जादू की दुनिया : हास्य व्यंग्य
जादू की दुनिया : हास्य व्यंग्य
🪄 जादू की दुनिया 🪄
🤪 इलाहाबादी बकैती मे एक उच्च कोटि का हास्य-व्यंग्य 🤪
✍️ श्री हरि
🗓️ 25.12.2025
अरे भइया, बताई!
ई ज़िंदगी हमरे लिए तो सुर से उतरा हुआ ठुमरी है, पर ऊपर वाले के पास पूरा ऑर्केस्ट्रा बज रहा है। और उसे देख के आजकल लगता है कि दुनिया में जादू ससुर हर जगह फैला पड़ा है। बस, हमार इलाहाबादिया दिमाग समझे का नाम नहीं ले रहा।
अब सुनो ध्यान से—
ई देवीगंज चौराहे से शुरू होती है जादू की दुनिया,
जहाँ खोंटा लगे दूध में भी दुकानिया बोलता है—“भइया, ई तो आपको शुद्ध भैंसिया दूध है। इतना गाढ़ा कि बछिया भी पी के शर्मा जाए।” और उधर हम देख रहे हैं कि भैंसिया खुद खड़ी दुकान पर लाइनों में लगी, कोई ‘मदर डेयरी’ समझ के।
यही तो है जादू का पहला दर्शन—
भैंस को लाईन लगवा देना और ग्राहक को उल्लू बनवा देना!
प्रथम अध्याय: मोहल्ला, जादू और पप्पन गुरु का चमत्कार
अब हमारे मोहल्ले में जादू का असली प्राण है पप्पन गुरु।
नाम पप्पन, उम्र पैंतालिस, नौकरी शून्य, आत्मविश्वास सौ प्रतिशत।
ई पप्पन एक दिन कह रहा था—
“देखौ भैया,
जादू-फादू काहे खोजत हो?
ससुर पूरा सिस्टम ही जादू है।
सरकारी कागज पर जो नहीं है, वही असल में मौजूद रहता है।
और जो दर्ज है, उहिका तो भूत भी न ढूंढ़ पाए।”
सुन के लगा, ई आदमी का चश्मा उसके नाक पे नहीं, दिमाग पे लगा है।
कहता—
“हम पंद्रह साल से बेरोज़गार हैं,
मगर घर में सब मानते हैं कि हम नौकरी पे जा रहे हैं।
ई भी तो जादू है!”
सही कह रहा था।
हर सुबह कंधे पर झोला, हाथ में अख़बार, उसके पीछे पत्नी का डंडा—“जल्दी निकलो वरना मुर्गी भी बेरोज़गार हो जाएगी।”
हम पूछे—
“गुरू, कहाँ जाते हो?”
शांत भाव से बोला—
“घाट पे, गंगा के किनारे।
घंटा भर ध्यान लगाते हैं कि कहीं से नौकरी आए।”
मैं बोला—“आई?”
कहा—“अरे भइया, जब इच्छा की पूर्ति ही जादू मानी जाती है, त अभी ध्यान की पूर्ति हुई है।”
द्वितीय अध्याय: चाची का टपरवेयर और टोटका
हमारी एक पड़ोसिन—सरस्वती चाची, मोहल्ले की ‘जादुई देवी’।
टपरवेयर के डिब्बे से लेकर पड़ोसियों की शादियाँ तक, सबकुछ जादू से नियंत्रित करती।
कहतीं—
“बेटवा, दू रुपए की कोढ़ी लेकर
हर मंगलवार हनुमानजी की मूर्ति के पास दबा देना…
देखना, तेरी किस्मत फटाफट चमकेगी।”
हम दो रुपए की कोढ़ी लेकर गए—
मंदिर के बाहर भिखारी बोला—“भैया, ई हमको ही दे दो, हम से भी भगवान को ही मिलेगा।”
अब हम सोच में—ई कोढ़ी भगवान तक जाए या सीधे भिखारी के पेट तक?
दोनों में जादू था—एक में आस्था , दूसरे में वास्ता।
यही जादू की दुनिया है, जनाब।
जहाँ कर्म और कर्मकांड
ऐसे गड्ड-मड्ड हैं कि
स्वयं भगवान भी कन्फ्यूज हो जाएँ कि किसको फल दें!
तृतीय अध्याय: मोबाइल— जेब में बंद जादूगर
अब जादू तो देखिए मोबाईल में।
ई छोटा डिब्बा आदमी के जेब में रहकर
उसका दिमाग नियंत्रित करता है।
हमरे यहाँ एक रामबाबू हैं—
पहले बीवी के सामने मियाँ बने रहते थे,
अब मोबाईल के सामने सेवक।
बीवी बोले—“चानू, पानी लाना।”
रामबाबू—“अभी लाए…एक मिन्ट…
पहले चैटजीपीटी से पूछ लूँ, पानी पीने का सही समय क्या है।”
अब हमको देख के बोले—
“भइया, ई मोबाईल वाला जादू नहीं तो का है?
पहले लोग भूत-प्रेत से डरे,
अब लोग नेटवर्क-डेटा-ओवर से डरत हैं।”
बहुत बड़ा सत्य!
