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sai mahapatra

Drama

3  

sai mahapatra

Drama

जाती

जाती

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आपको अपनी ज़िन्दगी में कई लोगों के साथ बात करने का या मुलाकात करने का मौका मिला होगा। ठीक उसी तरह मैं आज आपको अपनी इस कहानी के माध्यम से ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई से अवगत कराना चाहता हूं।


एक गांव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम था हरी और दूसरे का नाम था जदुराम, पर दोनों की जाती अलग अलग थी। एक था (हरी) ब्राह्मण तो दूसरा था धोबा या धोबी (हरिराम)।


इन दोनों की दोस्ती को पूरे गांव में पसंद नहीं करते थे। पर ये दोनों उसकी परवाह नहीं करते थे। दोनों साथ मिलकर स्कूल जाते थे और साथ मिलकर टिफिन भी खाते थे।एक दिन उस गांव के एक व्यक्ति ने उन दोनों को खाना खाते हुए देख लिया और उसने जाकर नदी में नहाते हुए अपने दोस्त से कहा, “जानते हो मैंने हरी और जदुरम को साथ खाना खाते हुए देखा है और ये बात मैं सबसे पहले तुमको बता रहा हूं तुम और किसी को कहना मत।”


वो व्यक्ति जाकर अपने दोस्त को कहता है, “जानते हो मेरा दोस्त कह रहा था की उसने हरी को खाना पकाते हुए और जदूराम को खाना खाते हुए देखा है...” और वो व्यक्ति जाकर अपने दोस्त को कहता है, “जानते हो मुझे मेरा दोस्त कह रहा था की उसने हरी को जदूराम के जूते पोलिश करते हुए और खाना खिलाते हुए देखा है।”


तब किसीने जाकर हरी के मां-बाप को जाकर यह कह दिया की हरी जदूराम के जूते पोलिश कर रहा था। तो हरी के मां-बाप उसको खूब गाली करके, तुमने मेरी नाक काट दी यह कह के हरी का जदूराम से मिलना बंद कर देते है।


एक दिन हरी के पिताजी किसी काम से बाहर गए हुए थे और हरी का स्कूल जाते वक्त क्सिडेंट हो गया, पर जदूराम ठीक उसके पीछे पीछे चल रहा था और उसने हरी की हालत देखकर अपने कुछ सहपाठियों के साथ मिलकर हरी को हॉस्पिटल लेकर गया और उसे अपना खून देकर उसको ठीक करके सही सलामत घर लाया। जब हरी के पिताजी वापस आए तो हरी के मुंह से सब बात सुनकर जदुराम को बुलाकर उसका शुक्रिया अदा किया और फिर से जदुराम और हरी दोस्त बन गए।


इस कहानी से हमको दो चीजें सीखने को मिलती है - एक कान सुनी बात पर यकीन नहीं करना चाहिए और सबसे बड़ा जाती इंसानियत की होती है और उसके सामने कोई जाती का कोई मूल्य नहीं होता है।


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