हमारा घर
हमारा घर
सुन...तू मुझसे शादी करेगी क्या...??
रोहित ने आज अचानक ये सवाल किया तो रुचि ने भी बिना सोचे समझे अचानक जवाब दिया : कुछ भी मत बोला कर.. पहली बात तो मुझे शादी नहीं करनी और तुझसे तो कभी ना करूॅं..पागल सा.
Project के काम से आया है ना... जल्दी निपटा और चलता बन...मुझे Parlour जाना है..!
रोहित ने भी पलटकर जवाब दिया : सोच ले फिर मैंने किसी और से शादी कर ली तो रोती रहेगी...और Parlour जा के क्या हो जाएगा, दिखेगी तो तब भी चुड़ैल ही ना...काम तुझसे नहीं है वैसे भी अमन भैया से है, तू जा, तुझे पकड़ के रखा है क्या...?? यार जा ना तू काम कर और चला जा, और आज क्या अचानक ये शादी...एक तो तुझसे बनती नहीं मेरी और हर बात का उल्टा जवाब देता है...शादी करनी ही होगी तो किसी ऐसे समझदार से लड़के से करूंगी जो मुझे...बस बस ज़मीन पर आ जा, रोहित ने रुचि के बाल खींचते हुए कहा...देख एक तो तू ये बाल मत खींचा कर किसी दिन मुझे गुस्सा आ गया न तो..तो क्या?? बचपन से और आता क्या है तुझे गुस्से के सिवाय...रोहित ने फिर से रुचि को छेड़ा, तो तुझे फिर भी मेरे ही आस पास क्यों मॅंडराना है? चला जा ना, जा के घर बसा ले..चला जा यहाॅं से...रुचि ने झुॅंझलाते हुए जवाब दिया..
अरे !! फिर शुरू हो गए तुम दोनों, कब बड़े होगे पता नहीं और वो जब भी घर आता है तू उसको ऐसे ही क्यों सुनाती रहती है?? माॅं ने रसोई घर से रुचि को डाॅंठते हुए कहा और रुचि ने मुॅंह बनाते हुए रोहित से कहा "आया मत कर मेरे घर बता रही हूॅं"... तेरा घर नहीं पगली तेरा "मायका" है ये..हाॅं तू चाहे तो मेरे घर को "हमारा घर" कह सकती है..देखो आंटी इसने फिर से "मेरा घर" बोला इसको समझ ही नहीं आता पराया धन है ये, रोहित ने फिर से रुचि को छेड़ा और रुचि ने मेरी ओर शिकायत भरे अंदाज़ में बोला भैया आप इसको आने क्यों देते हो घर में और पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई... ये सारी नोक झोंक सामने सोफ़े पर बैठे अखबार पढ़ते हुए पापा सुन रहे थे और मन ही मन मुस्कुरा रहे थे..
रुचि के जाते ही रोहित ने पापा से हॅंसते हुए कहा, लो अंकल फिर से चली गई ये नकचढ़ी और पापा भी उसकी बात पर जोर से हॅंस पड़े...चलो रोहित अंदर कमरे में बैठकर बाकी के discussions करते हैं, मैने Project का बहाना बनाते हुए रोहित से कहा..और काम खत्म होते होते उससे पूछ ही लिया कि आज अचानक गुड़िया से ये सवाल क्यों??? घर में सब ठीक है ना?? अंकल आंटी?? भैया भाभी?? सोनी??
सब ठीक ही है भैया..रोहित ने थोड़ा परेशान होकर बताना शुरू किया
भैया शायद अपने काम के चलते इस साल शहर से बाहर shift हो जायेंगे और भाभी को भी उनके साथ जाना ही होगा, सोनी को भी hostel जाना ही है...पापा की तबीयत का भी आप जानते हो तो मैं बस यही सब सोचकर माॅं के लिए थोड़ा...और बोलते बोलते गहरी साॅंसें भरते हुए उसने बात बदलने की कोशिश की..इस नकचढ़ी के दिमाग में पता नहीं क्या है....
