Krishna Khatri

Drama

5.0  

Krishna Khatri

Drama

हमसाया

हमसाया

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“पापाजी, आपको याद है लगभग बीस साल पहले की बात है वो भी उन दिनों की जब मैं बीमार रहती थी। बीमारी भी बड़ी अजीब तरह की थी। वैसे बीमारी थी या कुछ और मुझे तो आज तक भी समझ में नहीं आया कि आखिर था क्या? पर जो भी था, था बड़ा मजेदार। तब तो ऐसा नहीं लगता था लेकिन जब-जब उस बारे में ख्याल आता है तो सारा मंज़र आंखों के सामने घूम जाता है। मेरी शादी को अभी एक साल ही हुआ था, ससुराल में भी सब अच्छे थे और मिस्टर तो बहुत ही अच्छे थे। मेरा बहुत ही ख्याल रखते थे, मुझे भी उन सबके साथ काफी अच्छा लगता था यानि कि कुल मिलाकर सब अच्छा ही था। सात-आठ महीने तो बड़े मज़े में गुजरे मगर बाद में न जाने क्या हुआ कि बीच-बीच में मुझे अपने-आप ही, पता नहीं किस वजह से, पर बात-बात में रोना आता था और रोते-रोते फिर अपने-आप हँसी आ जाती थी, हँसी के बाद फिर रोना इस तरह यह सिलसिला चलता रहा। वैसे मुझे सब पता रहता था फिर भी अपने हँसने-रोने पर जरा भी कंट्रोल नहीं था जैसे कोई संचालित कर रहा हो। पहले शुरू-शुरू में किसी ने खास नोटिस नहीं किया, सोचते थे माता-पिता व भाई-बहनों की याद आ रही होगी लेकिन बाद में यह हँसना-रोना कुछ अधिक ही होने लगा तो घरवालों का ध्यान गयाहंस वो भी हँसना-रोना साथ-साथ! किसी की याद में भला ऐसे कोई हँसता-रोता है? याद में रोना आयेगा ना


सब पूछते “बेटा, क्या हुआ? क्यों रो रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या? ननद-देवर भी बेचारे परेशान हर वक्त मेरे आगे -पीछे घूमते रहते।


पूछते - भाभी क्या हुआ? भैया ने कुछ कहा? मम्मी-पापा की याद आ रही है? प्लीज भाभी मत रोइये ना, वगैरह-वगैरह पूछते रहते, समझाते रहते मगर जो जितना पूछता मुझे उतना ही जोर का रोना-हँसना आता। अब तो घर वाले सब के सब परेशान, वे हैरान कि आखिर इसे हुआ क्या है? जाने कितने डाक्टर्स को दिखाया है। हर डॉक्टर ने अपनी-अपनी समझ के अनुसार कई टेस्ट किए लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात! यहाँ तक कि ब्रेन एम आर आई भी कराया गया, सब ठीक था कहीं कोई प्रोब्लेम नहीं थी। फिर भी प्रोब्लेम तो थी पर कहाँ? यही सबको परेशान करने वाला था। पापाजी आज आपको बता रही हूँ। अब तक किसी को नहीं बताया था पर आज बताना चाहती हूँ। जब सब परेशान होते तो इस रोने-हँसने के बावजूद मुझे भीतर ही भीतर खुशी महसूस होती थी पता नहीं क्यों? यह तो मुझे आज तक समझ में नहीं आया”


 “बच्चा, समझ में आता भी कैसे? वो तू थोड़ी ना थी”


 “मैं ही तो थी, भला और कौन था?”


 “था कोई, छोड़ उन बीस साल पुरानी बातों को, भूल जा बिट्टो”


“कैसे भूलूं? मुझे तो सब वैसे का वैसे याद है अब तक और मुझे कई बार इससे परेशानी होती है, झुंझलाहट होती है। प्लीज पापाजी मुझे बताइये ना क्या था वो सब?”


“कुछ नहीं था, अब तू मुझे परेशान कर रही है। बीस साल पहले तुमने कम परेशान किया था जो आज गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो। एक बार कहा ना, भूल जा सब। अब उस पर कोई भी बात क्यों करना? याद है तो भी बुरा सपना था बस! बस?”


