इण्डियन फ़िल्म्स 1.11

इण्डियन फ़िल्म्स 1.11

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जल्द ही अदस्त आने वाला है...


ये रहा रास्ता। दूर पर एक घर है, जहाँ पहले बूढ़ा गडरिया रहता था। हमेशा अपनी बकरियाँ लेकर पहाड़ी पर जाया करता था। उन्हें कहाँ रखता था (करीब पंद्रह बकरियाँ थीं उसके पास, इससे कम तो बिल्कुल नहीं) – ये बात मैं कभी भी नहीं समझ पाया। जब रास्ता खतम होगा, तो पेडों का झुरमुट आएगा। वहाँ पहाड़ी-बादामों के पेड हैं, मगर जैसे अभी हैं, वैसे ही पहले सिर्फ हरे, कड़े, खट्टे बादाम थे। हो सकता है, वो कोई जंगली बादाम हों और उन्हें बिल्कुल नहीं खाना चाहिए? पहले मैं समझता था, कि ये असली जंगली बादाम हैं क्योंकि झुरमुट तो जंगल ही होता है, चाहे छोटा ही क्यों न हो; मगर वो बादाम कभी पके ही नहीं, इसलिए मैंने उन्हें कभी खाया ही नहीं। एक बार बस चखा था, इसलिए मुझे पता है, कि – खट्टे हैं।

नानी को अच्छी तरह याद है, कि युद्ध के पहले क्या-क्या था, मगर मेरा बचपन, जिसके लिए मैं नानी को बेहद प्यार करता हूँ, उसकी उसे याद ही नहीं है और वह उसे मम्मा के, मौसी के, बहन के बचपन के साथ मिला देती है। उसके दिमाग़ में सब गड्डमड्ड हो गया है, उसे सिर्फ वो ही शाम याद है, जब उनके यहाँ डान्स में घुंघराले बालों वाला साँवला नौजवान आया था और उसने नानी को डान्स के लिए बुलाया। अट्ठाईस साल बाद वो मेरा नाना बनेगा, मगर फ़िलहाल तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है। नानी को अपना शहर याद है, उसका शहर भी याद है, सहेलियाँ याद हैं, स्टेशन ग्लत्कोव्का याद है, जहाँ उन सबको, जो मोर्चे पर नहीं जा सके थे, कराचेवो से निकालकर बसाया गया था, और उसे ये भी पता नहीं है, कि अब – सोवियत संघ नाम का कोई देश ही नहीं है, उसे तो अभी इस घुंघराले बालों वाले के साथ डान्स करना है, मगर इस तरह करना है, कि पाव्लिक बुरा न मान जाए, जलने न लगे।

मौत से नानी को डर नहीं लगता। उसने, हो सकता है, कि उसके बारे कभी संजीदगी से सोचा ही नहीं था, मगर नाना के गुज़र जाने के बाद, जैसे वो थोड़ा-थोड़ा मौत का इंतज़ार कर रही है।     

सब कुछ जो यहाँ है, दिलचस्प है, - मगर उसके लिए अब ये बात ख़ास नहीं है। डान्सेस, गीत - ‘स्टालिन – हमारी सेना की शान, स्टालिन – हमारी जवानी की उड़ान’' जो उनके कोम्सोमोल-ग्रुप में गाया जाता था, पाव्लिक, तूला वाली जिंजरब्रेड के डिब्बे में रखे हुए ख़त – उसे इन्हीं के साथ जीना है। मैं ये समझता हूँ और नानी से और ज़्यादा प्यार करता हूँ। वो खेलने के लिए मुझे बाहर छोड़ने को तैयार है।

मुझे इससे कोई मतलब नहीं है, कि ग्यारहवें साल में दीम्का ने स्कूल छोड़ दिया, जिसके दरवाज़े के पास नीले रंग पे चाभी से ‘सुपर क्लब’ खुरचा हुआ था। हो सकता है, किसी गंभीर कारण से वो घर बैठ गया हो, मगर इससे मुझे फ़रक नहीं पड़ता, मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ। दीम्का सही में सुपर था, साइकिल की स्पोक्स से ‘गन्स’ बनाता और एक ही घूँसे से दो पसलियाँ बाहर निकाल देता। कोई बात नहीं अगर उसने स्कूल छोड़ दिया तो। उसने सनकी रूस्ल्या से मुझे बचाया था। रूस्ल्या चाहता था कि मैं नंगे पैर सिमेन्ट में ‘स्टेच्यू’ हो जाऊँ, मैं भी ‘स्टेच्यू’ हो जाता, मैं रूस्ल्या से डरता था। मगर दीम्का वहाँ से जा रहा था, तो दीम्का की झापड़ से रूस्ल्या ख़ुद ही इस गाढ़ी सिमेन्ट में जा गिरा, अपने घिनौने थोबड़े समेत गाढ़ी चीज़ में गिरा और अपमान के कारण अपने ही थूक से उसका दम घुटते-घुटते बचा। तब दीम्का ने मुझे चाय और केक खिलाई थी, टैक्सी में घुमाया और जैसे बातों-बातों में एकदम सही-सही कह दिया, कि बुश ही अमेरिका का प्रेसिडेण्ट बनेगा। उस समय रीगन था, इलेक्शन में अभी पूरे छह महीने थे, मगर दीम्का को पहले से सब पता था। मतलब, सब लोग जो कहते थे, कि उसे टेलिपैथी मालूम है, वो सही था। उसके घर में शकर भी भूरी-भूरी थी, इसलिए नहीं कि जल गई थी, बल्कि इसलिए कि वह अफ्रीका की थी; अब मुझे पक्का मालूम है, कि दीम्का पर यकीन करना चाहिए।

