Jyoti Ahuja

Romance Inspirational Children

4.4  

Jyoti Ahuja

Romance Inspirational Children

हम तुम संग है !

हम तुम संग है !

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आज अनुराग जी अपनी पत्नी कल्याणी के संग अपना साठवां जन्मदिन मना रहे थे।

वैसे परिवार में पत्नी कल्याणी और दो बेटे साहिल और सुमित थे और साथ ही उनकी पत्नियां दिशा और निधि रहते थे।

दोनो बेटे अब अपनी अपनी पत्नियों के साथ नौकरियों के चलते दूर अलग _अलग शहरों में रहने लगे थे।और दो तीन महीनो में एक आधी छुट्टी पर घर आ ते थे।

कल्याणी जी बेहद ही सुलझी हुई बहुत प्यारी महिला थीं।सदा मुस्कुराते रहना उ नका सबसे बड़ा गहना था। इसी बात पर ही तो अनुराग जी उन पर फिदा होकर उन्हें अपनी जीवन संगिनी बना कर लाए थे।

अनुराग जी का जीवन में एक ही फंडा था।किसी से भी कुछ उम्मीद मत करो।जितनी उम्मीद बढ़ेगी यदि पूरी नहीं हुई तो दुख की अनुभूति होती है।इससे अच्छा है अपना जीवन अपने अनुसार जीयो।उन्होंने अपने बच्चों से भी कोई उम्मीद नहीं बांध रखी थी कि वे उनके सुख दुख में उनका साथ दे।

वे तो बस इतना चाहते थे अपनी पत्नी कल्याणी के साथ अच्छे से दिन व्यतीत कर सकें।इस उम्र में पति पत्नी का साथ हो और क्या चाहिए उनका ऐसा मानना था।

अपनी पत्नी कल्याणी को बहुत प्रेम करते थे अनुराग जी।

पर कल्याणी जी ठहरी एक मां और एक औरत भी।

वे भी अन्य स्त्रियों की तरह दोनो बच्चों पर जान लुटाती थी।थोड़ी बहुत उम्मीद तो हर मां अपने बच्चों से करती है तो वैसा ही कल्याणी जी भी करती थीं।

जब छोटे बेटे सुमित को भी बड़े बेटे की तरह बाहर दूर नौकरी मिल रही थी।

तब उस दिन मां ने बेटे से कहा" बेटा सुमित तेरा दूर जाना ज़रूरी है क्या?इसी शहर में भी तो अच्छी नौकरी मिल सकती है।

इस पर सुमित मां को कहता है" मां अच्छी सैलरी मिल रही है उस कंपनी में।तो निधि भी कहती कि क्यों इस हाथ में आए अवसर को जाने दे।

इस पर मां फिर कहती है " पर बेटा साहिल भी दिशा के साथ दूर चला गया मैंने सोचा था चलो एक बेटा तो पास रहेगा ये सोच कर तसल्ली कर ली थी मैंने।अब तू भी चला जायेगा तो घर काटने को दौड़ेगा।

इस पर तुरंत निधि बोलती है" मम्मी ! साहिल भईया और भाभी की तरह सुमित के भी सपने है कि वे आगे तरक्की करें।अच्छा कमाएं।अब इस शहर से ज़्यादा नए शहर में अवसर ज्यादा अच्छा हो तो इसमें हर्ज ही क्या है?

मुझे लगता है आपको हमें वहां जाने से नहीं रोकना चाहिए।

और कल्याणी जी की एक नहीं चली।

उम्मीद का दिया जो जला बैठी।जरूरी तो नहीं कि सदैव वो दिया जलता ही रहे।

और सुमित भी घर से दूर रहने चला गया।

जब वे लोग घर से जा रहे थे उस दिन कल्याणी जी के चेहरे पर जो मुस्कान सदा रहती थी वह छू मंतर हो गई थी।

उनके जाने के बाद बहुत फूट फूट कर रोई थी वह।

तब अनुराग जी ने बड़े प्यार से उनके आंसू पोछते हुए कहा"रोती क्यूं हो साहिल की मां।

कोई विदेश थोड़े ही गए है बच्चे।

आते रहेंगे हमसे मिलने।

उन्होंने पत्नी से फिर कहा"जमाना अब ऐसा ही है।अब मां बाप भी बच्चों के अच्छे करियर के लिए उन्हें दूर बाहर भेज रहे है और संताने भी पहले जैसी कहां रही।वे भी शादी के बाद मां बाप के साथ ज़्यादा कहां रह पाती है।ये तो तुम भी समझती हो।

इस पर कल्याणी जी कहती है" घर खाने को दौड़ेगा।कोई रौनक नहीं होगी।

इस पर हंसते हुए अनुराग जी पत्नी को कहते है" तुम ये समझ लो कि तुम नई नवेली दुल्हन बन कर आज ही इस घर में आई हो।

"याद है हम इस घर में कुछ वर्षो पहले अकेले ही तो थे। मैं जब काम से घर आता था तो तुम कैसे शरमां जाती थी मुझे देखते ही।

"और तुम्हारी मुस्कान के तो हम तब भी दीवाने थे और आज भी दीवाने है।

तब शरमाते हुए कल्याणी जी कहती है" ये देखो बुड्ढे हो गए है जनाब।बालों में सफेदी आ गई है।पर इश्क़ का भूत अभी भी सवार है इन पर।

तभी अनुराग जी कहते है। "मैं बुड्ढा पर मेरी बीवी आज भी प्यारी और जवान है। तो चलो फ़िर से इश्क़ लड़ाएं सनम।

अब देखो जी बच्चे तब भी नहीं थे अब भी नहीं है।जीवन जहां से शुरू हुआ वहीं आकर फिर से थम गया।बस फर्क इतना है तब हम जवान थे और आज हम बुड्ढ़े हो गए है।

और हंसते हुए अनुराग जी पत्नी से फिर कहते है" और बुड्ढे हम शरीर से हुए है।दिल तो अभी भी जवान है सनम।

हम दो से चार होते होते फिर दो हो गए।

परन्तु यह हम पर निर्भर करता है कि हम अब जीवन कैसे जीते है।साथ तेरा मेरा ,मेरा तेरा अब तो यही सहारा है।

इंसान का धरती पर जन्म और मृत्यु का समय निश्चित है जिसे कोई नहीं बदल सकता ! मुझे नहीं पता कि हम में से कौन पहले विदा होगा ! परंतु मैं तुमसे वादा  देता हूँ कि मैं तुम्हें मजबूत अवश्य बना दूँगा !

समझी मेरी समझदार बीवी !

इतने में कल्याणी जी उन्हें चुप कराते हुए कहती है एसे ना कहिये ! अभी हम कहीं नहीं जा रहे ! समझे आप ! ना मैं और ना आप !

ये सब सुनकर अनुराग जी अपनी पत्नी को गले लगा लेते है।


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