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upma Bhatt

Romance

3  

upma Bhatt

Romance

हमसफ़र

हमसफ़र

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हैप्पी एनीवर्सरी शालू!" बिस्तर पर बैठे बैठे ही बोले जतिन।


"शालू?? बड़े दिन बाद याद आई? ओके! हैप्पी एनीवर्सरी! आपकी चाय टेबल पर रखी है। नाश्ते में स्प्राउट हैं और लंच में भिंडी। आज रोटी सब्जी में ही चला लेना। मैं लेट हो रही हूँ।" जल्दी जल्दी बैग उठाते हुए बोली शालीनी।


"पर मैंने तो आज छुट्टी ली है" धीरे से बोले जतिन।


"छुट्टी? क्यूँ? तबीयत तो ठीक है? लाइए बुखार चैक कर लेती हूँ।" बैग रख कर थर्मामीटर ढूंढने लगी वो।


"नहीं बुखार नहीं है। तुम जाओ, लेट हो जाओगी" रूखे स्वर में जवाब दिया जतिन ने और किसी और बात का इंतजार किये बिना ही निकल गई शालीनी।


पता है उसे, जतिन ने एनीवर्सरी के लिए छुट्टी ली है| दुःख है उसे जरूरत से ज्यादा रुखाई दिखाने का। पर क्या करे? कभी कभी जरूरी हो जाता है ये सब। रास्ते भर यही सोच रही थी शालीनी| फिर भी, रहा नहीं गया और ऑफिस आकर फोन कर ही दिया।


"तबीयत कैसी है? नाश्ता कर लिया?"


"नहीं करना मुझे नाश्ता। इतनी ही चिंता थी तो ऑफिस क्यूँ गई?" मन की बात आ ही गई जबान पर।


"ये बात सुबह भी बोल सकते थे। ठीक है, लंच टाइम पर आ जाती हूँ।" हंसते हुए फोन रख दिया उसने।


"हम औरतें ना बहुत भावुक होती हैं। किसी ने उल्टा बोल दिया तो झट से फैसला भी ले लेती हैं और प्यार से बोलने पर भूल भी जाती हैं कि क्या करना था।"


शालिनी भी हम में से ही है। शादी की पच्चीसवी सालगिरह है। पिछले तेईस साल से यही करती आ रही थी, जो आज जतिन ने किया है। फर्क बस इतना है कि उसकी शिकायतों का कभी असर नहीं हुआ जतिन पर। हार कर पिछले साल से बंद कर दिया उसने ये सब। पिछले साल कुछ असर नहीं हुआ। उसने शिकायत भी नहीं की। पर इस बार, पता नहीं कैसे? छुट्टी ले ली है जतिन ने। वो भी एनीवर्सरी वाले दिन?"


ऑफिस से निकल ही रही थी कि फोन आ गया जतिन का।


"लोकेशन भेज रहा हूँ, सीधे वहीं आ जाना।"


एक रेस्टोरेन्ट था। जतिन बैठे इंतज़ार कर रहे थे। एक बुके के साथ।


"हैप्पी एनीवर्सरी!" बुके पकडाते हुए बोले।


"थैंक्यू!" आश्चर्य चकित थी, कुछ बोल भी नहीं पा रही थी। पता नहीं कहाँ खो गयी थी? ध्यान आया तो देखा, एकटक उसे ही देख रहे हैं जतिन|


"क्या हुआ"? सकपकाकर पुछा।


"किसी को ढूँढ रहा हूँ?"


"किसे?"


