इण्डियन फ़िल्म्स 2.5
इण्डियन फ़िल्म्स 2.5
मेरी परदादी नताशा
शाम को मुझे बाहर से घर लाना बेहद मुश्किल है, ख़ासकर जब सर्दियाँ हों और हॉकी का खेल चल रहा हो। टेप लिपटी अपनी स्टिक “रूस” लिए मैं एक गोल से दूसरे की तरफ़ जाता हूँ ( हमारे गोल – लकड़ी के डिब्बे हैं, जो सब्ज़ी की दुकान के पास पड़े रहते हैं), कानों को ढाँकने के लिए फ्लैप्स वाली टोपी, टीले पर फ़िंकी है, जिससे वह आँखों पे न सरक आए, और खिड़की से आती हुई चीख, कि घर लौटने का वक्त हो गया है, क्योंकि अँधेरा हो गया है, सुनाई ही नहीं देती।
मगर रात के दस बज चुकेहैं, और मेरी परनानी नताशा बाहर पोर्च में आती है और मुझे मनाती-पुचकारती आवाज़ में बुलाती है:
“सिर्योझेन्का-आ ! चल घर जाएँगे, नानू आए हैं। और वो क्या लाये हैं ! आय-आय-आय-आय !।।।”
मुझे दोस्तों के सामने शरम आती है, कि नानू की गिफ्ट हॉकी से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो सकती है, मगर फिर भी रुक जाता हूँ और नताशा की तरफ़ देखता हूँ।
“क्या लाए हैं ?”
“ओय, वो ख़ुद ही तुझे दिखाएँगे, चल, जाएँगे।”
वाकई में, दिलचस्प बात है, कि नानू क्या लाए हैं, - हो सकता है, दलदल से बेंत लाए हों, जो मैं कब से माँग रहा हूँ। मगर, वैसे मौसम तो सर्दियों का है, अब कहाँ से होने लगी दलदल ?
अपने प्रवेशद्वार में घुसते हैं। मैं आगे आगे, नताशा मेरे पीछे। हम दूसरी मंज़िल पे रहते हैं, ज़्यादा नहीं चलना पड़ता, मगर मैं फिर पूछ ही लेता हूँ कि नानू क्या लाए हैं। और तब, इस बात को समझते हुए कि अब मैं उछलकर बाहर सड़क पर नहीं जा सकता, क्योंकि वह मेरा रास्ता रोके हुए है, नताशा का चेहरा फ़ौरन बदल जाता है, और किसी युद्धबन्दी की तरह मुझे पीठ से धकेलते हुए, वो धमकाती है:
“चल ! शैतान गुड़िया ! क्या लाए हैं ! इसे घर लाना मुसीबत है ! देख, तेरी स्टिक तो मोड़ पे चटक गई है – नई नहीं खरीदूँगी !”
मगर फिर भी मैं अपनी परनानी से बेहद प्यार करता हूँ। जब फराफोनवा (मेरी लोकल डॉक्टर) पहली बार हमारे घर आई, तो उसने मुझे देखा और बोली:
“ओय, कितनी प्यारी बच्ची है !”
और मैं स्कर्ट-ब्लाऊज़ में था, सिर पर रूमाल बंधा था – मतलब, नताशा की हर चीज़ पहनी थी।
“मैं लड़की नहीं हूँ !” मैं शरमा गया।
“तो फिर तू कौन है, लड़का ?”
“न तो लड़की और ना ही लड़का ! मैं परनानी नताशा हूँ, और मेरी उम्र पचहत्तर साल है !”
अब फ़राफ़ोनवा ने, संजीदगी से तोन्या नानी को समझाया, कि मुझे स्कर्ट पहनने न दिया जाए, क्योंकि मुझे इसकी आदत हो जाएगी, और मेरी मानसिकता पर असर पड़ सकता है, मगर तोन्या नानी ने अफ़सोस के साथ जवाब दिया, कि मुझे ऐसा करने से रोकना संभव नहीं है और अगर बात सिर्फ स्कर्ट तक ही रहती तो कोई बात नहीं थी, मगर मैंने तो नताशा के सारे बर्तन ले लिए हैं, और उसीकी दवाएँ खाता हूँ, ब्लड प्रेशर की, चक्कर आने की, और दिल की।।।(मगर मैं कोई सचमुच की दवाइयाँ नहीं खाता, बल्कि मटर के दाने, चॉकलेट्स खाता हूँ और आँखों में भी दवा के नहीं, बल्कि सिर्फ पानी के ड्रॉप्स डालता हूँ)।
और नताशा तो मुझसे बेहद प्यार करती है। एक बार शाम को वह “नन्हा उकाब” बाइसिकल ले आई।
मेरे पास “स्कूल बॉय” थी, और उसे मालूम था, कि मुझे एक बड़ी साइकिल चाहिए। बस, ले के आ गई।
“ओह, सीढ़ियों से मुश्किल से खींच के लाई !”
शोर सुनकर तोन्या नानी किचन से बाहर आई।
“ये क्या है ?”
“अरे, मैं मिलिट्री स्टोर के पास से जा रही थी – ये वहाँ खड़ी थी। आधा घण्टा खड़ी रही, घण्टा भी हो गया, कोई लेने नहीं आया। चलो, सिर्योझा की हो जाएगी।”
“मम्मा,” तोन्या नानी ने कहा, “तुम बिल्कुल पगला गई हो। किसी ने इसे वहाँ रखा था ! तुम ख़ुद भी नहीं जानतीं, कि क्या करना चाहिए। वापस ले जाओ।”
और नताशा साइकिल को वापस रखने चली गई।
अफ़सोस, कि तोन्या नानी घर में थी, वर्ना तो “नन्हा उकाब” मेरे ही पास रहती !