष्य एक पिंजड़े में बन्द हो गया है।

ना वो छोटे विचारो से निकल पाता है

और ना ही इस छोटे समाज के दायरों से।


अब लोग मित्रता के बदले काम वाली मित्रता

प्रेम के बदले दिल्लगी का ढोंग करने लगे हैं।

अब इस दौर में वो बात कहा जो

आंखों को समझ लेता था

मित्र, मित्र के लिए जान देता।


अब वो दौर कहा की लोग सिद्दत से प्रेम पत्र लिखे

अब वो दौर कहा है कि लोग चाय

पर बैठ कर चर्चा करे 

सामाजिक एवं ज्वलंत मुद्दों की।


अब वो दौर कहा जब खेल

दिखाने वाले को लोग देखें

लोगों की जिंदगी ही एक

बड़ा खेल हो गई है।


"जमाना बदल गया है

साहब कुछ तो खयाल कर

पहले इस्तेमाल कर फिर विश्वास कर।"


ये जमाना बड़ा मतलबी सा लगता है गालिब

यहां आवाज उठाने पर जबान काट दी जाती है।

उस ज़माने में जो उस दौर में भक्ति थी

इस ज़माने में अंधभक्ति हो गई।


जमाना बदल गया जिम्मेदार कौन है

इस गनीमत का असली हकदार कौन है

आवाज आती है तुम्ही ने तो बर्बाद किया

अब कहते हो जमाने में इतने रंग क्यों हैं।


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