ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा
ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा
मनाली की सुंदर वादियां,,
एक नवयुवक ऊंची पहाड़ी की ओर चला जा रहा है तभी एक बुजुर्ग ने उसे टोकते हुए कहा कि बेटा मैं भी तुम्हारे साथ ऊपर पहाड़ी तक चल सकता हूं,ऊपर पहाड़ी से नजारा देखने का बहुत मन है लेकिन अकेले हिम्मत नहीं हो रही क्योंकि तबियत ठीक नहीं रहती,बीच में किसी सहारे की जरूरत पड़ गई तो किसे ढूंढता फिरूंगा ।
उस नवयुवक ने संकोचवश कहा___"ठीक है अंकल।"
"वैसे बेटा,नाम क्या है तुम्हारा?"उन बुजुर्ग ने पूछा ।
"अधीर!!अधीर श्रीवास्तव नाम है मेरा",उस नवयुवक ने जवाब दिया ।
"और मैं वृंदावन लाल चतुर्वेदी, यहां बस घूमने आया था,घूमने क्या ?मनोस्थिति अच्छी नहीं थी,उसे ही ठीक करने आया था", चतुर्वेदी जी बोले ।
"जी, बहुत बढ़िया",अधीर बोला ।
"और सुनाओ,क्या करते हो", चतुर्वेदी जी ने पूछा ।
"बस, कुछ नहीं",अधीर दुखी होकर बोला ।
"ऐसी भी क्या निराशा,अभी बहुत जिंदगी पड़ी है, बहुत कुछ होता है जिंदगी, ऐसे निराश होकर थोड़े ही बैठते हैं", मिस्टर चतुर्वेदी ने अधीर से कहा ।
"सच,बताऊं अंकल, मैं यहां ऊंची पहाड़ी से आत्महत्या ही करने जा रहा था लेकिन आप मिल गए",अधीर बोला ।
"ऐसा भी क्या? प्रेम में असफल हुए हो या फिर और कुछ", मिस्टर चतुर्वेदी ने पूछा ।
"ऐसा कुछ नहीं है,अंकल!! मां बाप बहुत गरीब थे, बड़ी मुश्किल से पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाया, फिर मुझे बहुत अच्छी नौकरी लगी, मैं ने पैसा भी बहुत कमाया,एक अच्छी सी लड़की से शादी की और अब एक प्यारी सी बेटी का बाप हूं लेकिन मैं उन पैसों से संतुष्ट नहीं था इसलिए मैने अपना खुद का व्यापार शुरू किया, शुरू शुरू में तो बहुत मुनाफा हुआ लेकिन बाद में बहुत घाटा लगा और अब सब बिक चुका है जिस घर में हम सब रहते हैं उस घर की कल नीलामी है इसलिए आत्महत्या करने की सोच रहा था, मैं कैसे अपने माता-पिता, पत्नी और बच्चे को बेघर देख सकता हूं",अधीर बोला ।
"बस, इतनी सी बात बेटा ।"
"घर नहीं होगा,तो सब चला लेंगे लेकिन तुम नहीं होंगे तो कोई नहीं चला पाएगा, मुश्किलों का सामना करना सीखों, जिंदगी दोबारा नहीं मिलती, मुझे ही देख लो इकलौता बेटा था मेरा, नौकरी करने के लिए ज्वाइन करने गया था, पता नहीं ट्रेन से उतरते वक़्त सर के बल गिर पड़ा और वहीं मृत्यु हो गई, पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हुआ है फिर मानना पड़ा लेकिन मैं ने जीना तो नहीं छोड़ दिया, तुम्हारी आंटी की खातिर जी रहा हूं इसलिए उसको यहां घूमाने लाया था कि उसे कुछ अच्छा लगे, अभी तो होटल में ही, मैं ने कहा भी कि चलो बाहर लेकिन नहीं आई, इतना दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही है बेचारी", चतुर्वेदी जी बोले ।
"सॉरी!! अंकल! अब ऐसा कभी नहीं सोचूंगा,सच कहा आपने जिंदगी एक ही बार मिलती है, मुश्किलें तो आती रहती है,अब आगे से कभी भी उदास नहीं हूंगा, आखिर पतझड़ के बाद ही तो बहार आती है",इतना कहकर अधीर ने चतुर्वेदी जी के पैर छू लिए और उन्होंने उसे गले से लगा लिया ।
समाप्त___
