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Kuldeep Kannojia

Romance

3  

Kuldeep Kannojia

Romance

हमें तुमसे हुआ है प्यार

हमें तुमसे हुआ है प्यार

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मेरी मास्टर डिग्री का पहला साल था, मेरी ज़िंदगी की केमिस्ट्री तो अच्छी नहीं रही, इसलिए सोचा कि कम से कम डिग्री तो केमिस्ट्री से कर लूँ। मेरी केमिस्ट्री की प्रोफेसर Mrs. शर्मा मेरी सबसे पसंदीदा टीचर थीं उनका पूरा नाम मीना शर्मा था। उन्हीं की वजह से मुझे केमिस्ट्री में मास्टर डिग्री करने का ख़याल आया। वो हर टॉपिक को इस तरह से समझाती थीं कि एक बार में ही सब समझ में आ जाता। मैडम ने अपने ज़माने में आईएएस के लिए क्वालीफाई किया था, पर उनको पढ़ाना अच्छा लगता था इसलिए वो आईएएस की जगह प्रोफ़ेसर बनीं। 25 साल पढ़ाते-पढ़ाते निकाल दिए मैडम ने मगर उनको कभी भी कलेक्टर न बन पाने का अफसोस नहीं हुआ! उनके चेहरे पर हमेशा सुकून भरी मुस्कान रहती थी।

मैडम सिर्फ मेरी ही पसंदीदा नहीं थी बल्कि कॉलेज में हर स्टूडेंट की फ़ेवरिट केमिस्ट्री वाली मैडम ही थीं। मैं पढ़ाई को लेके थोड़ा गंभीर था इसलिए मैडम मुझपे थोड़ा ज्यादा ध्यान देतीं थीं। शर्मा मैडम के परिवार में उनके अलावा उनके पति और उनकी बेटी पलक थी। सिर्फ तीन लोग ही थे। लेकिन मैडम कॉलेज के हर स्टूडेंट को अपना बच्चा ही समझती थीं। ऐसा बहुत कम होता था कि कोई मैडम की बात न माने, या उनको कोई किसी भी काम के लिए मना कर दे।

अभी मैंने अपनी मास्टर की पढ़ाई शुरू ही कि थी कि तभी शुरुआती दिनों में एक दिन कॉलेज की मॉडल, कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की... बीएससी फाइनल ईयर की स्टूडेंट पारुल मेरे पास आयी और बोली सर मेरे आर्गेनिक केमिस्ट्री में कुछ पॉइंट्स क्लियर नहीं हो रहे हैं और आज मीना मैडम भी नहीं आयी हैं, If you don't mind, will you please help me? सुना है आपकी केमिस्ट्री काफी अच्छी है। वो थोड़ा डरी हुई भी थी। मैंने उसके मनोभाव समझते हुए कहा, "ठीक है, लाइब्रेरी चलते हैं"

पारुल थोड़ा झेंप गयी, और मेरे साथ साथ चलने लगी। जैसा अबतक उसके बारे में सुना था पारुल मुझे उससे उलट ही लगी। थोड़ी चुप-चुप, थोड़ी सहमी सहमी। लेकिन कॉलेज में तो चर्चा था कि पारुल कॉलेज की सबसे बिंदास लड़की है, और बहुत हँसमुख भी। खैर जो भी हो मुझे क्या??? लेकिन उसके बारे में एक बात तो सही थी, वो खूबसूरत तो बहुत थी और जानती थी कि खूबसूरत है...

हम लाइब्रेरी पहुँचे, लाइब्रेरी के अंदर कदम रखते ही सब हैरानी से मुझे और पारुल को देखने लगे, और वहाँ बैठे लड़के लड़कियों ने अपने अंदाज़े लगाने शुरू कर दिये।

लेकिन मुझे इससे कोई सरोकार नहीं था कि कौन क्या सोचता है मुझे बस अपने काम से मतलब था।

मैंने ओर्गानिक केमिस्ट्री की दो किताबें निकालीं और पारुल को हर टॉपिक सही से समझाने लगा लगभग पौने दो घंटे पढ़ाने के बाद मुझे मेरे काम याद आये। इसलिए मैंने किताबें बन्द कर दीं लेकिन... उसके पास पढ़ने के लिए थोड़ा ज्यादा समय था, और वो मन लगा के पढ़ भी रही थी, मगर मुझे आज बिजली का बिल जमा करने जाना था, और घर का राशन भी खरीदना था। मैंने पारुल को बताया कि मुझे अभी जाना पड़ेगा... अभी जो मुझसे बात करने में हिचक रही थी। वो अब थोड़ी सहज हो चुकी थी। उसने मुस्कुराते हुए Bye बोला, मैं चलने लगा तभी वो पलट के बोली, मैंने सही सुना था आपके बारे में सर, आपकी भी केमिस्ट्री बहुत अच्छी है।

मैं थैंक यू कहकर आगे बढ़ गया!

