ईश्वर कौन, ईश्वर और मैं
ईश्वर कौन, ईश्वर और मैं
पहले मुझे लगता था की ये ब्रह्मांड, ये सृष्टि, एक अनंत स्वतंत्र प्रक्रिया है लेकिन जैसे जैसे अनुभवों में बहुत आगे बढ़ गया तो पता चला की कोई शक्ति है जो हम मनुष्यों के, हर जीव के जीवन को कंट्रोल करती है, इस ब्रह्मांड के जर्रे जर्रे, हर कण को कंट्रोल करती है,
मुझे जीवन के साथ सबसे बेहतर चीज ये लगती थी की ये अनंत स्वतंत्र प्रक्रिया है क्योंकि स्वतंत्रता से खूबसूरत कोई दूसरी चीज हो ही नही सकती, लेकिन धीरे धीरे जब अनुभव आगे बढ़े तो पता चला कुछ भी होने के पीछे एक अदृश्य शक्ति काम कर रही है,
मैं सूक्ष्म संसार के अनुभवों के चरम तक पहुंचा शायद इतनी दूर निकल गया के जो मैंने जाना वो एकदम नया था ना किसी ने कभी बोला था ना किसी ने जाना था, मैंने एकदम नए की खोज की थी लेकिन , जब अनुभवों से मुझे लगा की ये जीवन स्वतंत्र नहीं है मैं किसी की मर्जी से सब अनुभव कर पा रहा था कोई था जो चाहता था की मैं ये सब अनुभव करूँ तो मेरे लिए उन अनुभवों का कोई मोल नहीं रह गया , मैं एकदम चुप हो गया वो इसलिए क्योंकि जब जीवन कोई स्वतंत्र प्रक्रिया नहीं है तो फिर इस ज्ञान का कोई मतलब ही नहीं है, जहां बेड़ियां है फिर चाहे वो सोने की हो वो बेड़ियां ही है, बेड़ियां चाहे उस कथित ईश्वर की हो वो बेड़ियां ही है, अगर कोई हमारे जीवन को कंट्रोल कर रहा है, अगर कोई ऐसा है जिसके चाहने से सब कुछ हो रहा है तो फिर मुझे ये जीवन ही छलावा लगने लगा।
मैं इन अनुभवों को खो देना चाहता था, क्योंकि ये सब मेरे लिए निरर्थक हो गया , मैं पूर्ण स्वतंत्रता का पक्षधर हूँ जहां स्वतंत्रता नहीं वहाँ अनुभव नहीं, इस खोने पाने की प्रक्रिया में मैं फिर से बहुत आगे निकल गया, जैसे जैसे मैं खोने की तरफ बढ़ता गया वैसे वैसे मैं बोझ मुक्त होता गया लगने लगा मैं बेड़ियां तोड़ रहा हूँ , मैंने जो भी जाना था वो सब नकार दिया वो भी तब तक के लिए जब तक वो सामने ना आ जाए जो मुझे ये सारे अनुभव करवा रहा था या जिस अनुभूति को कथित आध्यात्मिक लोग ईश्वर की संज्ञा देते आ रहे है।
आध्यात्मिक गुरुओं की जो भी बाते है अनुभव है वो सब छलावा है वो सब उनके काम के नहीं तो हम सबके किस काम आयेंगे, ईश्वर की बात करने वाले हर आध्यात्मिक गुरु के अनुभव बोने है, ये सारे के सारे सिर्फ भ्रम फैला रहे है, कथित ईश्वरवादी वो फिर चाहे कोई भी है, मैं आप सब, इस ईश्वर नामक मायाजाल को नहीं सुलझा सके, वो महसूस होता है पर सामने नहीं आता,
ईश्वर जानने की प्रक्रिया नहीं खोज का विषय है, ना वो धर्म में है ना वो नमाज, में ना पूजा पाठ में, ना ध्यान में वो अपनी मर्जी का मालिक है उसका मन करे तो वो है उसका मन करे तो वो नहीं है, इसलिए मुझे लगता है इस पृथ्वी की हर उपलब्धि निरर्थक है हर अनुभव छोटा है,
ना तो वो हिंदू, ना मुस्लिम, ना क्रिश्चियन, ना सिख ना यहूदी, ना वो राम है ना वो अल्लाह, ना क्राइस्ट, ना यहोवा है, ना शिव है ना ब्रह्मा, वो सहव्यंभू है वो चाहे तो है ना चाहे तो नहीं है, किसी का इतना सामर्थ्य नहीं है कोई खुद से उसे जान पाए इसलिए मुझे लगता है की पृथ्वी की सारी उपलब्धि निरर्थक है, कोई चाह कर भी उसे नहीं जान सकता जो अनंतकाल से हर जीव के लिए एक रहस्य है। मेरा चुप होना स्वाभाविक है क्योंकि मैं स्वयं से कुछ नहीं जान सकता और किसी और की मर्जी से मैं चल नहीं सकता क्योंकि मैं एक अनंत स्वतंत्र आत्मा हूँ,
