इज़हार (लघु कथा)
इज़हार (लघु कथा)


मोहब्बत तो मुझे उससे पहली नज़र में ही हो गयी थी, फिर भी 16 दिसम्बर का वो दिन बेहद खास था। हम मुम्बई में समुद्र के किनारे बैठे आने वाले कल के सपने बुन रहे थे और समुद्र की उठती हुई लहरें हमारे क़रीब आना चाहती थी। शायद इन लहरों के उतावलेपन को देखकर ज़ोया से भी रहा नहीं गया, वो उठकर उन लहरों तक जाना चाहती थी कि तभी मैंने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया। वो लगातार समुद्र की लहरों को देखे जा रही थी और मैं अब भी उसका हाथ थामे हुए था।
हम प्रकृति के उस रूप और समय के साथ मंत्रमुग्ध थे और आसपास का कौतूहल भी हमें विचलित नहीं कर पा रहा था। चंद मिनटों के बाद ज़ोया मेरी तरफ देखती है और मुझे याद दिलाती है कि मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले रखा है। यह पहली बार था जब मैंने उसका हाथ थामा था, मैंने उसी क्षण ज़ोया को अपने दिल की बात कह दी। मैं उस हाथ को और उस साथ को अब कभी छोड़ना नहीं चाहता था। शायद ज़ोया का दिल भी यही चाहता था और उसी दिन हम दोनों एक बेनाम अटूट बंधन में बंध गए।