“हाँ बस, पर पापाजी, मैं सच में समाधान चाहती हूँ। जो बड़े-बड़े डॉक्टर न कर सके वो आपने कैसे कर लिया? पापाजी कुछ-कुछ तो मैं भी महसूस कर रही हूँ आपकी बेटी जो हूँ। प्लीज बता दीजिए ना, पिछले बीस सालों से यह सवाल मुझे खाये जा रहा है। क्या हुआ था मेरे साथ? उसके बाद से अब तक मुझे एक औरत क्यों दिखाई देती है? वो कौन है? आपको तो सब याद ही है। जब आपने पूजा की थी वैसे वो पूजा तो नहीं थी, आप तो समाधि में ध्यानस्त होकर बैठे थे फिर समाधि से उठने के बाद अभिमंत्रित जल मुझ पर छिड़का था। उसी वक्त मेरे बदन में कुछ अजीब-सी हलचल हुई थी और फिर जबरदस्त सिरहन हुई। मैं संभल ही नहीं पाई एकाएक गिर पड़ी। साथ ही देखा, मेरे भीतर से एक के बाद एक बारी-बारी से तीन औरतें निकली। एक बहुत ही खूबसूरत पच्चीस से तीस तक की जिसे मैं जानती नहीं थी बाकी की दोनों प्रौढ़ावस्था के दरमियान थी जो अपने रिश्ते में थीं। वे तो निकली और चली गई मगर वो खूबसूरत बला आज भी मेरे साथ ही छ - सात फुट की दूरी पर सामने ही रहती है, हल्की-सी मुस्कान के साथ। पहले अटपटा लगता था लेकिन अब उसकी आदत पड़ गई है उसके बिना खाली-खाली लगता है। हाँ, अब हँसने-रोने पे तो ब्रेक लग गया है, जब से आपने अभिमंत्रित जल मुझ पर छिड़का और मुझे पिलाया भी। हालांकि पीने में मैंने बहुत ही आनाकानी की पर आपने जबरदस्ती करके, डांट-डपट के पिलाया। जल छिड़कने के करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद वो भी बड़ी मुश्किल से। तब से वो अजनबी खूबसूरत बला मुस्कराती हुई मेरे सामने ही रहती है। मुझे भी उसकी आदत हो गई है अब। अगर कभी कुछ देर के लिए ओझल हो भी जाती है तो मुझे बेचैनी होने लगती है। मन उसे तलाशने लगता है हमसाया बन चुकी है। ऐसा क्यों है पापाजी? आखिर ये सब क्या है? कौन है वो?


“तेरा हमसाया” कहते हुए हँस पड़े।


 “यह तो आप मेरा कहा हुआ दोहरा रहे है”


“अरे बच्चा छोड़ ना बस रात गई, बात गई”


 “रात गई पर बात नहीं गई ना पापाजी”


“अरे मेरी माँ, बीस साल बाद यह किस्सा लेकर बैठ गई। क्यों खुद परेशान हो रही है और मुझे भी कर रही है? मिट्टी डाल और भूल जा सब। अपने पापा को बेकार ही तंग कर रही है मेरी बिट्टो”


 “पापाजी”


“ जी बिट्टो जी”


“अब आप बहाने मत बनाइए, बताना तो आपको पड़ेगा ही। मैं वापस नहीं जाने वाली जब तक आप बतायेंगे नहीं। फिर आप मुझे मत देना, भले ही आपके दामाद लेने ही क्यों न आ जाए”


“तू तो इतनी बड़ी हो गई है जवान बच्चों की माँ है फिर भी जिद कर रही है? ऐसा करना कोई अच्छी बात थोड़े ही ना है”


“वाह - वाह। मैं जवान बच्चों की माँ हूँ और आप? आप तो मेरे बाप है फिर भी जिद कर रहे है। प्लीज-प्लीज, पापाजी, अब आप ज्यादा भाव मत खाइये। बता भी दो ना यार पापाजी”


“ओके, मेरी माँ ओके चल जा पहले मेरे लिए एकदम बढ़िया ही राबड़िया भांत चाय बनाकर ला और साथ में प्याज के पकौड़े भी समझी”


 “समझी, यार पापाजी, आप बहुत खराब है, रिश्वत ले रहे है। ठीक है, आप भी देखना”


 “देख ही तो रहा हूँ यार बिट्टो। सिर्फ चाय- पकौड़े ही तो माँगे है तेरे पापा ने मेरी जान। रिश्वतखोर कह कर ब्लेकमेल कर रही है”