गर्मियाँ जल्दी ही ख़त्म हो जाएँगी। अभी जुलाई के आख़िरी दिन ही चल रहे हैं, मगर पैरों के नीचे धरती चरमराने लगी है, कोई लाल सी, सख़्त सी चीज़ ज़िंदगी में घुसना चाहती है। हर चीज़ पर नज़र रखी जाएगी, आसमान ज़्यादा घना हो जाएगा, जुलाई वाला वो एहसास भी नहीं रहेगा, कि हम सब किसी पारदर्शी प्लास्टिक के पैकेट में हैं। और अचानक पता चलेगा कि +18 डिग्री – काफ़ी गरम है और हम बेकार ही में गर्मियों की बारिश पे गुस्सा हो रहे थे।

दुकान में जाऊँगा। तरबूज़ ख़रीदूँगा, नानी के साथ रात को खाऊँगा। ये यहाँ, लकड़ी का छोटा सा शहर और तम्बू था, यहीं पर मुहन ने प्यारी-प्यारी लड़की को ‘किस’ किया था। मुहन तब कितने साल का रहा होगा? बेशक, अभी मैं जितने का हूँ, उससे कम ही था। मगर मैंने तो आज तक ऐसी सुंदर लड़कियों को ‘किस’ नहीं किया है। मुहन उन्हें क्यों अच्छा लगता था? वो तो कुछ कहता ही नहीं था। गंभीरता से देखता रहता, वाइन के घूँट लेता, सही में, तंदुरुस्त था, बिना आस्तीनों वाली कमीज़ पहनता था, उसके मसल्स मुश्किल से आस्तीनों वाले ‘कट्स’ में घुसते थे। दिन में मुहन को लकड़ी छीलने वाली मशीन पर काम करना पड़ता था, मगर वह काम छोड़कर भाग जाता और हमारे साथ फुटबॉल खेलता।

गालियाँ ऐसी देता, कि ज़मीन थरथरा जाती थी, मगर महसूस होता था, कि वो भला इन्सान है। शायद, ऐसे मसल्स वाले के लिए भला इन्सान होना मुश्किल नहीं है, क्योंकि सब कुछ तुम्हारे हाथ में है ! और अगर ऐसा है, तो शेखी क्यों बघारी जाए?

मिलिट्री-स्टोर तक आ गया। यहाँ मोटा अंद्रेइ रहता था। सारी बसों के ड्राइवर्स उसे अपनी कैबिन में बिठाते और ज़ोर-ज़ोर से, और अकड़ से बातें करते, और बाद में मोटा अंद्रेइ ख़ुद भी बस में काम करने लगा। सब उसे ‘डोनट’ कह कर बुलाते थे। एक बार ल्योशा ख़ाएत्स्की गिटार लाया, और मैंने विक्टर ज़ोय का ‘व्हाइट स्नो’ बजाया। ‘डोनट’ फ़ौरन घर भागा और रॉक ग्रुप ‘किनो’ के बारे में एक काली, फ़टी हुई किताब लाकर मुझे दे दी। और, जब दो महीने बाद मेरे लिए सुहानी सर्दियों वाली नीली जैकेट ख़रीदी गई, तो अपनी पुरानी, चमड़े की जैकेट, जो ईमानदारी से, मुझे कभी भी अच्छी नहीं लगी, मैं डोनट को देने लगा। मगर उसने नहीं ली। बोला, कि उसे बहुत चुभती है। अजीब बात है, वो सिर्फ चमडे की है, मगर आम जैकेट्स की ही तरह तो है। मगर अंद्रेइ ने नहीं ली। मैंने उसे किसी और को दे दिया, याद नहीं है, कि किसे।

तरबूज़ ख़रीदा। चाँद की रोशनी में पहाड़ियाँ दिखाई दे रही हैं। और गड्ढे भी। अपने प्रवेश द्वार का कोड फिर से भूल गया (वो हाल ही में बदला है), चाभियाँ हैं नहीं, नानी को फ़ोन करके जगाऊँगा।

और टाइम, बाप रे ! बारह बज चुके हैं !

कहीं अचानक चरवाहा न निकल पड़े? कल्पना करता हूँ : वो जा रहा है, बेलोमोरिना (सिगरेट का एक लोकप्रिय ब्राण्ड) के कश लगा रहा है, धरती चरमरा रही है, गुज़रे ज़माने को याद कर रहा है, मगर उससे कोई भी उस बारे में नहीं पूछता, बूढ़ा भी ख़ामोश रहता है। मगर नहीं, नहीं। मगर रास्ते पर कोई भी नहीं है। सिर्फ समय का ध्यान न रखने वाले फ़ार्म से लौटने वाले ने कार की दूर वाली लाइट जला दी है और ख़ुश है, कि शहर में बस पहुँचने ही वाला है। संयोग से खट्टे बादामों वाले झुरमुट पर रोशनी डाल कर वह हाइवे पर निकल जाता है। वहाँ कच्ची सड़क नहीं है, बल्कि हाल ही में बनाया गया समतल, बिना गड्ढों वाला रास्ता है। ख़ूबसूरत।


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