पांचों उंगलियां घी में
पांचों उंगलियां घी में
😛 पांचों उँगलियाँ घी में 😛
🤪 एक प्रेरक और मजेदार कहानी 🤪
✍️ श्री हरि
🗓️24.12.2025
एक छोटे से कस्बे मिठासपुर में रहता था बबलू – पूरा नाम बबलू राम प्रसाद, लेकिन सब उसे 'आलसी का राजकुमार' कहते थे। बबलू की दिनचर्या कुछ ऐसी थी: सुबह 10 बजे उठना, चाय पीते हुए सपने देखना कि एक दिन वह इतना अमीर बनेगा कि उसकी पांचों उँगलियाँ घी में डूबी रहेंगी – मतलब, बिस्तर पर लेटे-लेटे नौकर जलेबी खिलाएँ, गुलाब जामुन मुँह में डालें, और पैसा खुद-ब-खुद जेब में आए!
बबलू के पिता चुन्नीलाल जी एक छोटी मिठाई की दुकान चलाते थे – “चुन्नीलाल की कुरकुरी जलेबी और रसीले गुलाब जामुन”। चुन्नीलाल जी सुबह 4 बजे उठते, घी गर्म करते, चाशनी उबालते, और जलेबियाँ इस कदर घुमाते कि देखने वाले कहते, “वाह, ओलंपिक में गोल्ड मिलना चाहिए!” लेकिन बबलू को यह सब देखकर हँसी आती। वह कहता, “पापा, यह क्या जिंदगी है? इतनी मेहनत! कोई लॉटरी लगाओ न, या कोई शॉर्टकट बिजनेस! तब तो पांचों उँगलियाँ घी में!”
चुन्नीलाल जी मुस्कुराते और कहते, “बेटा, घी में उँगलियाँ डुबोनी हैं तो पहले कढ़ाई में हाथ डालना पड़ता है। वरना उँगलियाँ जल जाएँगी!”
एक दिन चुन्नीलाल जी स्वर्ग सिधारे। दुकान बबलू को मिली। कस्बे वाले खुश – अब तो बबलू मालामाल! लेकिन बबलू ने दुकान पर ताला लगाया और बोला, “अब छोटी दुकान नहीं। मैं बड़ा आदमी बनूँगा – बबलू स्वीट्स एम्पायर!”
बबलू शहर गया। वहाँ मिला ठग्गू – नाम से ही लगता था ठग। ठग्गू ने कहा, “यार बबलू, मैं जानता हूँ एक सुपर बिजनेस। हम मिठाई की चेन खोलेंगे – हर गली में ब्रांच, फ्रैंचाइजी! बस 10 लाख लगा, फिर आराम। पांचों उँगलियाँ घी में, बल्कि पूरा हाथ डूब जाएगा!”
बबलू के सपने में घी की नदी बहने लगी। उसने पापा की सारी कमाई ठग्गू को दे दी। ठग्गू बोला, “तीन महीने में पहली ब्रांच। तब तक तू फाइव स्टार होटल में रह, पार्टी कर!”
बबलू ने वैसा ही किया। होटल में रहता, बिरयानी खाता, दोस्तों को बोलता, “अब मैं बिजनेस टाइकून हूँ!” एक दिन तो उसने इतनी मिठाई ऑर्डर की कि वेटर बोला, “सर, आप खा नहीं रहे, तो डुबकी लगा रहे हो क्या?” बबलू हँसा, “बस, प्रैक्टिस कर रहा हूँ – पांचों उँगलियाँ घी में!"
तीन महीने बाद? ठग्गू गायब! फोन बंद, पता नहीं। पुलिस वाले बोले, “यह ठग्गू तो प्रोफेशनल है – 20 लोगों को ठगा!” बबलू के पास अब कुछ नहीं – न पैसा, न घी, न उँगलियाँ! वह कस्बे लौटा तो लोग हँस-हँसकर पेट पकड़ने लगे। एक अंकल बोले, “अरे बबलू, घी में डूबीं उँगलियाँ? लगता है घी ने उँगलियाँ खा लीं!” दूसरा बोला, “शॉर्टकट लिया न? अब तो उँगलियाँ भी शॉर्ट हो गईं!”
बबलू शर्म से पानी-पानी। घर में बंद होकर रोने लगा। माँ बुधिया देवी बोलीं, “बेटा, रो मत। दुकान फिर खोल।”
बबलू बोला, “माँ, अब कैसे? लोग मीम्स बना रहे हैं – ‘बबलू का घी गायब!’”
माँ हँसीं, “तो तू असली घी बनाकर दिखा।”
बबलू ने हिम्मत की और दुकान खोली। लेकिन घी के पैसे नहीं। उधार लिया। पहला दिन – सिर्फ 5 जलेबियाँ बनीं। ग्राहक आया तो बोला, “बबलू, वापस आ गया? पांचों उँगलियाँ कहाँ हैं?”
बबलू ने ड्रामेटिक अंदा पो즈 मारकर कहा, “अंकल जी, अभी तो सिर्फ अंगूठा डूबा है। बाकी चार मेहनत से डूबेंगी!” लोग हँसे और जलेबी खरीदी। स्वाद वही पुराना!
धीरे-धीरे मजा आने लगा। बबलू ने नए-नए प्रयोग किए – जलेबी में चॉकलेट भर दी, गुलाब जामुन को आइसक्रीम के साथ सर्व किया। नाम रखा “चॉकलेटी जलेबी – ठग्गू स्पेशल!” लोग बोले, “क्यों?” बबलू बोला, “क्योंकि यह मीठी है, लेकिन ठगती नहीं!” कस्बा हँसते-हँसते लोटपोट!
एक दिन मेला लगा। दुकान पर भीड़। लेकिन घी खत्म! बबलू पसीना-पसीना। तभी एक बुजुर्ग आए, बोले, “बेटा, घी चाहिए? मेरे पास प्योर देशी है।”
बबलू ने घी लिया, जलेबियाँ तलीं – स्वाद ऐसा कि लोग चिल्लाए, “वाह! स्वर्ग!” बुजुर्ग बोले, “मैं चुन्नीलाल का दोस्त हूँ। तेरे पापा कहते थे – मेहनत का घी सबसे मीठा होता है।”
बबलू रो पड़ा, लेकिन हँसते हुए।
आज बबलू की तीन ब्रांच हैं। वह अभी भी खुद जलेबी घुमाता है। लोग पूछते, “बबलू भैया, अब पांचों उँगलियाँ घी में?”
बबलू हँसकर हाथ दिखाता – घी से चिपचिपे – और बोला, “हाँ भाई, लेकिन अब घी खुद का बना हुआ है। शॉर्टकट वाला घी तो फिसलन देता है, गिरा देता है!”
दुकान के बाहर बोर्ड: “यहाँ घी मुफ्त नहीं, लेकिन मेहनत करने वालों की उँगलियाँ हमेशा डूबी रहती हैं। ठग्गू को थैंक्स – उसने सिखाया कि शॉर्टकट से उँगलियाँ जलती हैं, मेहनत से घी चिपकता है!”
सीख: हँसते-हँसते मेहनत करो, तो जिंदगी सच में मीठी हो जाती है। शॉर्टकट मत ढूँढो, वरना ठग्गू मिलेगा! 😂🍯
