Pawan Kumar

Romance Tragedy

2.2  

Pawan Kumar

Romance Tragedy

इश्क़ विथ फ्रॉड

इश्क़ विथ फ्रॉड

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मैंने पहली बार उसे 'एलिक्जर' बार एंड रेस्टॉरेंट में देखा था जहाँ मैं अक्सर ख़ुद को ज़िन्दगी के पेचोखम से निज़ात दिलाने,जाम के दो घूंट भरने चली जाया करती थी।लम्बे क़द और आकर्षक चेहरे-मोहरे वाला वह शख़्स जब सुर की गिरहनें खोलता था तो दिल में हसरतें करवटें लेने लगती थीं ।मैंने कई दफ़ा अपनी फ़रमाइशी गानों की पर्ची उस तक पहुँचवाई थी और मेरे गानों की पसंदगी से मुत्तासिर हुआ वह नौजवान कई बार गाता गाता मेरे टेबल पर आकर मुझे भी गाने में शामिल कर लिया करता था।धीरे धीरे हममें थोड़ी मोड़ी तक़ल्लुफी बातें होने लगीं।

मेरे लब बेशक़ उससे लफ्ज़ तौल तौल कर बातें करते थे पर मेरा दिल उसके लिए उठते ,मचलते जज़्बातों का कोई हिसाब नहीं रखा करता था।मैं रफ़्ता रफ़्ता उसकी ओर खींची जा रही थी।वह अगर ज़रा सा भी मुझसे इश्काना हो जाता तो मेरा उसपर निसार होना तय था।

'वह लड़की जो सबसे अलग है' उस दिन उसने अपनी पुरकशिश आवाज़ में यह गाना गाया ।ऐसा लगा जैसे उस नग़में की गोद में मैं बैठी हूँ।मानों मुझे वह उस गाने का सदक़ा दे रहा हो।दिल से सपनीले बुलबुले उठे और चंद लम्हों की मियाद पूरी कर फूट गये।उसे हृदय के शांत सरोवर में सिर्फ़ कंकड़ फेंकना आता था।एक तरह से मेरे प्रति उसकी यही बेरब्त,बेपरवाह फ़ितरत मुझे उसका शैदाई बना रही थी।आख़िर हैं हीं कितने मर्द इस दुनिया में जो एक लड़की की ख़ुद में दिलचस्पी को अपनी मतलबपरस्ती में नहीं भुनाते!

एक दिन वह अचानक मेरे पास आया और बड़े अपनत्व से कहने लगा-

'मुझे बधाई दीजिये और मेरे लिये अफ़सोस भी जताइये।'

'किस बात की बधाई?'

'मुझे टीवी के एक डेली सोप के लिये टाइटल ट्रैक गाने का मौक़ा मिला है ,6 लाख रुपये दे रहे हैं।'

'वाऊ व्हाट ए ग्रेट ब्रेक थ्रू...बहुत बहुत बधाइयां...पर ये अफ़सोस?'

'अफ़सोस इस बात का कि म्यूज़िक डायरेक्टर मेरा पैसा तब रिलीज़ करेगा जब मैं उसे जी.एस. टी. नंबर दूंगा।मैं ठहरा सिंगर ,कठिन से कठिन राग अलाप सकता हूँ पर ये कागज़ी झंझट मेरे पल्ले नहीं पड़ते।एक सी. ए. की मदद ले रहा हूँ पर जब तक ये फॉर्मेलिटीज पूरे करूँगा तब तक आलरेडी जो ख़स्ताहाली का ज़ख्म है उसमें और नमक,मिर्च लग जाएगा।'

'क्या आप उसे इस बार बग़ैर डॉक्यूमेंटल फॉर्मेलिटीज के पेमेंट करने का रिक्वेस्ट नहीं कर सकते?'

