जिंदगी क्या कहे तुझसे
जिंदगी क्या कहे तुझसे


हर तरफ एक खौफ है कि न जाने क्या होगा ? यह कैसी लाईलाज बीमारी फैली है ।जिसमें हम अपनी आंखों के सामने अपने बीमार रिश्तेदारों की सेवा भी नहीं कर सकते ।
क्या सोचता है इंसान और क्या कुछ वक़्त दिखाता है यह सब चीजे सोच से बहुत दूर की बात है कि बच्चे ख्याल रखेंगे। यही सोच कर घर गृहस्थी बसाता हैं इंसान। लेकिन क्या होना है इसका अंदाजा भी नहीं होता ।
तो आज ही क्यों न जी लेे हम जो सांसे बची है उनका सही इस्तेमाल करें और अपना कर्तव्य निभाते हुए और रब का शुक्रिया करते हुए जिए जितना जीवन बचा है ।