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chandraprabha kumar

Action Fantasy Inspirational

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chandraprabha kumar

Action Fantasy Inspirational

होनहार बिरवान के होत चीकने पात(३)

होनहार बिरवान के होत चीकने पात(३)

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   अनीशा के बचपन की बातें याद आती हैं तो लगता है कि वह शुरू से ही बहुत ध्यान और लगन से काम करती थी,जिस से वह सर्वप्रिय कुशल डॉक्टर बन सकी। जब वह तीन साल की थी तो उसकी मम्मी ने उसको तारापोरवाला के मॉन्टेसरी स्कूल में भर्ती करा दिया था, जिसे एक पारसी महिला चलाती थी। वहॉं छोटे बच्चों की एक्टिविटी बेस्ट लर्निंग थी, कोई कापी ,पेन्सिल या किताब का काम नहीं था। छह वर्ष की उम्र तक ऐसे ही बच्चों को खेल के माध्यम से सिखाते थे। उनका कहना था कि पहिले बच्चों का सही विकास होना चाहिये। उनको नेत्र और हाथों का सामंजस्य करना मेल बिठाना आना चाहिये, इनका तालमेल ठीक से हो, उसके बाद किताब काग़ज़ कलम से शिक्षा शुरू हो। 

  वहॉं बच्चों की क्लास के अलग- अलग ग्रुप बना दिये थे। एक ही क्लास में दो -दो, तीन-तीन के ग्रुप में बच्चों को बैठा देते थे। वहॉं तरह- तरह के खेल खिलौने रखे रहते थे। एक तरफ़ टोकरी में तरह तरह की सब्ज़ियॉं रखी रहती थीं आलू, गाजर, खीरा, ककड़ी, भिंडी आदि दूसरी और तरह तरह के फल रखे रहते थे। बग़ल में चाकू और कैंची रखे रहते थे। एक तरफ़ पुराने अख़बारों का ढेर रखा रहता था। बच्चों को पूरी छूट थी, जो चाहें करें, जैसे खेलना चाहें खेलें। क्लास रूम के बाहर बगीचा था। बच्चे वहॉं भी जा सकते थे, फूल वगैरह देख सकते थे। छोटे बच्चों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था। 

  अनीशा को वहॉं सबसे अच्छा चाकू और कैंची से खेलना पसन्द था। वह कैंची लेकर बैठ जाती और अख़बार से कतरने काटती रहती, कभी कोई तस्वीर देखती तो उसे भी सफ़ाई से काटकर निकाल लेती। या उसे चाकू से सब्ज़ी काटना पसन्द था। वह चाकू से मूली के छोटे छोटे टुकड़े करती, कभी खीरा काटती कभी आलू काटती। इतनी छोटी बच्ची बड़ी सफ़ाई से सब्ज़ी काटती , अख़बारों की कतरन काटती। उसे सबसे ज़्यादा यही अच्छा लगता था। जबकि घरों में बच्चों से चाकू कैंची दूर ही रखे जाते हैं इस डर से कि कहीं हाथ न कट जाये। 

   एक बार घर पर अनीशा रसोई से सारी गाजरों को बटोरकर ले आई। साथ में चॉपिंग बोर्ड और चाकू भी उठा लाई और आराम से बैठकर चाकू लेकर बोर्ड पर गाजरें काटने लगी। बहुत ध्यान से एकाग्रचित्त होकर वह गाजरें काट रही थी। क्योंकि उसे सब टुकड़े एक समान काटने थे इसलिये देरी लग रही थी, दूसरे गाजरें भी कड़ी थीं। उसकी मम्मी ने यह देखा तो उसके हाथ से चाकू लेने दौड़ीं। 

  उस समय अनीशा की नानी भी वहॉं आई हुई थीं। उन्होंने टोका-“ अनीशा को हड़बड़ाना मत, हाथ काट लेगी। लपक कर मत जाओ, धीरे से जाकर चाकू ले लेना। 

     अनीशा की मम्मी ने किसी तरह फुसलाकर अनीशा के हाथ से चाकू ले लिया। तब किसे पता था कि यही लड़की बड़ी होकर कुशल सर्जन बनेगी। और यह सब उसकी पूर्व पीठिका थी। 

   तारापोरवाला के स्कूल में वह ज्यादा दिन नहीं रह सकी , क्योंकि उसके एक वर्ष बाद ही उसके मम्मी पापा का वहॉं से ट्रॉंसफर हो गया। पर अनीशा वहॉं रहकर अच्छे से चाकू कैंची से काम लेना सीख गई। अपना सेब वह स्वयं से काटने लगी। संतरा भी अपने से छीलकर ले लेती थी। अपना काम अपने हाथ से करके ज़्यादा खुश रहती थी। और सब काम पूरे मनोयोग एवं ध्यान से करती थी। उसकी यही बचपन की एकाग्रचित्तता कुशल सर्जन बनने में काम आई। 



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