'अरे एक नम्बर का काइयां इंसान है वह,उसे झेलना सब के बस की बात नहीं...किसी की नहीं सुनता बस बात बात पर अंगुली करता है।एक बार मटन ख़रीदते वक़्त मटन के पीस करते कसाई को अंगुली कर करके बताने लगा 'यह नहीं वह पीस दो 'इस चक्कर में कसाई के चॉपर के नीचे कम्बख़्त की अंगुली आ गई।पर इन सबके बावज़ूद बन्दे की अंगुली करने की आदत नहीं गई।मेरे गाने में भी ख़ूब अंगुली की इसने।मैंने 5 तरीके से गाया तब जाकर इसने मेरा गाना लॉक किया।'

'ओह!'

मैंने हिमायत भरी प्रतिक्रिया दी।फ़िर मेरी तरफ़ से एक जज़्बाती राब्ता जो उससे जुड़ गया था,उसी के अधीनस्थ हो मैं उससे पूछ बैठी

'कितने रुपये में काम चल जाएगा?'

'80 हज़ार रुपये!'

शाइस्ता मुस्कान से लबरेज़ उसका चेहरा उसकी शराफ़त का आई-कार्ड था और इसलिए उसपर शक़ शुबहा करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।मैंने अगले हीं दिन अपने एकाउंट से 80 हज़ार रुपये निकालकर उसके हवाले कर दिए।पर उस दिन के बाद से वह ग़ायब हो गया।उसके न आने की वज़ह होटल के मैनेजर को भी पता न था। उसके दिये मोबाइल नंबर पर मैनेजर की बात करने की कोशिश भी नाकाम रही थी क्योंकि उसका नम्बर स्विच ऑफ था।

'क्यों नहीं आ रहा।कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया!'

मन के सौंवे हिस्से में एक मौहूम सा ख़्याल यह भी आया कि कहीं वह छलिया तो नहीं।पर मेरी इस नहीफ़ सोंच को हलाक करता वह लगभग 15 दिनों के बाद शुक्रवार की शाम फ़िर मेरे टेबल के पास आया और पछतावे भरे लहज़े में कहने लगा

'माफ़ी चाहता हूँ,कागज़ी करवाई के झमेले में आपसे इतने दिनों तक मिल न पाया।मैंने म्यूज़िक डायरेक्टर को अपना जी.एस. टी. नम्बर दे दिया और उसने मुझे पेमेंट भी कर दिया।'

यह कहकर उसने अपनी ज़ेब से एक चेक निकालकर दिखाया,कोई 6 लाख का चेक था।मुझे उस वक़्त कई ख़ुशियां एक साथ मिली - उसके प्रति बन रही मेरी गलत धारणा की टूटने की ख़ुशी, उसे पैसे मिलने की ख़ुशी और इन सबसे बढ़कर यह ख़ुशी कि वह फ़िर मेरी ज़िंदगी में लौट आया था।मैंने उसे बड़ा चहकते हुए मुबारक़बाद दी पर मेरा दी हुई मुबारक़बाद भी उसके चेहरे की परेशानी जनित सिलवटों को ग़ायब न कर पायी ।मैंने फ़िक्रमंद होते हुए पूछा

-'क्या हुआ परेशान लग रहे हो ?'

'कल ईद के मौके पर बैंक हॉलिडे है,परसों इतवार ....यह चेक़ मंगलवार से पहले क्लियर नहीं हो पायेगा।मुझे आपके पैसे भी लौटाने हैं,आपको तो मैं मंगलवार भी पैसे दे सकता हूँ पर अफ़गानी मनी लेंडर जिससे मैंने मज़बूरीवश 50 हज़ार रुपये उधार लिए थे,मेरी जान के पीछे पड़ा है,कह रहा है,आज के आज पैसे चुकाओ,वरना खोपड़ी खोल दूंगा।'

