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Vivek Agrawal

Tragedy Crime Inspirational

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Vivek Agrawal

Tragedy Crime Inspirational

जागीरी

जागीरी

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"मैं टट्टी साफ नहीं करूंगी..."

लाल सुर्ख साड़ी पहनी, मांग में लाल सुर्ख सिंदूर और माथे पर बड़ी सी लाल सुर्ख बिंदी सजाए 15 साल की छोटी सी काली ने ऐलानिया कहा।

रंगत की ऐसी गोरी कि मैदा की बोरी शरमा जाए, मां ने नजर ना लगे, नाम काली धर दिया। कल रात ही भंगियों की बस्ती में काली ब्याह के आई है। आज सुबह सास-जेठानी ने जब काम पर चलने को कहा, तो पता चला कि काम यानी दूसरों के घरों से मैला साफ करना होगा।

"ये हमारी जागीरी है... यही हमारा काम है... मेरी दादी करती थी... मां करती है... तू भी करेगी..." दारू के भभके उड़ाता मरद चीखा।

बेचारी काली ने पीहर में ये काम कभी देखा न था, सब मजदूरी करते और खाते हैं। इस घर में सारी औरतें सुबह पांच से दोपहर तीन बजे तक जागीरी काम करती हैं, सारे मरद दारू पीकर मठियाते हैं। ये कैसे घर ब्याह दिया बाबूजी ने !

महीनों की मशक्कत के बाद जागीरी से साथ जी बैठा। ठाकुरों की बस्ती में रोज टोकरे में भर कर मैला उठाती। पहले पाखाने पर राख फेंकती, पतरों से उठा कर टोकरे में भरती, सिर पर उठा कर दो किलोमीटर दूर फेंकने जाती।

जागीरी की उजरत ! हर घर से दो बासी रोटियां घरवालियां 'डालतीं' और महीने के दस रुपए। वार-त्योहार 'परोसा' भी मिलता, जिसमें बचा हुआ दावत का खाना, पुराने कपड़े। इस जागीरी ने काली को छुतहे रोग दे दिए। हर वक्त सिर से पांव तक खुजाती।

एक दिन एनजीओ वाले आए, तो उन्होंने काली के 'कान भर' दिए। पहले तो काली ने पुरखों की जागीरी छोड़ने पर ऐतराज किया, सारी औरतें भी उसके साथ रहीं। कुछ दिनों में काली का मन बदल गया। एनजीओ वालों ने उसे कहा कि आसपास उसके लायक खूब काम है, वे मदद करेंगे। मरद को काली ने बताया तो बिफर गया। खुद कूटा, सास-जेठानी से भी पिटवाया। काली ना मानी। अब घर से निकालने की धमकी आई। काली ना मानी। उसने जागीरी पर जाना बंद कर दिया। सास ने खाना देना बंद कर दिया। बस्ती वालों ने काली को धमकाया कि भंगन है, वो ही काम कर। हमारा मैला तू नहीं तो कौन उठाएगा ? काली ने अनसुनी कर दी। उसे लड़कों ने पीटा। काली ना मानी।

काली ने मजदूरी शूरू की। फसलें काटीं, छप्पर छाए, कुंए की मिट्टी निकाली, सड़क पर मुरुम डाली, पत्थर तोड़े, ईंटें ढोईं, हर दिन पचास-सौ कमा कर लाने लगी। मरद ने रोज के सौ-पचास लाती काली को देखा, तो बदल गया। काली ने बाकी औरतों की जागीरी भी छुड़वा दी। भंगी बस्ती में सारी औरतों ने जागीरी छोड़ दी। जिन घरों में कल तक जागीरी करती थी, उन्हीं घरों के सेफ्टी टैंक और पक्के पाखाने बनाने का काम काली ने किया।

देश की आजादी के बाद सारे राजों-नवाबों-उमरावों की जागीरी चली गई थी, काली की जागीरी अब नब्बे के दशक में खत्म हुई।


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