नरक राज
नरक राज
सत्तो की लाश हाथ में लटकी हुई थी बलकार सिंह के। उसे टकटकी लगाए देखता रह गया। बेचारी दवा तो छोड़ो, दो जून खाने को तरस कर मर गई।
दिल्ली की सड़क पर दो लाशें पड़ी थीं, एक निर्जीव, दूसरी सजीव। आसपास से गुजरते लोग समझ नहीं पा रहे थे कि पथराई आखों से यह बूढ़ा औरत को क्यों घूरे जा रहा है? अब संवेदनाएं ही मर जाएं तो मरे इंसान की परख कोई कैसे कर सकेगा।
बलकार को जब तक होश आया, तब तक दोपहर हो चली थी। जी कच्चा हो गया बलकार का। पहले तो सत्तो के हाथ पीले कर घर लाया तो पांच एकड़ जमीन पर भर खलिहान फसल आ लेती थी। ना जाने किस साईत में एक खुफिया अफ्सर टकरा गया, जिसके बहकावे में वो पाकिस्तान चला गया। देश की सेवा का ऐसा जुनून भर दिया कि वो सत्तो की गोद हरी ना हुई, जासूसी करने पाकिस्तान जा पहुंचा। अफसरान ने क्या कर रखा था, यह तो उसे नहीं पता लेकिन दूसरी ही लांच में पाक रेंजरों के हत्थे जा चढ़ा। फिर अंतहीन यातनाओं के दौर से गुजरते हुए 11 सालों के बाद जब रिहाई हुई और मादरे वतन लौटा तो बलकार खुश हो गया।
पिंड लौटा खेत के कोने में बने घर की हालत खंडहर सी थी, वही खंडहर हाल सत्तो भी मिली। खेत पर किसी और का कब्जा था। पाकिस्तान में उसका जिस्म छलनी होता रहा, यहां धनी बिना औरत का जिस्म पिंड के जबर रौंदते रहे। बेचारी बलकार के लौटने की आस में सब झेलती रही।
बलकार ने जब सब हाल देखा-सुना तो गुस्से से भर गया। सत्तो पर जुल्म करने वालों से बदला तो ले लिए लेकिन सरकारी बाबुओं से हक हासिल न कर सका। बेहिस दिल्ली के बेदिल होने की बातें सुन कर कभी वह मुस्कुरा देता था, आज उससे रूबरू था।
बलकार ने सत्तो को बाहों में उठा लिया। फटी आंखों से उसे देखती सत्तो की आंखों के कोर से बहे आंसू सूख चुके थे। अपनी सत्तो को लिए बलकार सीधा कनाट प्लेस की भीड़ के बीच पहुंचा। एक बच्चे से मांग कर कागज और कलम ली। उस पर कुछ लिखा और काख में दबा कर देश के सबसे बड़े तिरंगे के नीचे जा पहुंचा।
कागज काख से निकाल कर उसने सत्तो के माथे पर चिपका दिया, खुद तिरंगे के खंभे पर चढ़ने लगा। काफी ऊपर जाकर उसने तिरंगे की रस्सी गले में लपेटी, भारत माता की जय का नारा लगाते हुए झूल गया। नीचे खड़े लोग जब तक पुलिस को फोन करते, तब तक तो बलकार का जिस्म धरधराना भी बंद कर चुका था। क्षण भर में कोहराम मच गया। चारों तरफ हाहाकार हो गया। तिरंगे को कोई फर्क न पड़ा, वह शान से जस का तस फहराता रहा। न जाने कितनी लाशों पर लिटपता रहा था, आज कोई उसकी रस्सी से गला बांध कर झूल गया, क्या फर्क पड़ता है।
बलकार की लाश तिरंगे की रस्सी से लीपटी झूलती रही। सत्तो के माथे पर चिपके कागज में लिखी इबारत ने पूरे हिंदुस्तान को पल भर में शर्मसार कर दिया। उस फड़फड़ाते कागज से बलकार का आर्तनाद उभरता रहा- मेरी मौत का जिम्मेदार खुफिया विभाग है, मेरी सत्तो की मौत का जिम्मेदार पूरा हिंदुस्तान है। मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था। पाकिस्तान नहीं मार पाया मुझे, हिंदुस्तान ने मार दिया।