आज का भूत—बैटरी लो।
आज का प्रेत—लो नेटवर्क गया।
आज का चुड़ैल—टाइपिंग… टाइपिंग… टाइपिंग…
(कमबख्त दो मिनट से जवाब नहीं दे रही।)
चतुर्थ अध्याय: नेता, चुनाव और जादुई वादे
अब राजनीति को मत भूलिए।
ई तो खुद में पूर्ण महामंत्र-तंत्र।
नेता बोले—
“हम आपको सड़के देंगे,
जिनपर चलकर आप विदेश पहुँच जाओगे।”
लोग बोले—“जय हो महाराज!
ई तो हाइवे-टू-हेवेन हो गया।”
एक और नेता कह रहा था—
"हम बेरोजगारी हटाएंगे।
मेहनत की ज़रूरत ही न पड़ेगी।
पैसा अपने-आप खाता में घुसेगा!”
हम बोले—“कइसन?”
कहता—“बस हमको वोट दे दो, बाकी जादू हो जाएगा।”
अब आदमी चुन नहीं पा रहा—
विकास चुने या भ्रम?
या फिर
विकास नाम के भ्रम को जादू समझकर ताली बजा दे?
पंचम अध्याय: प्रेम, व्हाट्सएप और क्यूपिड की फॉरवर्ड लाठी
आजकल प्रेम में भी जादू है।
पहले लोग दिल चुराते थे,
अब डीपी चुराते हैं।
पहले शेरो-शायरी से इश्क शुरू,
अब रिक्वेस्ट भेजो—देखे तो रिश्ता, न देखे तो ब्लॉक।
हमरे मोहल्ले का एक तोता है—टोनी,
जिसके प्रेम पर पूरा इलाका रिसर्च कर रहा है।
कहता—
“देखौ भैया, प्यार में जादू तभी है
जब उसका ऑनलाइन और आपका टाइपिंग… टाइपिंग चल रहा हो।”
एक दिन बोला—
“उसने मेरी स्टोरी देखी।”
हम बोले—“आगे?”
कहा—“बस, अब शादी तो पक्की समझो।”
देखे?
ई है डिजिटल जादू।
मायाजाल।
असली में माया—नेटवर्क और जाल—व्हाट्सएप।
पूरा मायाजाल!
षष्ठ अध्याय: अस्पताल, डॉक्टर और फीस का जादू
अब जादू सबसे ज्यादा यदि कहीं है,
तो डॉक्टर की फीस में।
एक अस्पताल में गए।
बोले—“डॉक्टर साहब, थोड़ा चक्कर आ रहा।”
डॉक्टर ने देखा और कहा—
“नार्मल है, 1500 रुपए।”
हम बोले—“इतना?”
कहा—“ऊपर मशीन में रिपोर्ट देख लीजिए—
सब नॉर्मल दिखेगा।
पर फीस में जादू दिखेगा।”
फीस में जादू सच में था—
रोग गया नहीं, पर रूपया गायब हो गया!
सप्तम अध्याय: विलासपुरी कॉलोनी का जादुई इवेंट
एक दिन मोहल्ले में मेला लगा—
बोर्ड लगा था—“जादू की दुनिया — लाइव शो।”
हम सोचे—“आज तो असली जादू देखेंगे!”
मंच पर आया जादूगर—
टाइट कपड़ा पहने,
आँख में काजल,
मुँह में इलायची।
पहला खेल—रूमाल से कबूतर निकाला।
भीड़ ताली बजाई।
हम बोले—“ई सब तो देखे हैं। नया दिखाओ!”
अगला खेल—
चाकू से लड़की को काटा,
बॉक्स खोला—लड़की गायब!
भीड़—“वाह! वाह!”
हम सोचे—असली जादू तो तब होगा जब दहेज़ प्रथा,
महंगाई, ट्रैफिक, बिजली कटौती और पड़ोसिन की चुगली गायब कर दे।
तभी मंच पीछे से आवाज़ आई—
“तब तो पूरा देश सामने से गायब हो जाएगा भाई!”
अष्टम अध्याय: निष्कर्ष—जादू असल में कहाँ है?
इतना सब देखकर
हमको एक बात समझ आई—
दुनिया में जादू
किसी तिलिस्मी टोपी,
किसी चमत्कारी छड़ी,
या किसी दाढ़ी वाले जादूगर में नहीं है।
जादू है—
मोहल्ले की भाषा में,
डर में छिपी आस्था में,
फ्लिपकार्ट की सेल में,
राजनीतिक वादों में,
बीवी की आँखों के इशारे में (जिनमें जान भी ले सकती हैं),
बच्चे की मुस्कान में,
और बेरोज़गारी के बावजूद पप्पन के आत्मविश्वास में।
जादू है—
भ्रम में भी आशा ढूँढ लेने का हुनर।
हमरी समझ से,
दुनिया एक जादू है क्योंकि
हम सब खुद जादूगर हैं—
अपने-अपने सपनों के,
अपने-अपने झूठ के,
अपने-अपने सच के।
और सबसे बड़ा जादू?
हम आज भी उम्मीद रखते हैं।
तो भइया, ई है हमारी—
“जादू की दुनिया”
इलाहाबादी बकैती में,
उच्च कोटि का हास्य-व्यंग्य।🤪