“ओ डीयर पापाजी” कहते-कहते अपने पापा से लिपट गई पापा ने भी बांहों में भर लिया और भरे गले से बोले “अब इतना ब्लेकमेल तो मत कर जाकर फटाफट चाय बना। यार तेरे हाथ की चाय पीने बड़ी इच्छा हो रही है” बड़े प्यार से रत्ना के गालों को थपथपाया, वो भी पापा के प्यार से लबालब चाय बनाने के लिए चल दी। जाते-जाते माँ से पूछा “मम्मी, चाय पीयोगी?”


 “क्यों नहीं, केवल अपने पापाजी को ही पिलाने का विचार है?”


 “चलो, ठीक है, आपको भी पिलाऊंगी और हँस पड़ती है”


“अच्छा पापाजी अब तो बता दीजिए, चाय - नाश्ता भी हो गया। सस्पेंस पर से पर्दा हटा ही दो यार पापाजी”


“जो हुक्म मेरे आका। याद है - तुमने तीन औरतों की बात कही थी उनमें दो दो पहचान की थी जो चली गई तीसरी आज भी तुम्हारे सामने है। वैसे तो तुम कुछ-कुछ समझ ही चुकी हो जिस ढंग से सवाल कर रही थी। जैसे दुनिया में अच्छी शक्तियां होती है इसी तरह बुरी शक्तियां भी। इन बुरी शक्तियों के उपासक मैली ( काली ) विद्या के जानकार होते है। इनकी पूजा-अर्चना यही मैली विद्या। अपने फायदे के लिए ये कुछ भी कर जाते है, किसी की जान लेने में ही नहीं हिचकते। बस इनका उद्देश्य होता है ‘तन-मन-धन ‘, ऊपर से अपनी धाक, लोगों में डर पैदा करना। कभी बिना वजह ईर्ष्या तो कभी दुश्मनी इत्यादि के कारण अपनी मैली विद्या का प्रयोग कर बहुत कुछ अनर्थ कर देते है। इस तरह किसी न किसी के साथ बुरा करते ही रहते है। किसी पर असर ज्यादा होता है तो किसी पर कम तो किसी पर बिल्कुल नहीं। यह निर्भर करता है सामने वाले की प्रकृति पर। किसी को आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक शारीरिक-मानसिक परेशानियां घेर लेती है। कभी कभी अपने आप सब ठीक हो जाता है तो कभी कभी आध्यात्मिक इलाज़ द्वारा।


 तुम्हारे साथ ही कुछ ऐसा ही हुआ था मगर मानसिक रूप से मजबूत और ईश्वर की कृपा से से कुछ ज्यादा असर नहीं हुआ। इसीलिए तुम्हें सब पता रहता, याद भी रहता था बस रोने-हँसने पर कंट्रोल नहीं था। उनका उद्देश्य था तुम्हें पागल सिद्ध करना। उन दोनों औरतों का किया धरा था। थी तो रिश्तेदार लेकिन रिश्तेदारी भी खूब निभाई और वो सामने रहती है। उसकी आत्मा तेरे अंदर थी, उसी को तेरे साथ बांध दिया था। वो पवित्र आत्मा थी, चली गई है पर उसका अक्स तेरे साथ रहता है। तेरे सामने रहता है, वो पगली तुझसे प्यार का नाता जोड़ बैठी इसलिए उसका अक्स तेरे साथ-साथ चलता है। तेरा हमसाया जो बन चुकी है, एक तरह से शायद जाकर भी नहीं गई। वो गई ज़रूर है मगर उसका अक्स तेरे साथ है, तेरे आस-पास है। अब तो खुश। पीछे ही पड़ गई थी पगली कहीं की”


“पापाजी, मुझे आप पर गर्व है। आपने वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े डॉक्टर भी नहीं सके। एक बात पूछूं?”


 “अब क्या बाकी रह गया?”


“ मैंने कभी आपको कर्म-कांड करते नहीं देखा फिर इतनी बड़ी सिद्धि और ज्ञान कैसे अब हासिल किया?”


 “बस ऊपर वाले की मेहर। जो दिया उसने दिया, तू भी, तेरी जिन्दगी भी, तेरा हमसाया भी”


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