"एक लड़की को, पच्चीस साल पहले मिली थी। वो बाईस साल की अल्हड़, बिंदास, बहुत सारी खूबियाँ लिए हुए और खिली हुई सुबह सी लड़की| जिसे देखकर लगा था, यही है जिसे देखकर उठना चाहता हूँ मैं हर सुबह" जतिन ने कहा।


"अच्छा? मिल जाए तो बोलना।"


"नहीं मिल रही, उसी दिन मिली थी। जब पहली बार देखा था उसे। उसके बाद कभी नहीं| तुमने कहीं देखा उसे?" आँखों में आँखें डालकर बोले वो।


"हाँ, मिलती थी पहले। वो भी ढूँढ रही थी किसी सपनों के राजकुमार को, जो एक ही बार मिला था उसे। वो आँखें जो बिन बोले ही बहुत सारे वादे कर चुकी थीं और देखते ही होने वाला अपनेपन का अहसास जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। बताया था उसने, कायल था वो राजकुमार उसकी खूबियों का, पर यहाँ तो जैसे हर नया दिन एक नया प्रहार लेकर आता था उसकी खूबियों और अरमानों पर। लगता था जैसे रातों रात बदल गया है सब कुछ। बहुत कोशिश की कहीं मिल जाए उसे वो फिर से जिसे हमसफर चुना था उसने| पर नहीं मिला कहीं|

है कोई जो साथ तो चल रहा है पर हमसफर नहीं है। खैर, जा चूकी है अब वो। तुम भी भूल जाओ उसे।" मेन्यू कार्ड देखते हुए बोली शालिनी।


"इतना कुछ भर रखा है मन में और मुझे पता ही नहीं चला? क्या इतना दूर हो गया हूँ मैं तुमसे? कभी हक तो जताती? क्या तुम्हारा नहीं था मैं"? हाथ पकड़ कर बोले जतिन।


"किस पर हक जताती? उस ऑफिसर पर, जिसे अपने काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं? या उस बेटे पर जिसने शादी की पहली सुबह ही बोल दिया था अपनी बीवी से कि तुम्हें सब को अपनाना है और खुश करना है। जबकि अपनाया तो मुझे जाना था। नया तो मेरे लिए था सबकुछ। फिर भी बहुत कोशिश की कि खुश करूँ सबको। पर, न खुश हुआ कोई, न अपना बना। उल्टे, खुद को ही भूल गई इस कशमकश में। जब तक खुद को साबित कर पाती, जा चुके थे सब| हम दोनों के बीच एक दीवार खड़ी करके। पता है? कितना मुश्किल होता है जब किसी के नाम पूरी ज़िन्दगी लिख दें हम और उसके पास एक मिनट तक नहीं होता हमारे लिए"। सर झुका कर बोली शालिनी।


"मुझे माफ कर दो शालू! जीवन में आगे बढ़ने की जिद में ये तो ध्यान ही नहीं रहा कि क्या क्या छूट गया है पीछे? सचमुच, अब जाकर लगता है कि काश मैं भी जी पाता वो खूबसूरत पल तुम्हारे साथ जिसकी कल्पना करता था कभी। और कैद कर पाता अपने बच्चों का मासूम बचपन अपने दिल में। सब पीछे छूट गया है अब और साथ ही तुम लोग भी। पर, यकीन करो। सब तुम लोगों के लिए ही था। भले ही समय न दे पाया तुम्हें, पर इतना विश्वास था कि सम्भाल लोगी तुम सबकुछ और बखूबी संभाला तुम ने भी। बस, गलती हुई कि इस मजबूत परिवार को बनाने में टूटती उस लड़की को नहीं देख पाया जिसे हमेशा साथ देने का वादा किया था मैंने। प्लीज़, एक बार माफ कर दो और लौटा दो मुझे वो लड़की जो मेरी जिंदगी है। क्या एक बार फिर मुझे अपना हमसफर बनने का मौका दे सकती हो?" हाथ जोड़कर बोले जतिन।


"अरे! ये क्या कर रहे हो? सब देख रहे हैं" शर्माते हुए कहने लगी शालिनी। "नहीं मानूंगी, अगली एनीवर्सरी तक फिर गायब हो गए तो?"


कहीं नहीं जाउंगा! चाहो तो रस्सी से बांध कर रख लो" हंसते हुए बोले जतिन।


"तो चलोगे शालूज स्पेशल लॉन्ग ड्राइव पर?"


"बिल्कुल! फिर समुन्दर किनारे शालू लाइव विद गिटार!" साथ लाया गिफ्ट देते हुए बोले जतिन और ख़ुशी से उछल पड़ी थी शालू, बिल्कुल उस बाईस साल की लड़की की तरह।


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