ईद
ईद
तबस्सुम आज जल्दी में थी।उसकी बस छूट सकती थी इसलिए वह हवाई घोड़े पर सवार होकर घर के काम निपटा रही थी।घर पर कोई था ही नहीं उसकी मदद के लिए।उसे पूरा काम खुद ही करना पड़ता था।
किसी तरह वह बस स्टैंड पर पहुंची तो उसने देखा कि वहाँ काफी भीड़ जमा थी।उसे ताज्जुब हुआ कि आज इतनी ज्यादा भीड़ क्यों थी?इससे पहले कि वह कुछ और सोच पाती,एक खाली बस आती हुई देख वह उस तरफ बढ़ गई और इससे पहले कि बस में भीड़ जमा हो,वह जाकर बैठ गई।
थोड़ी देर बाद उसे लगा कि वह कुछ भूल रही थी।उसने याद करने की कोशिश की लेकिन उसे कुछ याद नही आया।यही सोचते-सोचते वह कब ऑफिस पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला।
जब वह अंदर दाखिल हुई तो उसे ऑफिस स्टाफ कुछ कम लग रहा था।खैर वह अपनी कुर्सी पर बैठी हुई कुछ काम कर रही थी कि तभी अंजलि उसके पास आई।
अंजलि-"गुड मॉर्निंग माय न्यू वर्जन तब्बू।क्या कर रही हो?क्या प्लान बनाया है?"
तबस्सुम को कुछ समझ नहीं आया,बोली-"किस चीज का प्लान?क्या बोले जा रही है यार?मुझे काम करने दे।"
अंजलि तुनकते हुए बोली-"अरे वाह!अपनी बारी आई तो किस चीज का प्लान?कल ईद है मैडम।"
तबस्सुम चौक गई-"क्या कल ईद है?अरे यार मैं तो बिल्कुल ही भूल गई।तभी बस स्टैंड पर इतनी भीड़ थी।सभी अपने घर लौट रहे होंगे लेकिन मैं क्या करूँगी?मेरे ना कोई आगे है ना कोई पीछे।यतीम की कोई ईद नही होती।"
अंजलि नाराज होकर बोली-"तो क्या हम सब जिन्नात है जो तुझे अपना मानते है।देख तेरा कोई बहाना नही चलेगा।कल की दावत तैयार रखना,समझी।"
तबस्सुम ऑफिस से काम खत्म करके घर लौट कर सो गई और अगली सुबह उठकर तैयारी करने लगी।कुछ देर बाद अंजलि का फोन आया कि उसकी तबियत बिगड़ गई है और घर पर कोई नहीं है।
तबस्सुम अंजलि के घर पहुंची और अंजलि की तबीयत ठीक होने तक उसके घर पर ही रही।ऐसे ही तीन दिन बीत गए।अंजलि को कोई होश नही था कि क्या हो रहा है क्या नही।तीन दिन बाद जब अंजलि कुछ सामान्य हो गई तो तबस्सुम ने फिर से ऑफिस जॉइन कर लिया।
जब तबस्सुम ऑफिस पहुँची तो वह एक दम चौक गई।पूरा ऑफिस स्टाफ उसका इंतजार कर रहा था। सभी के चेहरों पर मुस्कान थी।
उसे कुछ समझ नहीं आया कि आज क्या खास है जो सभी लोग उसे देखकर इतने खुश थे।वह यही सोचते हुए अपनी जगह पहुँची तो अंजलि को देखकर चौक गई।
तबस्सुम- "तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है और फिर भी तुम ऑफिस आई हो।मुझे बता दिया होता तो हम लोग साथ ही आ जाते।"
अंजलि-(तबस्सुम को गले लगाते हुए)"सॉरी यार।मेरी वजह से तेरी ईद सूनी रह गई इसलिए आज हम तेरे लिए ईद के फरिश्ते बन कर आये है।"
तबस्सुम- "क्या मतलब?मैं कुछ समझी नही।"
अंजलि तबस्सुम को केंटीन में लेकर आई।वहाँ जाकर तबस्सुम चौक गई।चारों ओर चमकीली सजावट की गई थी।मेज पर कई तरह के लजीज पकवान रखे थे।एक दीवार के पर्दे पर लिखा था-ईद मुबारक।
आज तबस्सुम को लगा कि अल्लाह ने तो कोई मजहब बनाया ही नही था।यह सब तो इंसानों की बनाया गया एक पैंतरा है जो खुद उसे ही एक दूसरे से अलग कर देता है।ईद का असली मतलब तो इंसानियत को जिंदा रखना है जो सही मायनो मे आज साकार रूप ले रही थी।
