बुझता हुआ दिया झिलमिला उठा
बुझता हुआ दिया झिलमिला उठा
आज सुबह से रमा जी की बैचनी की इन्तहा नहीं थी जिन्दगी के अस्सी बंसत देख चुकी रमा जी को लगने लगा था अन्त समय अब करीब ही हैजिन्दगी में एक वो दौर था जब भगवान से शिकायत थी की दिन में सिर्फ़ चौबीस घन्टे क्यो होते है ? और अब इस जिन्दगी की ढलती शाम में भी भगवान से शिकायत होती है की दिन में आखिरी चौबीस घन्टे क्यों होते है ?
काश कुछ कम होते वक्त गुजारना सबसे मुश्किल काम था आजकल,
आजकल रोज कभी विदेश जा बसा छोटा बेटा याद आता तो कभी स्काईप पर देखा हुआ पोता शिवाय शिवाय का तो स्पर्श भी उनके नसीब में नहीं थाजब बेटे को बोलती तो वो तुरन्त छुट्टी ना मिलने की बात बताता और अगले साल का वादा कर उन्हें लॉलीपॉप थमा देता था बैगलोंर बसी बिटिया से मिले भी चार साल गुजर गये थे उसके भी ससुराल में सौ झमले थेहर बार बोलती
" जल्दी मिलने आऊँगी मम्मी "
पर उसका जल्दी कभी नहीं आता थावैसे बड़ा बेटा बहू बहुत ख्याल रखते थे पर और सबको देखने को भी बार बार मन मचल जाता था कल रात तो सपना देखा की सब सरप्राइज देने उनसे मिलने आ गये है पर सुबह घर का सन्नाटा मुँह चिढ़ा रहा था अब लगता है सब उसके मरने पर ही आयेगें और घर में चहल पहल होगी काश यह रिवाज जीते जी मिलने का होता बाद में मुझे क्या पता कौन आया कौन गयारमा जी अपने यादों के ज्वारभाटे में उलझी ही थी की तभी बाहर अचानक से चहल पहल बढ़ गयी एक तीन साल का बच्चा सकुचाते हुये सामने आया और तुतलाती हुयी जबान में बोला
",हॉऊ आर यू ग्रेनी ?
रमा जी ने अपनी आँखे मसली और खुद से बतियाते हुये बोली
" लो इस उमर में सठिया भी गयी हूँ मैं रात तो बन्द आँखों से सपना देखा अब खुली आँखों से भी देखने लगी"
तभी उनके कानों में एक बार फिर आवाज टकराई
",हॉऊ आर यू ग्रेनी ?
रमा जी कुछ जबाव दे पाती तब तक उनके सामने छोटा बेटा बहू बिटिया उसका पूरा परिवार और साथ में बड़ा बेटा भी सपरिवार अन्दर आ गये
रमा जी की बगिया के सारे फूल उनकी आँखों के सामने मुस्कुरा रहे थे। तभी रमा जी ने देखा सामने बुझता हुआ दिया एक बार फिर झिलमिलाने लगा था।