भैया ये भी तो हो सकता है कि लाडो को कोई और पसंद हो...श्रुति ने कमरे में आकर मुझे और रोहित को चाय का cup पकड़ाते हुए कहा... नहीं भाभी ऐसी कोई बात वो नकचढ़ी मुझसे छुपा ले तो मर न जाएगी पेट दर्द से अब तक...रोहित ने श्रुति की बात को नकारते हुए कहा...हाॅं जी भैया लेकिन हमारी लाडो कुछ बातें मन में दबा लेती है जानते हैं ना आप और फिर....अरे बस श्रुति क्या तुम भी बिना सोचे बोल रही हो इन दोनों की नोक झोंक में बचपन से एक दूसरे के लिए बेहद अपनापन है और २ साल से तो तुम भी देख ही रही हो ना दोनों को साथ और ऐसी कोई बात गुड़िया तुमसे भी नहीं छुपाएगी न?? मैंने श्रुति को रोकते हुए कहा...लेकिन भैया, श्रुति भाभी की इस बात से मैं सहमत हूॅं कि वो बहुत सी बातें अपने मन में छुपा लेती है, रोहित ने थोड़ा दुखी होते हुए कहा...अच्छा तो आज मैं खुद ही उससे पूछ लेता हूॅं साफ़ साफ़, वो मुझसे कभी झूठ नहीं बोलती, मैंने रोहित का हाथ पकड़ते हुए कहा...ठीक है भैया बाकी की presentation मैं घर पर ready कर लूॅंगा...इतना कहकर रोहित ने बैग उठाया और बाहर निकलते हुए माॅं पापा को प्रणाम कर चला गया...
आज रुचि जब से कमरे में गई तब से बाहर नहीं आई..ना parlour गई..ना TV shows, ना भाभी से मस्ती, ना पापा से कोई ज़िद, ना माॅं से कोई फरमाइश तो शाम होते होते मैं ख़ुद उसके कमरे में जा पहुंचा...जाकर देखा तो गुड़िया रानी बेड पर लेटी हुई छत को एकटक देखे जा रही थी...और आज राजकुमारी के मिजाज़ बिल्कुल बदले हुए हैं मैने हमेशा की तरह उसे छेड़ते हुए कहा और वो अचानक बेड से उठकर मेरे गले आ लगी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी मानो मैंने उसकी किसी ऐसी बात को पकड़ लिया हो जिसे वो खुद से भी छुपा रही थी...और ऐसा आज २६ साल में पहली बार हुआ था..रोते रोते बोली, भैया देखो ना इस अड़ियल रोहित को कहता है उसके घर को अपना घर बोलूॅं..क्यों बोलूॅं भला..मेरा घर ये है और हमेशा यही रहेगा..शादी के बाद भी मैं इसे ही अपना घर कहूँगी... हाॅं गुड़िया ये ही तेरा घर है और रहेगा और इसी बात पर मैंने मौका देखते ही पूछ लिया शादी तो करनी है न तुझे उससे... हाॅं भैया करनी है उसी से लेकिन घर मेरा यही रहेगा आप उसको समझा दो, फिर से रोते हुए बोली...मुझे बचपन से जानता है ये फिर भी पंगे लेता है, मैं अभी मम्मी पापा के पास जाकर इसकी शिकायत लगा कर आऊॅंगी, रुचि ने अचानक से अपने ऑंसू पोछते हुए कहा.. मैंने उसको रोक कर कहा, लेकिन गुड़िया माॅं तो तुझे ही दाॅंट देती हैं और पापा भी हॅंस देते हैं तो फिर... ओहो भैया मैं माॅं पापा की नहीं रोहित के मम्मी पापा की बात कर रही हूॅं..वो हमेशा मेरा support करते हैं, उसके घर में उससे ज्यादा मेरी चलती है पता है ना आपको, अभी एक फोन घुमाने की देर है बस इसका सारा attitude निकल जाना है...तो फिर लाडो आगे ऐसे क्यों बोली थी तुम उनसे शादी की बात पर..श्रुति ने रुचि को छेड़ते हुए दहलीज पर खड़े खड़े कहा...अरे भाभी पहले तो अंदर आओ माॅं सुनेंगी तो फिर उसकी side ले के कुछ बोलेंगी और ऐसे अचानक बोलता है शादी करेगी क्या तो क्या बोलती उसको कि हाॅं करूंगी?? आया बड़ा...उस पर भी इतना attitude...और अपना pet dialogue "ऐसा ही हूॅं मैं" तो बोला ही नहीं आज और हिम्मत देखी थी मेरे ही घर आकर मेरे ही सामने मुझे ही पराया धन बोल गया बताओ...अच्छा गुड़िया और तू जो अभी उसके घर फोन करने की धमकी दे रही थी उसका क्या...?? मैंने रुचि के कान खींचते हुए कहा...और आज अचानक लगा कि मेरी गुड़िया दुल्हन बन के चली जाएगी तो सच में ये घर "मायका" बन जाएगा....
