फ़र्ज़
फ़र्ज़
नहीं नहीं जाएगी तू मायके के कर मम्मी ने लबी को फोन किया की तेरी भाभी मुझसे लड़ रही हैं ।ओर मुझे फोन देकर कहा कि तुझसे बात करेगी लाबी मेरे फोन पकड़ते ही आवाज़ अाई क्यों तंग कर रही है उल्लू की पठी , मैं सुन कर सनन सी रह गई कि मैं इसकी बढ़ी भाभी हूँ ।
मैं कुछ बोलू इससे पहले ही फोन कट गया था ।
मैं इन सबके सामने कभी रोई नहीं । हां अंदर से नफ़रत भर्ती का रही थी ।अगले दिन जोकि मुझे पता था कि सुन्नी आएगी तो अाई और बोलने लगी कि तू क्यों घर में कलेश करती हैं ।
मैंने उनसे कहा कि आप को किसने भी कहा है आप मुझे भी तो सुनो ।मैंने बताया कि राखी है तो सब बुला रहे है क्योंकि मै सिर्फ साल में एक बार ही जाती हूँ तो मैंने जाने कि इजाजत मांगी थी और इन्होंने मना किया तो मै नहीं गई बात खत्म हो गई लेकिन मम्मी तो आप दोनों बहनों को मेरे बारे में कुछ भी बोलते हैं और आप बिना सोचे समझे आ जाते हो मुझे समझाने ।
तो सुन्नी ने कहा कि वो बूढ़ी हो गई है तो किससे कहेंगी अपनी बात इसलिए हमे फोन करती हैं ।मैंने कहा तो ठीक है करें लेकिन आप तो देख रहे हों की कहीं नहीं जाती मै इनको छोड़ कर ।ओर फिर आप दोनों भी मुझे ही सुना कर जाओगे तो मैं कैसे जी पाऊंगी । मैं भी तो किससे कहूँ अपने हालात सिर्फ सेवा करती हूँ और आप सबकी नज़रों से गिरती भी जाती हूँ ।
मम्मी का यह व्यवहार हम बच्चों में दूरी बड़ा गया जब वो कुछ मेरे लिए या घर के लिए कुछ लाती तो मम्मी का एक ही जवाब होता था नहीं इसको कुछ नहीं देना सिर पर चढ जाएगी जबकि जानती थी कि उनका अपना बेटा यानी मेरा पति कुछ कमाता नहीं था और खुद सब कुछ बेटियों के लिए करती थी मेरे लिए साल का एक सूट लाती थी वो भी तब जब बेटियों को भर भर कर देती थी तो यह सोच कर की कहीं मेरी बेटियों
को देख कर तू जले नहीं इसलिए लाई हूँ तेरे लिए भी ।उनका ऐसा बर्ताव देख कर भी मैं अंदर ही अंदर घुटती फिर भी अपना फ़र्ज़ निभाती रही ।
एक दिन पता चला कि उनको छाती में कैंसर है और एक छाती काट देनी पड़ी ।तो फिर सारा दिन मैं घर का काम भी देखती थी और अस्पताल में उनके साथ रुकती भी थी ।
डॉक्टर ने बताया कि ज्यादा नहीं जायेंगी ।लेकिन मैंने हमेशा उन्हें अपना कहा था तो उनकी बेटियां ऑपरेशन के बाद घूमने चली गई और मैं पूरे दो महीने उनके साथ हॉस्पिटल में रही ।जब घर लाई उन्हें तब गले लगा लिया और माफ़ी मांगते हुए बोली कि मैंने तेरा बहुत दिल दुखाया है मुझे माफ़ करदे ।ओर मुझे गले से लगा लिया यह कहते हुए की मैंने तेरे साथ क्या किया और तूने कभी मेरा साथ नही छोड़ा ।तो मैंने कहा मम्मी जी अगर आप यह सब नहीं भी कहते तो भी मै अपना फ़र्ज़ कभी नहीं भूलती ।आप मुझे बेटी न मानो लेकिन मेरी मां आप है हो । उस वक़्त उनके मुंह से को शब्द निकले वो मै आज भी याद करके उनका प्यार अपने लिए महसूस करती हूँ । उन्होंने कहा कि (भले ही मैंने तुझे जन्म नहीं दिया लेकिन बेटी तो मेरी तू ही है ।) उस ऑपरेशन के दस साल बाद उनको brain ट्यूमर भी हुए तब को उन्होंने अपनी बेटियो का व्यवहार देखा कि सिर्फ घर गहने और पैसे का प्यार ही था तबसे उन्होंने मेरा बहुत सम्मान किया । डॉक्टर भी हैरान होता था कि कैसे इतना साफ रखते हो जबकि पोट्टी और ऊलट्ट करते रहते थे बिस्तर पर ही ।
बस यही उनका आखरी दिनों का प्यार मुझे मिला और सामान बेटियों को । जबकि जीवन जीने के लिए सामान कि जरूरत मुझे थी लेकिन मै उनके कुछ महीनों की खुशी जो आशीर्वाद के रूप में मुझे मिली को अपने जीवन भर की कमाई समझती हूँ ।
आज हमारे पास कमाई का साधन थोड़ा है लेकिन खुशी भरपूर है ।