अगले दिन मैं लाइब्रेरी में बैठा अपने नोट्स बना रहा था, थोड़ा थक भी चुका था इसलिए सोचा कैंटीन में जाके कॉफ़ी पी लूँ कुछ देर के लिए फिर से पढ़ने की हिम्मत मिलेगी, असल में मैं कॉलेज में मास्टर्स की डिग्री गोल्ड मैडल के साथ अचीव करना चाहता था। मैं भी अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता था। मैं कैंटीन के गेट तक पहुँचा ही था कि पारुल भी वहीं मिल गई, बोली सर आपको कबसे ढूँढ़ रही थी, पता चला कि आप लाइब्रेरी में थे लेकिन वहाँ जाकर देखा तो कोई नहीं था, थैंक गॉड आप यहाँ मिल गए। मैंने कहा, "मेरा थोड़ा सर दुख रहा है, कॉफ़ी पीने आया हूँ, अगर तुम्हें दिक्कत न हो तो साथ चलते हैं।"

पारुल बोली ठीक है।

हमने साथ बैठकर कॉफ़ी पी लेकिन ज्यादातर हम दोनों चुप चुप ही रहे, मैं एकटक उसे देखे जा रहा था, लेकिन उसकी नज़रें कभी मुझपे ठहर जातीं, और कभी कॉफ़ी के कप को यूँ देखती जैसे कुछ अनकहे सवालों के जवाब ढूँढ़ रही हो।

फिर न जाने क्या सोचके बोली, "सर, आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे... आप ठीक तो हो न, अगर आपकी तबियत सही नहीं है तो हम बाकी के बचे हुए टॉपिक्स कल क्लियर कर लेंगे।

मैं मुस्कुरा दिया और बोला, "अरे नहीं पारुल ऐसा कुछ नहीं है, असल में मेरे पास बात करने के लिए कुछ खास है नहीं यार।"

हमारी कॉफ़ी खत्म हो चुकी थी, वो बोली, "सर, चलें।"

मैंने हाँ में सिर हिलाते हुए जवाब दे दिया। वो कल की तरह मेरी बगल में थी, वैसे एक पल के लिए मैं सबसे खुशकिस्मत इंसान था क्योंकि शायद उससे ज्यादा खूबसूरत लड़की शायद ही मैं फिर कभी देख पाता।

लेकिन ये सिर्फ मेरे ख़यालात थे उसके मन में क्या था ये जानना इतना आसान नहीं था! उसने फिर पूछा, "क्या हुआ सर, कुछ सोच रहे हैं आप। सब ठीक तो है ना।"

मैंने कहा, "पारुल तुम मुझे सर मत बुलाओ, तुम मुझे आप या तुम कह के बुला सकती हो।"

वो बोली ठीक है!

आज लाइब्रेरी में उसे टॉपिक समझाने के बाद, हमने थोड़ी यहाँ वहाँ की बातें भी कीं।

कल की सकुचाने वाली पारुल, अब थोड़ा खुलने लगी थी। खिलखिला के हँसने लगी थी। उसकी हल्की सी मुस्कान और उसकी आँखों पर आते हुए बालों को उसका बार बार सँवारना.. एक अलग ही कशिश थी इस लड़की में। दो दिन में ही मुझे सोचने पे मजबूर कर दिया। आज हम दोंनो ही एक अजीब सी चीज महसूस कर रहे थे।

अब ये हम दोंनो का का रोज़ का काम बन गया था, अब पढ़ाई के साथ गप्पें भी होती थीं। मैंने पारुल की आँखों में अपने लिए कुछ पढ़ लिया था। हम दोंनो ही बस सही मौके का इंतेज़ार कर रहे थे, की कब वो पल आये जब हम अपने अपने दिल की बात एक दूसरे से कहें।

आज पंद्रहवाँ दिन था और मीना मैडम आज भी स्कूल नहीं आयीं थीं। मैंने सोचा शायद कुछ काम होगा अगर तबियत ख़राब होती तो सबको पता होता...लेकिन मैडम एकदम से 15 दिन, और फ़ोन भी नहीं लग रहा था.... मैंने कॉलेज से घर का रास्ता पकड़ा। घर आके कपड़े बदले और मीना मैडम के घर का रास्ता तय करने लगा। मैं सिविल लाइन्स पहुँचा, मीना मैडम का घर पता था... घर पे जाके देखा तो ताला लगा हुआ था। पड़ोसियों से पूछा तो पता चला कि मैडम अपने परिवार के साथ नैनीताल चली गईं हैं। पड़ोसियों से मैडम के नैनीताल के घर का पता लिया.. और घर वापस आ गया।

