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जादूगरनी

जादूगरनी

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"फिर क्या सोचा है आपने दादीसा"

बड़ी बिनणी ने अपने सिर पर पल्लू टिकाते हुए उत्सुकता से पूछा।

"अरे, सोचना क्या है ? अभी देखना इस अमेरिका पलट बहू को नानी ना याद दिलाई तो कहना, जादूगरनी कहीं की, मेरे भोले भाले पोते को फँसा लिया।"

तभी नयी बहू ने पूरे साज सिंगार के साथ आकर साथ दादीसा के पैर छू लिए।

अमेरिका पलट बिनणी को पारम्परिक लिबास में देखकर दादीसा मुग्ध सी हो गयी और अचानक ही उनका हाथ बिनणी के सिर पर चला गया। उन्होनें नयी बिनणी को आशीर्वाद दे दिया।

"सदा खुश रहो।"

तभी साथ बैठी दादीसा की सहेली ने उनको कोहनी मारी।

दादीसा फिर से रौब में आते हुए बोली,

"सुन बिनणी, आज थारी पहली रसोई की रस्म है। यह सूची है उसकी, जो भी तुम्हें आज बनाना है,

और हाँ, वो भी अकेले।"

बिनणी ने "जी दादीसा" बोला, और रसोई की राह पकड़ ली।

बिनणी के जाते ही दादीसा की सहेली मुँह पर पल्लू रख कर हँसते हुए बोली,

"देखना, अभी सारा घर जलने की बू से भर जायेगा।"

अभी सब इन्तजार कर ही रहे थे की पूरा घर बेसन की सोधीं सोधीं महक से महक उठा।

नयी बिनणी ने भोजन तैयार कर सबको जीमने के लिये बुला लिया। सब हैरान परेशान थे।

दादीसा सब कुछ चख कर बोली,

"अब तो मुझे पक्का विश्वास हो गया है। तू जादूगरनी ही है।"

दादीसा की बात सुनकर बिनणी मुस्कुराते हुये बोली,

"ना दादीसा यह सब इस मोबाइल की करामात है।"

बिनणी की बात सुनकर दादीसा कुछ देर तक बहुत सारे व्यंजन मोबाइल मे देखती रही। फिर मुस्कुरा कर बोली,

"सुन बिनणी मुझे भी विदेशी खाना बनाना सिखायेगी ना, तेरे दादूसा कहते हैं, हमेशा कुछ नया जरूर सीखना चाहिए।"

"जरूर दादीसा"

कहते हुए नापसंदीदा बिनणी, दादीसा के गले लग गयी। दादीसा की बाँहों का घेरा भी और तंग हो गया था।


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