अनमोल खुशियाँ
अनमोल खुशियाँ
प्रिय डायरी,
आज बहुत समय बाद तुमसे गुफ़्तगू करने का मन कर रहा है।जीवन की आपा-धापी में अब तुमसे मुलाक़ात ही नहीं हो पाती।पर देखो न....इस कोरोना ने मुझे तुमसे मिलने का यह ख़ूबसूरत मौका दे दिया।आज मैं तुमको इस कोविड काल के बारे में कुछ बताऊँगी।
प्रिय डायरी....कहते हैं.... परिवर्तन प्रकृति का नियम है।इस परिवर्तन को जिसने जितनी खूबसूरती से अपना लिया...उसका जीवन उतना ही सुखमय हो जाता है।
बचपन से आज तक बहुत परिवर्तन देखे थे।कपड़ों पर कुछ लाल धब्बे देख़ अचानक बच्ची से बड़ी बना दी गई।मम्मी ने समझाया अब सब बदल गया था...अब मैं बच्ची नहीं बड़ी हो गई थी।ये पहला और बड़ा परिवर्तन था मेरे जीवन का।
फ़िर बेटी से पत्नी और बहू बना दी गई सिर्फ़ एक रात में।बहुत बड़ा परिवर्तन था ज़िन्दगी का...जिसको समझने और अपनाने की आज भी हर पल कोशिश करती हूँ।
एक बड़ा और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और आया...जब माँ बनी।
तो जीव-विज्ञान के हिसाब से ज़िन्दगी में परिवर्तन हो रहे थे और मेरी लगातार कोशिशें ज़ारी थीं इन परिवर्तनों को अपने जीवन में ढालने की।
प्रिय डायरी....फिर आया वर्ष 2020...एक बहुत बड़ा परिवर्तन लेकर आया यह वर्ष...जिसने पूरे विश्व की सोच और कार्यशैली को बदल दिया।
मैं भी अछूती नहीं थी और न ही मेरा परिवार। अचानक पता चला कि कोविड जी आ गए हैं... जिनसे हम सबको बचना है और अपनों को बचाना भी है।कुछ समझ नहीं आ रहा था...सिवाय इसके कि अब हम घर पर रहेंगे।कोई बाहर नहीं जाएगा और न ही कोई अंदर आएगा।
शुरू में लगा कुछ दिन की परेशानी है...मिलकर लड़ेंगे...सरकार के द्वारा नियमों का पालन करेंगे।मस्त थाली बजाई... दिए जलाए....वो भी बड़ा गज़ब नज़ारा था।
अब परेशानी घर पर आ गई थी।इस बड़े और अचानक आए परिवर्तन को अपने जीवन में ढालना सभी के लिए थोड़ा मुश्किल था।तब हमारे भारतीय परिवारों की एकता की और समभाव की भावना की पोल भी खुलने लगी। दुर्भाग्य देख़ो.... जो सब कभी वक़्त माँगा करते थे ...अब वक़्त मिलने पर समझ नहीं पा रहे थे कि इसका उपयोग कैसे किया जाये??
मेरा चार सदस्यों का परिवार है।हम चारों ही जैसे इस परिवर्तन से जूझ रहे थे।पतिदेव को पूरा दिन घर से काम करना था।बच्चों को घर से स्कूल करना था और मुझे...दुगना और तिगुना काम करना था।सबका व्यक्तिगत जीवन समाप्त तो हो ही गया...साथ में एक दूसरे के जीवन में दखलअंदाजी भी बढ़ गई।सब एक दूसरे से चिढ़ने से लगे।सामने होकर भी कोई किसी से बात नही करता।कहीं का गुस्सा...कहीं उतार देते।
प्रिय डायरी....तब मैंने सबसे पहले अपने आपको संभाला।एक दिन सबकी पसन्द का खाना बनाया।फिर शाम को सबका मूड अच्छा देखकर घर के सभी सदस्यों को एक साथ बिठाया।सब हैरान परेशान एक दूसरे को देख रहे थे।
मैंने हँसते हुए सबकी ओर देखा और बोला,"मैं, आप सबसे कुछ बात करना चाहती हूँ।"
सबको समझाने के विचार से बोला," देखिये,ये जो भी परिस्थितियों आज हमारे सामने हैं, यह सिर्फ़ हमारी परेशानी नहीं है,अपितु पूरा विश्व इस परेशानी से जूझ रहा है।यह एक वैश्विक महामारी है।इससे पूरे विश्व को एक साथ लड़ना होगा और ये लड़ाई एकजुट होकर और सरकारी नियमों का पालन करके ही जीती जा सकती है और इस एकजुटता का भाव सबसे पहले अपने परिवारों में लाना होगा।यह हमारी व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िम्मीदारी है...इसे हम सबको समझना होगा और इस परिवर्तन को जीवन में ढालना होगा।"
प्रिय डायरी....तुमको जानकर आश्चर्य होगा...कुछ समय बाद मैं, मेरे घर के सभी सदस्यों में परिवर्तन देखने लगी। हमने अपने कामों को बाँटा नहीं था। पर सब बिन कहे एक दूसरे की परेशानी समझने लगे और एक दूसरे की सहायता करने लगे। काम के साथ साथ हम सभी कुछ न कुछ नया भी सीख रहे थे।बच्चों की सोच में बड़ा परिवर्तन हो रहा था।
मेरी बेटी, पढ़ाई के साथ साथ घर के छोटे छोटे काम करने लगी।मेरा बेटा रसोई में मेरी मदद करने लगा।पतिदेव बच्चों के साथ मिल रविवार को मुझे सरप्राइज देते...अच्छा सा लंच तैयार करते थे।
हम बच्चों के साथ वक़्त बिताते...उनकी बातें समझते , सुनते और हाँ अपने बचपन के किस्से भी उन्हें सुनाते।मेरी बेटी कोरियोग्राफर बन गई...मैं लेख़क बन गई...पतिदेव और बेटा शानदार शेफ़ बन गए...हमारे अंदर की प्रतिभाएं धीरे धीरे बाहर आने लगीं।असल में,हम सब कोशिश कर रहे थे... इस वक़्त को ख़ूबसूरत और यादगार बनाने की।
सच कहूँ....मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। ये शायद मेरे सपनों का संसार था...ये खुशियाँ अनमोल थीं.....जिसे जीने के लिए हम दिन रात भगवान से प्रार्थना करते थे।
प्रिय डायरी...सच बताऊँ... तो मैंने तमाम नकारात्मकता के बावज़ूद कोविड को सकारात्मक रूप में लिया...क्योंकि इस वक़्त ने हमें बहुत कुछ सिखा दिया था।सबसे बड़ी बात...हम सबकी सोच बदल रही थी।नई टेक्नोलॉजी के गुमान में जो हम इंसान अपने आपको शहंशाह समझने लगे थे....आज वापस प्रकृति की शक्ति को समझ उसे नमन करने लगे।
जो बातें मैं अपने बच्चों को नहीं समझा पा रही थी...वो कोविड बिन कहे सुने समझा गया।मानो, मुझे धीरे धीरे मेरे सपनों का संसार मिल रहा था।मुझे यह पल अनमोल तोहफे के रूप में मिले थे।
प्रिय डायरी....आज के लिए इतना बहुत है।बच्चे आवाज़ दे रहे हैं।ज़ल्द मिलेंगे तुमसे।तब तक के लिए अपनी कलम को विराम देती हूँ।
तो दोस्तों,ये था मेरी डायरी का एक पन्ना।आप भी कुछ बताइये अपने कोरोना काल के विषय में।
धन्यवाद
आपकी अपनी दोस्त
मिली