रोहित ने रात होते होते presentation के लिए मुझे कॉल किया और call cut करते हुए बोला, भैया आपने बात की क्या रुचि से ??
अरे आज नकचढ़ी से रुचि..आज आपके भी मिजाज़ बदल गए शर्मा जी...मैंने रोहित को थोड़ा छेड़ते हुए कहा...और हाॅं बात कर ली है सोच रहा हूॅं कल परसों में पापा से बोलूॅं कि अंकल से बात कर लें और बात क्या करनी है direct शादी की date निकलवाते हैं...माॅं पापा अंकल आंटी तो वैसे भी बस तुम दोनों की मर्ज़ी के इंतज़ार में हैं...अरे भैया इस नकचढ़ी ने हाॅं कर दी? मतलब इसका attitude मेरे सामने ख़त्म नहीं होने वाला...रोहित ने हॅंसते हुए कहा...बस फिर कुछ ही दिनों में शुरु हुआ सिलसिला सगाई से लेकर विदाई तक का..सब कुछ बदल रहा रहा लेकिन इन दोनों की नोक झोंक नहीं...और देखते ही देखते ६ महीने के अंदर मेरी गुड़िया बन "रुचि रोहित शर्मा".
शादी को एक महीना बीत गया और रोहित रुचि सिर्फ एक बार घर आए थे...रोहित के भैया भाभी को भी शहर से बाहर shift होना था...सोनी को भी hostel लौटना था और इसी सब में हमारी गुड़िया भी कोशिशें कर रही थी "अपना घर" संभालने की...
कुछ दिनों बाद रुचि और रोहित घर आए तो सबसे मिलने के बाद गुड़िया बिल्कुल शांत सी मेहमान सी बनकर सोफे पर बैठ गई और चारों तरफ़ नजरें दौड़ने लगी...क्या हुआ लाडो आज अपने ही घर को बड़े गौर से देख रही हो..श्रुति ने रुचि के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा...अरे भाभी आज बड़े दिनों बाद देख रही हूॅं ना तो सोच रही हूॅं यहाॅं की दीवारों पर "हमारे घर" से ज़्यादा dark paint है और मुझे light shade dekhne की आदत हो गई है तो थोड़ा सा अलग लगा...
मुझे light shade dekhne की आदत हो गई है तो थोड़ा सा अलग लगा... और श्रुति का हाथ पकड़कर रसोई में चली गई और बर्तन टटोलते हुए बोली..क्या बनाया है..कुछ अच्छा सा बना के हमारे लिए भी रख देना शाम में लेती हुई जाऊॅंगी... क्यूॅं तुम आज यहाॅं नहीं रुकोगी क्या "अपने घर"??
रोहित ने अभी भी उसे छेड़ना कहाॅं छोड़ा था, ये तो "मायका" है यहाॅं सब तुम्हारी side लेते हैं, घर तो वहाॅं है जहाॅं तुम्हारी एक नहीं चलती, ये कहकर रुचि ठहाका लगाकर हॅंसने लगी, रोहित ने सुकून भरी मुस्कुराहट के साथ रुचि की तरफ देखा...मैं, श्रुति,माॅं, पापा उन दोनों को खुश देखकर एक दूसरे को देख मुस्कुराए और "मायके" आई हुई "बहू" से मैंने reporter बनते हुए पूछा ,तो रुचि जी कैसा महसूस कर रही हैं आप "अपने घर" में..??
बस मेरा इतना पूछना और गुड़िया शुरू हो गई...भैया आपको पता है बचपन से लेकर शादी होने तक "हमारा घर" मुझे बस ऐसे लगता था कि बस एक दोस्त का ही तो घर है...वैसे तो मम्मी पापा हमेशा से इस रोहित से ज्यादा मुझे प्यार करते आए हैं लेकिन अब...तू ये नाम लेना कब छोड़ेगी उनका पति हैं वो अब तेरे...कभी अपनी भाभी को सुना है ऐसे नाम लेते हुए?? माॅं ने रुचि को बीच में टोकते हुए कहा..
