इश्क़ का गाढ़ा रंग
इश्क़ का गाढ़ा रंग
शादी की पूरी रात जयमाल, फोटो शूट, फ़ेरे इत्यादि में निकल गई और विदा का समय आ गया। मम्मी, पापा, बहन, सहेलियाँ, सभी परिवारजनों को छोड़ पिया घर आना था।
दिल मानो दो भागों में बँट गया। एक ओर इन सभी को छोड़ कर जाने की पीड़ा तो दूसरी और नए रिश्तों से रूबरू होने का उत्साह था।
अरेंज मैरिज होने के कारण अपने पति को भी अभी इतना नहीं जानती थी। शादी से पहले शायद 3-4 बार ही बात हुई थी हमारी। मन में बहुत कौतुहल था पति को जानने का।
विदा की रस्में पूरी कर भारी मन से एक नई दुनिया की ओर क़दम रख रही थी। यहाँ भी बहु को अंदर लेते समय वो ढके हुए दीयों पर चलने की प्रथा, फ़िर दीवार पर अपनी हथेली की छाप छोड़ना... सभी देवर, ननदों की चुहलबाजियों के बाद अब बड़ी मुश्किल से बैठने का अवसर मिला था।
यह विवाह की रस्में भी कितनी खूबसूरत होती हैं। सारी ज़िन्दगी के लिए अनगिनत सतरंगी यादें छोड़ जातीं हैं हमारे मानस पटल पर।
बड़ी जेठानी ने बोला, "राशि, आज तुम भी थक गई होगी और हम सब भी थक गए हैं। अब तुम्हारे कंगन खुलवाने की रस्म कल करेंगे। " मैंने राहत की साँस ली औए सहमती में सर हिला दिया। वाकई में मैं भी बहुत थक गई थी। उन्होंने मुझे एक कमरे में आराम करने को बोला और चली गईं। मेरी आँख कब लग गई मुझे पता ही नहीं चला।
आँख खुली तो सहम गई। सामने रजत खड़े थे। बोले सोते समय कितनी प्यारी लगती हो तुम। इसलिए तुम्हें जगाए बिना एकटक देखता रहा। मैं शर्म से कुछ न बोल पाई। तभी किसी ने आवाज़ लगा इनको बुला लिया। रजत मुस्कुराते हुए कमरे से निकल गए।
अगले दिन फ़िर कुछ रस्में थीं। जिसमें बड़ा मजा आया। हर रस्म रजत छल कर जीतते रहे और मैं धीरे धीरे उन पर अपना दिल हारती गई।
अब वो रात थी। जिसका इंतज़ार शायद हर लड़की को होता है। रेल के इंजन सी धड़कती उन धड़कनों के साथ मैंने उस कमरे में प्रवेश किया जिसमें मैं अपने नए सपने बुनने वाली थी,नई दुनिया बनाने वाली थी।
बहुत ही करीने से सजा था वो कमरा था। रजत के बचपन की ढेर सारी फोटो लगीं थीं एक दीवार पर। मैं थोड़ा क़रीब जा उन्हें देखने लगी कि अचानक रजत ने पीछे से आ मेरा ध्यान उस दीवार से हटा दूसरी दीवार पर डाला जो अभी तक एक परदे नुमा कपडे से ढकी थी। उस परदे के पीछे वाली दीवार पर हमारी सगाई से शादी तक के बहुत ख़ूबसूरत लम्हें सजाए गए थे।
इस सरप्राइज को देखकर मैं तो जैसे अपना सब कुछ हार गई अपने रजत पर। ख़ुशी से मेरी आँखें गीली हो गईं। रजत ने मुझे प्यार से गले लगा मेरे माथे पर अपने प्यार की पहली निशानी दी।
अगली छः रात दिन न जाने कब गुज़र गए। हम दोनों को ही पता नहीं चले। रजत को ऑफिस ज्वाइन करने के लिए दिल्ली वापस जाना था और मुझे यहीं ससुराल में रहना था। अंदर ही अंदर मैं बहुत दुखी थी। लग रहा था कि कैसे रजत को रोक लूँ। पर यह कहाँ सम्भव था। जाते समय सबके पैर छू जब रजत चलने लगे तो बड़ी भाभी बोलीं,"अरे राशि को भी बाय कहिए भैया। " रजत हँसते हुए मेरे कंधे पर हाथ थप थपाते बोले, "ध्यान रखना अपना। "उनका इतना कहना था कि मेरी रुलाई फ़ूट गई। सबने खूब मज़ाक बनाया।
अब सिलसिला चालू हुआ फ़ोन और मैसेज का। एक दूसरे के प्यार में पड़े हम दोनों एक अलग ही दुनिया में जी रहे थे। घर में सब हमारे मज़े लेते। मैं सारे काम जल्दी जल्दी निपटा अपने कमरे में जा बस फोन लिए रजत से बातें करती रहती।
