डायन भोज
डायन भोज
रामप्यारी को डायन हुए नौ साल बीत गए। डायन का कलंक उतारने के लिए उसने गांव में पंचों के सामने हाथ-पांव जोड़े। पंचों ने एक राय से डायन शुद्धि का सलीका बताया। पूरे गांव को दाल-बाटी-चूरमे का भोज कराओ।
रामप्यारी का पति तो मर चुका है। घर में भी कोई साथ नहीं। उसने गांव के ही बनिए से कर्जा लिया। जो बनिया उसे दुकान की पेढ़ी नहीं चढ़ने देता, उधार में देसी घी, दाल, आटा, मसाले सब कुछ दिए, बदले गहने लिखवा लिए।
जो लोग रामप्यारी के साए से बचते, उसकी तरफ से आती हवा के रुख से बचते, सारे के चौपाल पर उसका भोज जीमने आए। जिसके देखने भर से टाबर (बच्चा) मर जावे, उसके हाथ का छुआ सारे खाए तो खाए, कुछ तो साथ बांध कर भी ले गए।
न्यौता जीम कर पंचों ने डकार ली। रामप्यारी ने पंचों से आदेश मांगा। मुखियाजी ने कहा कि तू औरत है, तेरा तो मामला औरतें ही सुलझाएंगीं। गांव की बड़ी-बूढ़ियां तेरा प्रसाद लेती हैं, तो हमें क्या। जो औरतें दोनों में दाल के साथ घी भर कर पी चुकिं, बिना कुछ बोले चली गईं। रामप्यारी की आत्मा ने कलप कर सबको श्राप दिया।
ना जी, किसी का बाल बांका ना हुआ। ऐसी भी क्या डायन है रामप्यारी कि इतना कोसा लेकिन एक बच्चा न मरा, एक औरत बीमार न हुई, एक मरद के मरोड़ ना उठा। इससे तो अच्छा होता कि न्यौते में जहर मिला देती।
पहले ही कर्जे में आई रामप्यारी से तीन शुद्धि भोज करवा लिए। तब भी डायन का कलंक ना मिटा।
उस रात न जाने क्या हुआ कि गांव भर के लोगों ने उसे पेड़से बांध कर खूब पीटा। नाई से सिर मुंडवाया। पानी से नहलाया। पंडित ने आकर शुद्धिकरण किया।
रामप्यारी ने दाल-बाटी-चूरमा का शुद्धि भोज भर गांव पांचवीं बार करवाया। इस बार बनिए ने घर का बाड़ा ले लिया। डायन भोज के बाद रामप्यारी की शुद्धि हो गई।
अगली सुबह मंगता की भू (बहू) के चबूतरे पर चींटियां चावल खाती दिखीं।