सोच रहा था कि पता नहीं मैडम अचानक से नैनीताल क्यों चली गयीं, अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लेने के बाद भी मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रहा था। इन्हीं खयालों में गुम था, तभी अचानक फ़ोन बज उठा... मैंने फ़ोन उठाया तो सामने से पारुल बोल रही थी....मैंने कुछ कहता कि उससे पहले ही वो बोल पड़ी, 'क्या हुआ आप आज कॉलेज में आये और तुरंत चले गए, सब ठीक तो है ना। तबियत तो ठीक है आपकी।' मैंने पारुल को जवाब देते हुए कहा कि मैं मीना मैडम के घर नैनीताल जा रहा हूँ, आकर बात करूँगा.. एक 2-3 दिन कॉलेज नहीं आ पाऊँगा।

उसने बुझे हुए मन से ठीक है कहकर बात को ख़त्म करना चाहा फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली, ख़याल रखना अपना, और 2 ही दिन लेना.. मैं आपका इंतेज़ार करूँगी। Byeee.......।

5 घंटे के बाद मैं नैनीताल में था... बस आधा घंटा और फिर मैं मीना मैडम के घर पहुँचने वाला था..।

थोड़ी देर में सब पता चलने वाला था कि मैडम क्यों स्कूल नहीं आ रहीं थीं और अचानक से नैनीताल क्यूँ आ गईं।

आखिर वो पल भी आ गया जब मैं मीना मैडम के घर के बाहर था। दरवाज़े की घंटी बजाई... कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला तो सामने मीना मैडम थीं, मुझे देखकर चौंक गई और बोलीं, "अरे! बेटा तुम, तुम यहाँ कैसे। आओ-आओ अंदर आओ।"

मैडम मुझे घर के अंदर ले आयीं, मैंने मैडम को 4 सालों से देखा है, लेकिन आजतक चेहरे पे ऐसे भाव कभी नहीं थे, कुछ तो था।

सर भी वहाँ आ गए और बोले, बेटा अपनी मैडम से मिलने इतनी दूर चले आये। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, सर अपनी माँ से मिलने आया हूँ तो दूरी कैसी। हम सब मुस्कुरा दिए। रात के 9 बज चुके थे, मैडम ने खाना लगाया, हम सब साथ बैठके खाने लगे। मेरी बगल में पलक बैठी थी, मैडम और सर दोंनो लोग एक दूसरे के बेहद पास बैठे थे।

मेरा ध्यान पलक पर था, बहुत चुप-चुप थी। न जाने कौन से ख़यालों में गुम थी। मैं पहले भी उससे कई बार मिल चुका था, लेकिन उसके चेहरे पर ऐसी शून्यता, इतनी चुप्पी कभी नहीं थी। मुझे याद है मैं जब भी कभी मैडम के घर जाता तो पलक मुझसे अक्सर बात कर लिया करती थी, पलक ऐसी तो कभी न थी।

पलक ने खाना खाया और अपने कमरे में चली गयी।

अब कमरे में सिर्फ हम 3 ही लोग थे। मैडम मुझसे कॉलेज की बाते करने लगीं, मेरी पढ़ाई के बारे में पूछने लगीं। मैं जवाब देता गया।

फिर कुछ देर बाद मैंने मैडम से पूछा.. मैडम आप यहाँ अचानक आ गए, वहाँ से सब छोड़कर, ऐसा क्या हुआ है? और आपका फ़ोन भी बंद है।

मैडम ओर सर दोनों एक दूसरे को देखने लगे, मैडम की आँखों में आँसू छलक आये, फिर सर ने मैडम का हाथ पकड़ा तो मैडम ने कहना शुरू किया, " उस दिन में कॉलेज में थी, और सर जरूरी काम से नैनीताल आये हुए थे, पलक घर में अकेली थी, तब कुछ बदमाश घर में घुस आये, और मेरी बेटी की, मेरी बेटी की इज़्ज़त तार तार कर दी......." मैडम और सर का दर्द छलक उठा।

मैंने दोंनो को हिम्मत बँधाई और कहा, "आपने थाने में शिकायत नहीं की, ये कानून हमारी मदद के लिए ही बना है सर।"