ओहो माॅं...ये मेरे पति परमेश्वर और आपके पूज्य दामाद जी की "हमारे घर" में एक नहीं चलती, इनको आप लोग ही बिठा के रखो सातवें आसमान पर...रुचि ने रोहित की ओर मुॅंह बनाते हुए कहा और हम सब ये सुनकर ज़ोर से हॅंस पड़े...
रुचि ने अपनी non stop बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा, भाभी आपको पता है सोनी का daily good morning मैसेज आता है ना तो मेरे दिल को बड़ा सुकून मिलता है, ऐसा लगता है जैसे मैं आपको daily सुबह सुबह hug किया करती थी उसी तरह उस messege के ज़रिए वो भी मुझे hug कर रही हो..और भाभी ने भी shift होने से पहले ही एक एक चीज़ बहुत अच्छे से समझा दी थी, अभी भी call पर समझाती रहती हैं...भैया के साथ तो comfortable थी ही लेकिन अब थोड़ा जेठ जी वाली feel आ जाती है, और मजे की बात पता है क्या है भैया सब लोग इन महाशय को सुनाते हैं कि उससे ढंग से पेश आना... हाए जो सुकून मिलता है...और हम सब उसकी बातों को सुन सुन के मुस्कुराए जा रहे थे...बस थम जा चटर पटर, चटर पटर...रोहित ने रुचि को रोकते हुए कहा...
ओहो..तुम रुक जाओ ना यार, पापा आपको पता है शादी के बाद बहुत सारी चीज़ें बदल गई...मुझे आप सबकी याद तो आती है और कभी कभी ऐसे मन भी करता है कि यहाॅं आ के रुक जाऊॅं कुछ दिन और...फिर अचानक बीच में रुक कर रुचि ने श्रुति की तरफ देखा और बोली...भाभी आप पहले सही कहा करती थी कि "मायके" में रुकने का मन तो करता है लेकिन "अपने घर" से जाने का मन नहीं करता..!! और तब मैं सोचती थी कि मैं तो यहाॅं आकर महीनों रुका करूॅंगी लेकिन नहीं...
श्रुति ने रुचि की बात पर हामी भरते हुए कहा और क्या लाडो वहाॅं दो दिन के लिए जाऊॅं तो यहां पापा जी के ludo से लेकर मम्मी जी के tv serials की gossips तक सब pending रह जाता था और अब तुम्हारे काम भी तो मुझे करने पड़ते हैं...मम्मी जी से new dishes की फरमाइश भी अकेले करूॅं, पापा जी के साथ ludo भी खेलूँ उस पर भी पापा जी की cheating और तुम्हारे भैया की paitings में भी साथ दूं...वैसे फायदा ये है के तुम्हारे हिस्से का भी सारा प्यार अब मुझे मिल जाता है और दोनों ननद भाभी ज़ोर से हॅंसने लगी...
रुचि की बातें सुन के मुझे आज २ साल पहले का वो scene याद आ गया जब मैं और श्रुति उसके मायके गए थे और वो भी इसी तरह अपनी भाभी को एक एक बात बता रही थी कि किस तरह वो कुछ ही दिनों में वो अपने नए घर में जा के बस गई...माॅं पापा रुचि सबके बारे में बता रही थी कि उसे ज़रा भी एहसास नहीं होता कि उसकी शादी इतनी जल्दीबाजी में "चट मंगनी पट ब्याह" करते हुई है और नए घर में सब लोग बिल्कुल नए हैं, जिनके साथ शादी हुई उन्हें भी ठीक से नहीं जानती...
फिर रुचि थोड़ा emotional होते हुए बोली आप सबको पता है "मेरा घर" कब "मायका" और उस बचपन वाले दोस्त का घर कब "हमारा घर" बन गया इसका पता ही नही चला... exactly लाडो और इसके पीछे हमारे family members का ही तो support रहा बस...!!
"इन दोनों की बातें सुनकर हम सब मौन थे...माॅं पापा एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बस हम चारों की तरफ़ देखे जा रहे थे तो फिर रोहित और मुझे भी समझते कहा देर लगी थी कि "मायका" और "हमारा घर" तक का सफर ना तो श्रुति अकेले तय कर सकती थी ना ही रुचि।"