इसी बीच में पंद्रह दिन को अपने मायके भी हो आई थी मैं। पर वहाँ भी मेरा यही हाल था। हर पल बस रजत के फ़ोन का इंतज़ार रहता। आख़िर मम्मी ने बोल ही दिया कि हमारी बेटी सच में पराई हो गई है। पंद्रह दिन बाद मैं वापस ससुराल आ गई। दिन पंख लगाए उड़ रहे थे। दो महीने हो गए थे रजत को गए।
अब होली आने वाली थी। मेरे अंदर एक बार फ़िर रजत के आने की उम्मीद जाग रही थी। पर रजत आने की बात ही नहीं कर रहे थे। उनको छुट्टी नहीं मिल रही थी। मैं बहुत परेशान थी। यहां सभी ससुराल में सभी होली के बारे में बताते थे कि यहाँ बहुत ज़्यादा होली खेली जाती है। मुझे होली कुछ खास पसन्द नहीं थी। मैंने यह बात रजत को भी बोली थी पर उन्होंने कहा तुम यहाँ की होली मना के तो देखो तुम्हें मज़ा आ जाएगा।
घर पर होली की तैयारी चालू हो गई थी। रोज़ रोज़ पकवान बन रहे थे और मेरा मन रजत के आने का इंतज़ार कर रहा था। गुज़िया, मठरी, शकरपारे, नमकीन, रसगुल्ला, दही बड़ा सब बन रहा था। बस रजत की कमी सबको खल रही थी।
आख़िर होली का दिन आ गया। सासु माँ ने आज समोसे, चाट और दही बड़ा का कार्यक्रम रखा था। मैं बहुत उदास थी। सब मुझे बहुत चिढ़ा रहे थे और बहुत हँस भी रहे थे। मुझे आज उनकी बातें बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थीं।
तभी भाभी के बेटे ने चिल्ला कर बोला,"चाचा आ गए। " पहले तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ और रजत के सामने आते ही घबड़ाहट में मेरे हाथ से तो कच्चे समोसे की प्लेट ही गिर गई। मैं सॉरी बोल जल्दी जल्दी समोसे उठाने लगी। तभी भाभी मुस्कुराते हुए बोलीं, "होता है, होता है....कोई बात नहीं। "रजत दूर सबसे मिल रहे थे और मेरी हालत देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
सब बहुत खुश थे। होली खेलने को तैयार हो रहे थे। तभी रजत मेरे पास आकर बोले, "तुम भी तैयार हो जाओ....आज मेरे रंग में रंगने के लिए। " मेरी धड़कने तो लगा जैसे दिल का साथ छोड़ बाहर निकल जाएँगी।
बाहर सब होली के रंग, पानी , गुब्बारों , गुलाल के साथ मेरा ऐसे इंतज़ार कर रहे थे जैसे शेर अपने शिकार का। बमुश्किल जैसे ही मैं बाहर आई तो सब मेरे ऊपर दौड़ पड़े। तभी रजत ने आकर मेरा चेहरा अपने सीने में छिपा लिया और सब मेरे पीछे पानी , रंग ,गुब्बारे , गुलाल डालते रहे। सब चिल्लाने लगे ये तो चीटिंग है। रजत बोले , "यार कुछ तो मेरे लिए भी छोड़ दो। "सबने खूब होली खेली। वाकई यादगार होली थी वो।
अब रंग छुड़ाने का नंबर था। मेरे कमरे में पहुँचते ही रजत भी पीछे से हाथ में गुलाल लिए आ गए और मेरे पूरे चेहरे पर गुलाल लगा दिया। मैं चिल्लाती रह गई। मेरे मुँह पर हाथ रख मुझे शीशे के सामने ले जाकर खूब हँसने लगे। बोले," मेरी ज़िन्दगी में रंग भरने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद राशि। " मैं शरमाई सी उनकी बाँहों में जैसे पिघल सी गई।
शाम को जब चाय के लिए मैं तैयार होने लगी तो शीशे में ख़ुद को देख मैंने बोला, " देखो न रजत मेरा तो रंग ही नहीं छूटा। "रजत शरारत वाली मुस्कराहट के साथ बोले,"यह मेरे इश्क़ का गाढ़ा रंग हैै राशि.....इतनी आसानी से नहीं छूटेगा। "
सच में मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि आज शादी के पंद्रह साल बाद भी रजत के प्यार का रंग उतना ही प्यारा, गाढ़ा और मज़बूत है। आज भी होली का त्यौहार मेरे लिए ख़ास ही होता है। आज भी होली का पहला रंग मुझे रजत ही लगाते हैं।