सर बोले, 'बेटी का बाप होना क्या होता है जब तुम खुद किसी बेटी के बाप बनोगे तब समझोगे, तुम्हें क्या लगता है कि हम गए नहीं थे। हम वहाँ गए थे पर पुलिसवालों ने ऐसे ऐसे सवाल पूछे की अंदर तक हिल गए। बड़े-बड़े अधिकारियों के पास मिलने का समय नहीं था। जैसे तैसे वक़्त भी दिया तो उनसे सिर्फ आश्वासन मिला, कोई कार्यवाही नहीं हुई।" सर का गला रुँध गया फिर मैडम ने उनको चुप कराते हुए कहा, "ये रिश्तेदार, ये समाज़ हमें ऐसी नज़रों से देख रहा है जैसे मेरी बेटी गलत हो, हमारा साथ देने की बजाय ये दुनियावाले तरह तरह की बातें करते हैं। मेरी बेटी पूरी तरह टूट चुकी है, कुछ दिन पहले लड़के वाले भी रिश्ता तोड़ के चले गए, कहते हैं ऐसी लड़की को हम अपने घर की बहु नहीं बना सकते। हमें माफ कर दीजिए, हम इज्ज़तदार लोग हैं। इस सब में मेरी बेटी की क्या गलती... समाज और दुनियावालों की दकियानूसी सोच मेरी बेटी की ख़ुशियों को क्यूँ छीन रही है।" मैडम और सर दोनों लोग बुझे बुझे से बैठ गए.....

पहले जब सुनता था कि किसी का बलात्कार हुआ है तो बहुत गुस्सा आता था... लेकिन आज तो समाज के इन ठेकेदारों पर तरस आ रहा था। बलात्कार तो उन बदमाशों ने किया था लेकिन इज़्जत और मान-सम्मान तो समाज के इन ठेकेदारों ने लूट लिया था। जब लोग मर जाते हैं तो ये लोग उनके लिए आंदोलन करते हैं, मोमबत्तियां जलाते हैं। पर जब कोई जिंदा है तो उसके इंसाफ के लिए साथ क्यों नहीं लड़ते। क्यूँ उसकी हालत पर तंज कसते हैं। भगवान से भी लाख गुना ऊँचा स्थान इस संसार में औरत को मिलता है। लेकिन हमने उसे क्या दिया, बेबसी, मायूसी, उसके सपनों को छीनकर बस उसे घर की चार दीवारों में कैद कर दिया। मैं खुद भी मायूस था, मायूस था समाज के इन 4 लोगों से।

सुबह हुई मैं अपने घर वापस आने के लिए तैयार हो चुका था... मैडम रोते हुए बोलीं, "कितने सपने देखे थे अपनी बिटिया के लिए, उसकी धूम-धाम से शादी करूँगी। लेकिन एक झटके में मेरी बेटी की सारी खुशियाँ जल गईं। जिससे वो प्यार करती थी उसने भी बुरे वक्त में उसका साथ नहीं दिया, शादी का रिश्ता तोड़ दिया। उसका मायूस और बुझा चेहरा देख के दुनिया खत्म सी होने लगती है।"

मैंने मैडम को बिठाया और बोला कि आप फिक्र न करो, सब अच्छा होगा। आप ही को तो उसकी ताकत बननी है।

मैं पलक के कमरे में गया, अपने बैड पर बैठी वो खिड़की को एकटक निहारे जा रही थी। मैं उसके पास जाके बैठ गया।

मैंने उससे बात करने की कोशिश की लेकिन वो चुपचाप ही बैठी रही। मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "पलक, जो कुछ हुआ मैं जानता हूँ वो बहुत-बहुत तकलीफदेह है, पर अगर तुम ही हार मान लोगे तो कैसे चलेगा।" उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, और मुझसे गले लगके रोने लगी। मैंने उसे चुप कराया। फिर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बोली, "मेरी वजह से माँ-पापा को कितनी तकलीफ हो रही है, न मैं ऐसे जी सकती हूँ और न उन्हें इस हाल में देख सकती हूँ। जी करता है कि खुदको ख़त्म कर लूँ।

मैंने हौले से उसका हाथ थाम लिया, मैं समझ गया था कि मुझे अब क्या करना था..!

