NOOR E ISHAL

Inspirational

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NOOR E ISHAL

Inspirational

इतनी सी रौशनी

इतनी सी रौशनी

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"जया ने इतनी ख़राब कहानी लिखी है, कितनी गलतियाँ हैं इसमें.. उसने ये कहानी लिखने की हिम्मत कैसे कर ली.. मुझे बहुत ताज्जुब है इस बात पर .. ले जाओ उसकी ये बकवास कहानी और उससे कह देना कि कभी कहानी लिखने के बारे में सोचे भी ना।"आपा अपने दिल के छाले अच्छी तरह फोड़ चुकी थीं।सिया खामोशी से वहाँ से उठ खड़ी हुई और मेरी लिखी कहानी लेकर वापस आ गयी.

मैं सिया का बेसब्री से इन्तेज़ार कर रही थी.. मैंने आज पहली बार कहानी लिखी थी मेरी नजर में शायद दी ही थीं जो मुझे शाबाशी देती, हौसला देती और मेरी तारीफ करतीं। लेकिन शायद मैं गलत थी। दी तो ना जाने क्यूँ अन्दर ही अन्दर मुझसे दुश्मनी सी रखे हुए थीं.बारिश अपने ज़ोरों पर थी इसीलिये जब भीगती हुई सिया मेरी कहानी को भीगने से बचाते हुए लायी तो मैं उसके बहते हुए आँसुओं को देख ही नहीं पायी थी। मैं तो बस अपनी लिखी कहानी पर दी की तारीफ़ सुनना चाह रही थी।

सिया ने कहानी मुझे पकड़ा दी और जो दी ने कहा था सब बता दिया। मेरे हाथ से कहानी के काग़ज़ वहीं गिर गये। मेरे लिये ये एक शदीद रंज था.. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि दी जिनको मैं कहीं ना कहीं अपना आइडियल मानती थी मेरी इतनी बेइज्जती करेंगीं..और सिया मेरी बहन मेरे लिये रो रही थी क्यूँकी उसको मालूम था कि इस बात से मेरे हौसले और हिम्मत का ख़त्म होना तय था। वह सही भी थी।

खा और फिर उसे मैंने आँसुओं से भरी आँखों से आखिरी बार अपनी कहानी को फाड दिया।कोरोना काल में घर बैठकर लेखिका बनने का ख़्वाब टूट सा गया था। 

पूरी शाम से रात तक रह रहकर रोना आता रहा था। फिर ख़ुद को सम्भाला और कभी कहानी ना लिखने का इरादा कर लिया था और इस हादसे को भूलने की कोशिश करने लगी थी ।लेकिन दिल पर लगी चोट हमेशा याद रहती है।

पर कहते हैं ना वक़्त हर घाव भर देता है। मैं भी उस बात को भूल गयी थी।लेकिन जब मैंने एक पत्रिका में अपनी पहली कहानी लिखी तो मुझे वह शाम याद आयी..उसके बाद जब मैंने पहली बार उपन्यास लिखा और उसने कई हफ्ते मुझे पत्रिका में टॉप राइटर्स में रखा तो भी मुझे उस शाम की याद आयी। उसके बाद अभी कुछ दिन पहले जब मेरी दो कहानियाँ पुरस्कृत की गयीं तो उस दिन भी मुझे वह शाम याद आयी थी। या सही कहूँ तो अब अपने लेखन की हर उपलब्धि पर वह शाम याद आ जाती है।

मैं हैरां परेशान सी हूँ कि अब तो उस बात को गुज़रे हुए एक वर्ष हो गया .. क्यूँ हर बार ये बात याद आती है.. पता नहीं ।

दो दिन पहले ही मैंने स्कूल के अपने एक प्रोजेक्ट के लिये अपनी लिखी उसी कहानी को आधार बनाया और उस पर काम शुरू किया, जिसे दी ने बकवास कहकर मेरी हिम्मत तोड़ दी थी। अब ये प्रोजेक्ट स्कूल की वेबसाइट पर दिखाया जाएगा। कई सौ बच्चों के घरों में अक्सर देखा जायेगा। उम्मीद है आज नहीं तो कल दी भी ज़रूर देखेंगी।

वो कहानी मेरी पहली कहानी थी.. मैंने बहुत मेहनत से लिखा था.. हाँ दी के ख़राब रवैये की वजह से मैंने उस कहानी को फाड़ दिया था लेकिन मेरी वो मेहनत,मेरी पहली कहानी मेरे दिल पर लिखी रह गयी थी। एक छोटी सी रौशनी बनकर मेरे दिल को इस तरह रौशन रखा कि मुझे भी ख़बर नहीं हुई.

बारिशों के मौसम की वह शाम रोते हुए गुज़री लेकिन अगली सुबह जीतने की ज़िद लेके आयी थी।दी को जाकर मैं भी उतना ही बुरा भला सुनाकर आ सकती थी या अपने बड़ों से दी की शिकायत कर सकती थी लेकिन नहीं... मेरी पहली कहानी की उस इतनी सी रौशनी ने मुझे जीतने की ज़िद दी थी और अब इस नाकामयाबी का जवाब कामयाबी से ही देना था।

और कहते हैं ना कि जब नियत नेक हो तो मंज़िल आसान हो जाती है..देर से ही सही या फिर ये कहूँ की अपने सही वक़्त पर मेरे रब ने मुझे ये कामयाबी अता की.

तमन्नाओं के दिए जलाते रहे सब्र के साथ साथ

कोशिश ओ मेहनत धीरे से चलते रहे साथ साथ

मुद्दतों तक अधूरी ख्वाहिशों को हम तकते रहे

इंतजार और इन्तेज़ार करके भी हम जगते रहे

मिला किस्मत में लिखा हमें जब सही वक़्त पर

बस सजदा ए शुक्र में झुक हम देर तक रोते रहे.


दी को मेरे सब्र,मेरी मेहनत और वक़्त ने बहुत बेहतर जवाब दे दिया है ।बारिश बहुत तेज़ होने लगी थी।छत पर कपड़े सूखने के लिये डाले थे।माँ आवाज़ लगा रही थी। मैं हल्की सी मुस्कराहट के साथ छत पर कपड़े लेने के लिये आ गयी थी.. बारिशों का ये हसीं मौसम कल मेरे दुःख में साथ था और आज मेरी कामयाबी पर भी मेरे साथ है।


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