इश्क़
इश्क़


इश्क़ का मतलब हर कोई नहीं जान पाता । सब इसे अपनी समझ के अनुसार पहचानते हैं। कोई इसे प्यार कोई इसे मुहब्बत तो कोई लव कहता है। पर इश्क़ इन सब सभी ऊपर का रुतबा होता है।जब हम आपने मुर्शद यां महबूब को रब का रुतबा देते है तब वो इश्क़ कहलाता है। चलो उस लड़की की कहानी जो इश्क़ कर बैठी।
बात तब की है जब तबसुम महज दस साल की थी गुलाबी फ्रॉक में नये स्कूल में दाख़िला लिया। किसी परी से कम नहीं लग रही थी वो। सभी का ध्यान आते ही उसने आकर्षित कर लिया।उसी दिन इतिहास की अध्यापिका ने साथ के क्लास में उसे ले जाकर अपनी दूसरी अध्यापिका को बोला देख हमारी क्लास में सलमा आगा आयी है।दिन बीतते गए सबका ध्यान उसपर पर उसका उसपर जो उसे देखता भी नहीं ं था। राजीव था नाम उसका जो उसकी सहेली नीतू का भाई था।शायद अब प्यार हो चुका था अब तक तबसुम को ओर वो भी एक तरफा। क्योंकि जितना होशियार पढ़ाई में राजीव था तबसुम उतनी ही कमजोर। इसी वजह से काफी साल दोस्ती के बाद भी वो नीतू ओर राजीव से इसबारे में बात नहीं कर पाई। क्योंकि वो ये बोल के नीतू सेअपनी दोस्ती गंवाना नहीं चाहती थी।वक़्त ने करवट ली वो दिल्ली चला गया।ओर वो पीछे आज भी उसे चाह रही थी शयद अब मुहब्बत प्यार से इश्क़ हो चुकी थी उसकी और आज महबूब मुर्शद बन चुका था उस
का। मगर फिर भी उसे वो बता ना पाई।
उस के शादी के रिश्ते आने लगे फिर जहां परिवार ने चाहा रिश्ता पक्का हो गया तबसुम का । फिर वो राजीव को खुदा जान कर आपने नए परिवार में मन लगाने लगी।पर उसका परिवार और उस का जीवन साथी उसे वो प्यार न दे सका जैसा वो चाहती थी। फिर भी लड़ाई झगड़ों के बीच वो हर हाल में रही कभी सास का झगड़े कभी ननद तो भी उसका जीवनसाथी मनोज । मनोज बुरा नहीं था पर शयद वो बीवी और मां में अपनी का साथ दे रहा था। दो बच्चों के बाद भी झगड़ा वहीं रहा जहां शुरू से था। इन झगड़ों ने शायद तबसुम के दिल से राजीव को जाने नहीं दिया। पर फिर भी वो जानती थी को खुदा का आपने भक्तों को मिल पाना असंभव होता है। अगर मनोज तबसुम को प्यार की कमी न रखता तो शायद वो उसे कब की भूल चुकी होती। पर हो नहीं पाया । उस के इसी अकेले पन ने तबसुम को लेखक बना दिया । उसने मोन रह कर कलम पकड़ ली और वो सब लिख डाला जो बोल नहीं पाई। उस की कलम ने उसे वो मकाम दिखाए जो वो सोच नहीं सकती थी। किताब छप कर जब सब के हाथों आई तो सब हैरान थे उस की प्रतिभा देख कर। इसे कहते है जब इश्क़ में मुर्शद (रूह) का आश्रीवाद मिलता है तो पत्थर भी नगीना हो जाता है।