पंख ख़्वाहिशों के
पंख ख़्वाहिशों के
"मन को मारकर ख़ुश नहीं रहा जा सकता......आज मुझे इस बात का मतलब समझ आ गया रंजना।कल मेरी बेटी सिंगापुर से इतनी बड़ी डाँस प्रतियोगिता जीत कर आ रही है। उसने मेरा सर गर्व से ऊँचा कर दिया है। और इसका श्रेय काफ़ी हद तक तुम्हें भी जाता है".......डॉक्टर समर भावुक होकर अपनी धर्म-पत्नी रंजना से अपनी ख़ुशी ज़ाहिर कर रहे थे।
"अच्छा अच्छा सो जाइए अब आप। कल हमें उसे एयरपोर्ट पर तान्या को रिसीव करने भी जाना है".......रंजना ने लाइट ऑफ़ करते हुए कहा।
इधर सिंगापुर एयरपोर्ट पर तान्या का डाँस ग्रुप वापस भारत आ रहा है। वहाँ एयरपोर्ट पर कुछ लोग तान्या और उसके साथियों के ऑटोग्राफ ले रहे हैं।
असल में तान्या का एक डाँस ग्रुप थी जो भारत से एक इंटरनेशनल डाँस प्रतियोगिता में भाग लेने गया था।इस प्रतियोगिता में लगभग 20 देशों ने भाग लिया था। जिसमें भारत ने प्रथम स्थान पाकर पूरे विश्व में अपने झंडे गाड़े हैं।
अब ये ग्रुप भारत वापस आ रहा है। सबकी आँखों में अजब चमक है। सब अपने परिवार के पास जल्द से जल्द जाना चाहते हैं।
थोड़ी देर में सभी हवाई जहाज के अंदर थे। सभी अपनी अपनी सीट बेल्ट लगा रहे थे। जहाज उड़ान भरने को तैयार था।
तान्या खिड़की वाली सीट पर बैठी थी। कितना ख़ूबसूरत नज़ारा था । बादल नीले आसमान के साथ मानो खेल रहे थे।तान्या ने कभी नहीं सोचा था कि वो अपने डाँस करियर में इतना आगे जाएगी।वो बहुत खुश थी। माँ पापा से मिलने को बेताब थी ।
तभी उसकी नज़र अपने आस पास पड़ी तो उसने देखा कि सभी लोग थके होने के कारण धीरे धीरे सोने लगे थे।पर उसकी आँखों में तो जैसे नींद ही नहीं थी।वो फिर बाहर देखने लगी।उसे लगा जैसे वो भी पंछी बन इस ऊँचे आसमान में उड़ रही है।
अचानक उसे वो सब कुछ याद आने लगा जिससे उसकी दुनिया ही बदल गई थी। तान्या के पापा डॉक्टर समर शहर के जाने माने डॉक्टर थे । तान्या डॉक्टर समर की छोटी बेटी थी। उनका बड़ा बेटा दिल्ली के एक बड़े मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था।
डॉक्टर समर तान्या को भी डॉक्टर बनाना चाहते थे। तान्या पढ़ने के साथ साथ डाँस के क्लास भी लेती थी।पर सिर्फ़ शौक़िया तौर पर। तान्या अपनी क्लास के टॉप दस बच्चों में रहती थी। लेकिन जब वो बारहवीं क्लास में थी तो उसका मन डाँस में ज़्यादा लगने लगा। पहले भी उसने डाँस में कई इनाम जीते थे।पर अब वो डाँस को ही अपने करियर बनाना चाहती थी।
पर ये बात वो अपने पापा को कैसे बताए उसे समझ नहीं आता था। वो बहुत परेशान रहने लगी। वो असमंजस में थी। एक दिन उसके घर पर कुछ लोग डिनर पर आये थे। उसने सुना, उसके पापा कह रहे थे, "बस तान्या का एडमिशन अच्छे मेडिकल कॉलेज में हो जाये तो मेरी सारी फ़िक्र ख़तम।"
समर के दोस्त बोले, "आप बहुत भाग्यशाली हैं , आपके दोनों बच्चे आपका प्रोफेशन अपनाकर आपका नाम रोशन करेंगे।"
तान्या अंदर कमरे से ये सब सुन रही थी।वो बहुत परेशान हो गई। लेकिन वो डाँस को भी किसी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी। उसे पूरी रात नींद नहीं आयी।