उसकी इस बात ने मुझे बेहद डरा दिया।इस बार फ़िर मैंने पहल करते हुए उससे कहा कि वह मुझसे पैसे लेकर अफ़गानी के पैसे चुकता कर दे और मंगलवार को जब उसके एकाउंट में पैसे आ जाएं तो वह मेरे पैसे लौटा दे।वह अपनी नज़रों में मेरी ज़ानिब ढ़ेर सारा शुक्राना अहसास भर चुप रहा मानों उसके पास मेरी बात मानने के अलावा और कोई विकल्प न हो।मैंने ए. टी.एम. से इच्छित रकम निकालकर उसे दे दी।वह बार बार मुझे शुक्रिया कहता चला गया।मैं इस पुरसवाब अहसास में डूबी कुछ दिनों तक आत्म-मुग्ध रही तब तक जब तक कि मंगलवार बीते कई दिन न हो गये। अबकि जो वह ग़ायब हुआ तो फ़िर कभी दिखा हीं नहीं।धीरे-धीरे वक़्त उसके चेहरे पर लगा फ़रेबी नक़ाब उधेड़ता रहा और फ़िर एक दिन उसके बारे में मुझे यह यक़ीन हो गया कि वह एक ठग था जो मेरे जज़्बातों से खेल,मुझे लूट कर चला गया।

मैं एक नामचीन आई टी कंपनी में इथिकल हैकर थी जहाँ से मिलने वाली मोटी सैलरी मेरी सारी ज़रूरतों को निपटाकर भी बच जाया करती थी।पैसा खोना मेरी परेशानी का सबब नहीं था।जो चीज मुझे बेचैन कर रही थी वह थी धोखा ।मैं प्रतिकार की भावना से कंठ तक भर गई।मैंने इंटरनेट के हर संभावित गोशे में उसे खंगाल डाला।यहाँ तक कि अपनी हैकिंग स्किल की बदौलत उसके बैंक एकाउंट तक पहुंच गई।देखा उसके एकाउंट में तक़रीबन 8 लाख रुपये

'तुमने मेरे जैसे कई लोगों को मूंडकर यह रुपये जमा किये होंगे न !मिस्टर धोखेबाज़ देखो तुम्हारी हराम की कमाई का क्या हश्र करती हूँ।'

मन हीं मन यह सोंचते हुए मैंने उसके एकाउंट के सभी पैसे एक समाजिक संस्था के एकाउंट में हस्तांतरित कर दिये।अब वह ठन ठन गोपाल बन चुका था।

वक़्त ने घाव भरा ।14 महीने बाद मैं इस जज़्बाती हादसे से पूरी तरह से उबर कर अपने पुराने रंग में लौट आई थी और उस दिन कार पार्किंग से निकल कर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की ओर जा रही थी कि तभी अपनीआँखों के सामने मैंने एक बदहाल अंधी लड़की को लड़खड़ा कर गिरते देखा।मैं भागी भागी उसके पास गई और उसे खड़ा होने में मदद करने लगी।उसके हाथ से सड़क पर गिरे सामान को उठाने के लिए जैसे हीं मैं झुकी ,नीचे मेरे अतीत के खलनायक मिस्टर धोखेबाज़ की टूटी फ्रेम वाली तस्वीर पड़ी देख बुरी तरह चौंक गई।

'यह तस्वीर?'

'मेरे भैया की है ।आज ही के दिन पिछले साल उनकी दिल की बीमारी से मौत हो गई थी ।आज उनकी बरसी में अपने ब्लाइंड शेल्टर से उनकी यह फ़ोटो फ्रेम ठीक कराने निकली थी कि गिर पड़ी ।'

यह सुनकर मेरा कलेजा मुँह को आ गया पर फिर भी ख़ुद पर किसी तरह अख्तियार करते हुए मैंने उससे पूछा-

'अपने भाई का किसी अच्छे अस्पताल में इलाज़ क्यों नहीं कराया?'

'भैया मुझे इस बेरहम दुनिया में अनाथ छोड़कर कभी जाना नहीं चाहते थे और इसलिए उन्होंने अपने ऑपरेशन के लिए बड़ी भागदौड़ करके पैसे जमा किये थे पर उनका सारा पैसा किसी हैकर ने लूट लिया।और वे बिना इलाज़....'

यह कहकर उस लड़की ने गहरी ग़मज़दा सर्द सांसें छोड़ी और अपने लबों पे मायूसी भरी चुप्पी ओढ़ मैं यह सब सुन वक़्ती तौर पे मुर्दा हो गई थी और अपनी पीठ पर अपनी हीं लाश का बोझ उठाये सोंच रही थी कि छलिया वह था या मैं!


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