इंसानियत
इंसानियत
कल रामनवमी की छुट्टी थी, इसलिए आज काम पे जा रहा हूँ । रास्ते में एक चिकन की दुकान के बाहर मुर्गे मुर्गियों से भरी गाड़ी खड़ी थी। अक्सर ऐसी गाड़ी देखकर उन लोगो का ध्यान आता है जो दिल्ली में खचाखच भरी गाड़ियों , बसों या मेट्रो में रोज़ सफर करतें हैं। समझ नहीं आता इंसानों की जिंदगी मुर्गियों जैसी है या फिर मुर्गियों की जिंदगी इंसानो जैसी।
तभी दुकानदार गाड़ी में से चार पांच मुर्गियों को निकालने लगा। मुर्गियों को पता था उनके साथ क्या होने जा रहा था, वो सभी चिल्लाने लगी। उनकी कर्कश आवाज में उनका दर्द मैं समझ पा रहा था। मुझे ये बिलकुल वैसा लगा जैसे कोई अपहरणकर्ता भीड़ में से किसी को मारने के इरादे से अलग करके ले जा रहा हो। जिन्हें ले कर जा रहे थे वो भी चिल्ला रहे थे और दूसरे भी। मौत का डर इतना ज्यादा था कि उन मुर्गियों का मल मूत्र एकसाथ निकल गया।
मैं आगे निकल गया ये सोचते हुए की कैसे हम इंसान थोड़े से स्वाद के लिए इन निरीह प्राणियों की जान ले रहे हैं। इस दृश्य ने मेरे अंतर्मन को काफी झकझोर दिया था। मुझे अहसास हुआ कि कुछ था जो मेरे अंदर बदल गया है । हम पाप का इतना बोझ लेकर एक दिन भगवान को मुँह कैसे दिखाएंगे।
शाम को मैं खाना खाने ढाबे पर गया, मैं अक्सर खाना बाहर ही खाता हूँ। खाने का आर्डर देते हुए मैंने कहा,"भई ! आज चिकन लगा दे, नवरात्रों के चक्कर में काफी दिन हो गए !!"