उसका हाथ अपने हाथों में लेकर उससे बोला, 'पलक, जो हो चुका है मैं उसे तो नहीं बदल सकता। लेकिन तुम्हारी तकलीफ को कुछ कम तो कर ही सकता हूँ। वो बोली मैं कुछ समझी नहीं, मैंने उसका हाथ थाम के कहा, 'ये हाथ मैं ज़िंदगीभर थाम के रखना चाहता हूँ बस अगर तुम मुझे ये हाथ पकड़े रहने की इजाज़त दो तो।"

वो हैरानी से मुझे देखने लगी, फिर कुछ सोचके बोली, "तुम्हें पता है कि तुम क्या कह रहे हो, क्यूँ अपनी ज़िंदगीं को मेरे लिए बर्बाद करना चाह रहे हो। मुझे पता भी नहीं कि तुम्हें कभी खुशियाँ दे भी पाऊँगी या नहीं... तुम मेरे लिए अपनी खुशियों को ज़ाया मत करो । और फिर मैं इस सब के लिए तैयार नहीं हूँ, मुझपे ये एहसान मत करो।"

कुछ देर वो फिर चुप हो गई... फिर रुँधे हुए स्वर में बोली, 'जिसको मेरा साथ देना चाहिए था वो तो बीच में छोड़ के चला गया..और एक तुम हो। ये सब किसलिए? ये समझौता क्यूँ?"

मैंने उससे कहा, "मैं जो करने जा रहा हूँ मुझे उसमें बेहद खुशी मिलेगी, और अपने दोस्त के लिए कुर्बानी कैसी। और फिर मुझे तुम जैसी समझदार बीवी कहाँ मिलेगी। पलक, हम जिंदगीभर चाहे एक अच्छे पति-पत्नी कभी न बन पाएँ, पर हम एक अच्छे दोस्त तो हमेशा रहेंगे। "

मैडम को अपना फैसला बताकर मैं अपने घर के लिए चल दिया। किसी के पास कहने के लिए कुछ नहीं था।

घर पहुँचने के बाद मैंने घर में सबको अपना फैसला बताया। माँ-पापा को मैंने पूरी बात बता दी। दोनों लोगों ने मुझे कसके गले से लगा लिया, और एक साथ बोले, मुझे गर्व है कि तू मेरा बेटा है। हम तेरे साथ हैं।

मैं कॉलेज में आया तो पारुल कॉलेज के गेट पे ही मिल गई। बोली सब्र नहीं हो रहा था इसलिए यहाँ आके खड़ी हो गई, तुम्हें कुछ बताना है।

मैं जानता था कि पारुल मुझसे वो ही 3 शब्द बोलना चाह रही थी, लेकिन मैं, मैं सब समझते हुए भी अनजान बनना चाह रहा था।

मैंने पारुल से कहा, "मैं शादी करने जा रहा हूँ।"

पारुल चौंक गई, "क्या????? तुम शादी कर रहे हो???? किस से?? तुमने इतना बड़ा फैसला अचानक कैसे ले लिया!

वो किसी हारे हुए सिपाही की तरह मेरे क़दमों में बैठ गई।

मैंने उसको उठाया और कैंटीन ले गया.....फिर उसकी आँखों में आँखें डालकर सब कह दिया। आखिर चाहकर भी इस लड़की से मैं सच छुपा नहीं सकता था।

मेरी बातें सुनने के बाद पारुल ने कैंटीन में मुझे बहुत लोगों के बीच गले लगा लिया और बोली, "मुझे हमेशा एक ही अफसोस रहेगा कि तुम मेरे नहीं हो सके, लेकिन जो तुम करके आये हो। उससे तुम्हारे लिए और इज़्जत बढ़ गयी है। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ।" फिर कुछ देर चुप रही और बोली, "तुम दोनों हमेशा खुश रहो।" बस मुझसे एक वादा करो... कि अपना ये जो भी आधा अधूरा रिश्ता है इसे हमेशा बनाये रखोगे।

आज शादी के 7 साल बाद मेरी प्यारी सी बेटी है मुस्कान जो बिल्कुल अपनी माँ पे गयी है। आज पलक बहुत खुश है। और मैं भी खुश हूँ कि उसे बेहतर ज़िंदगी दे सका। और बाकी की बची हुई खुशियाँ मुस्कान के आने से पूरी हो गईं।

मैं शायद एक अच्छा प्रेमी तो नहीं बन सका, पर एक अच्छा पति जरूर हूँ। अकसर पलक कहती है कि मैं उसके लिए किसी फरिश्ते के जैसा हूँ। फिर जब मैं पारुल को लेकर सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं एक इंसान ही हूँ। पर ठीक है, आप सबको एक साथ खुशियाँ कभी नहीं दे सकते यही ज़िन्दगी का फलसफा है....कुछ तो कमी रहती ही है।


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