उसी समय तान्या को एक डाँस प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिला। उसने अपनी मम्मी को मना लिया वहाँ आने के लिए। तान्या को इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला। वहाँ एक प्रसिद्ध कोरियोग्राफर आये हुए थे। उन्होंने रंजना जी को बोला,"आपकी बेटी डाँस में बहुत बड़ा नाम कमाएगी। वो कमाल की डाँसर है।"
उस रात तान्या ने बहुत हिम्मत करके अपने मन की सारी बात मम्मी को बता दी। उसने कहा , "मम्मी, डाँस मेरी ज़िन्दगी है , मैं डाँस में ही अपना करियर बनाना चाहती हूँ..... मैं डॉक्टर नहीं बनना चाहती।"
रंजना तान्या की बातें सुनकर स्तब्ध थी। उसने केवल इतना कहा कि वो समर से बात करेंगी।
रंजना के डॉक्टर समर से बात करने के लगभग एक हफ्ते तक उन्होंने तान्या से बात नहीं की। रोज़ रात को उनके कमरे से बहुत तेज़ तेज़ बातें करने की आवाज़ आती।
उस दिन उसने सुना मम्मी, पापा से कह रहीं थीं," आप समझने की कोशिश कीजिए। अगर ज़ोर ज़बरदस्ती करके आपने तान्या का दाखिला मेडिकल कॉलेज में करवा भी दिया। परन्तु वहाँ जाकर भी अगर उसका मन मेडिकल में नहीं लगा..... तो पैसा और समय दोनों ही बर्बाद हो जाएंगे। वैसे भी अपना मन मारकर कोई भी ख़ुश नहीं रह सकता है। तो बेहतर है..... हमें तान्या के निर्णय को मान देना चाहिए और इस करियर को बनाने में उसकी मदद करनी चाहिए।"
इन सब बातों को सुनकर वो डर तो रही थी.....पर अपने निर्णय पर अडिग थी।
एक दिन सुबह पापा ने मुझे बुलाया और उसके सर पर हाथ रख कर कहा, "बेटा,जो भी करो ,दिल लगा कर करना, मेरा सर नहीं झुकने देना। पर साथ में तुम्हें अपनी पढ़ाई भी ज़ारी रखनी होगी।"
तान्या पापा के गले से लग गयी। उसने बोला, " पापा मुझे पता है..... आपके लिए भी यह निर्णय लेना कोई आसान नहीं रहा होगा....... आपने मेरी ख़्वाहिशों को पंख दिए हैं..... मैं बहुत ऊँचा उड़कर दिखाऊँगी।विश्वास रखिए मैं आपका सर कभी नहीं झुकने दूँगी। एक दिन आप ज़रूर मुझ पर गर्व करेंगे पापा। "
तभी अचानक उसे विमान परिचारिका की आवाज़ आयी। "सभी यात्री अपनी अपनी सीट बेल्ट बांध लें।जहाज थोड़ी ही देर में नई दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरने वाला है।" तान्या इधर उधर देख कर मुस्कुराने लगी ।उसे बस अब मम्मी पापा से मिलना था।
एयरपोर्ट पर सभी के पेरेंट्स आये हुए थे। मीडिया के बहुत लोग मौजूद थे। लोग उससे ऑटोग्राफ ले रहे थे। पर उसे तो मम्मी पापा से मिलना था।
"मन मारकर कोई ख़ुश नहीं रह सकता.....ऐसा मेरी धर्म-पत्नी ने मुझे समझाया था....क्योंकि असली और लम्बे समय तक़ साथ रहने वाली सफ़लता तभी मिलती है..... जब आप अंदर से ख़ुश होते हैं। मेरी बेटी ने अपना वादा पूरा किया।आज मुझे अपने दोनों बच्चों पर बहुत गर्व है"....... डॉक्टर समर बड़े गर्व से पत्रकारों के सवाल का जवाब दे रहे थे।
तान्या दूर से अपने पापा को देख रही थी। आज उनकी आँखों में अपने लिए ढेर सारा प्यार और गर्व देख कर उसे ख़ुद पर ही प्यार आ गया। उसने एक बार अपने पापा को देखा और एक बार अपने हाथ में पकड़ी ट्रॉफी को.....और अनायास ही ट्रॉफी को चूम बैठी।
तभी मम्मी ,पापा, भैया और बहुत सारे लोग फूलों का गुच्छा लेकर और बड़ा सा केक लेकर उसके स्वागत के लिए आगे आ गए। पापा ने उसको गले से लगा लिया। मम्मी की आँखों से ख़ुशी के आंसू निकल पड़े। भैया के बहुत दोस्त मुझसे मिलने आए थे।
