बुलंद हौसले
बुलंद हौसले
शौर्य स्कूल से घर वापस आते ही बहुत उदास होता है।उसे उदास देखकर घर के सभी लोग उसे पूछने लगते हैं।"क्या हुआ बेटा? बताओ तो सही। बहुत उदास नजर आ रहे हो।
तभी शौर्य कहता है।" आप सबको पता है! थोड़े दिनों के बाद हमारे स्कूल में स्पोर्ट्स कंपटीशन (खेल प्रतियोगिता)रखा गया है। आपको तो पता ही है मुझे स्पोर्ट देखने और खेलने का कितना शौक है।परंतु!" ऐसा कहकर उदास मन से अपने पैरों की तरफ देखने लगता है!
उदास होता भी क्यों ना। ईश्वर ने पूर्णतया चलने की शक्ति जो नहीं दी थी। दौड़ना तो बहुत दूर की बात थी। टेढ़ा और धीरे चलने बच्चा कहां स्पोर्ट्स कंपटीशन में भाग लेने का सोच सकता था।दरअसल शौर्य को एक बीमारी थी। उसके पैर सामान्य पैर नहीं पूर्णतया अंदर की तरफ मुड़े हुए थे जिसे क्लब फुट कहते हैं। इस बीमारी में जन्म से ही बच्चे के पैर मुड़े हुए होते हैं। जिससे वह अपना संतुलन ठीक से नहीं बना पाता। ऐसे बच्चों की एड़ी जमीन से उठी हुई रहती है। ऐसे बच्चों को जूते पहनने के बाद भी संतुलन बनाने में काफी दिक्कत होती है।स्कूल में स्पोर्ट्स कंपटीशन का सुनकर शौर्य को खुशी की बजाए दुख का अनुभव हुआ। अन्य बच्चों की भांति वह स्पोर्ट्स कंपटीशन में हमेशा की तरह इस बार भीभाग नहीं ले पाएगा ।ऐसा सोच के वह बहुत ही उदास हो गया था।किसी से बिना बात किए हुए अपने कमरे में उदास मन से चला गया।
तभी उसकी मां अदिति कमरे में आती है। और उसे कहती है। "क्या हुआ मेरे प्यारे बेटे को? उदास है।इस बार भी स्पोर्ट्स कंपटीशन में मेरा बेटा भाग नहीं ले पा रहा है इसलिए उदास है।
"उदास नहीं होते मेरे बच्चे। हिम्मत नहीं हारना। इस बार तुम भाग लोगे। जरूर लोगे।"
अदिति ने बेटे से फिर कहा"मैं तेरे साथ हूं मेरे बच्चे। तू कोशिश कर। क्या हुआ अगर तेरे पैरों में दिक्कत है। तू फिर भी कोशिश कर बेटा।मैं कल से ही तेरे साथ प्रैक्टिस के लिए चलती हूं।"
मां ने फिर कहा "तू एक बार गिरेगा। दो बार गिरेगा। बार-बार गिरेगा। चल नहीं पाएगा।फिर एक पल ऐसा आएगा जब तू भागेगा और लोगों के लिए एक मिसाल कायम करेगा।हौसले बुलंद रख बेटा। तेरे हौसले ही तुझे अपनी मंजिल तक पहुंचाएंगे। हौंसले को उड़ान दे बेटा।बिल्कुल नहीं घबराना। मैं तेरे सदा साथ हूं।"मां ने बेटे को कहा।
मां की ऐसी उत्साहवर्धक बातों को सुनकर बेटे के उदास मन में आशा की एक किरण जाग उठती है। उसके मायूस चेहरे पर कलियों जैसी मुस्कान आते देख मां के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।वह मां जिसका बेटा जन्म से ही पूर्ण ना हो। उसके दिल पर क्या बीतती होगी।यह एक मां ही समझ सकती है।
परंतु उसने फैसला कर लिया था कि इस बार वह हार नहीं मानेगी ना ही अपने बेटे को हार मानने देगी।कोशिश करके रहेगी ।हिम्मत नहीं हारेगी।
अगले दिन स्कूल से घर वापस आने के बाद जैसे ही शौर्य अपने कमरे में आता है। उसे एक नए प्रकार के जूते देखने को मिलते हैं। वे जूते उसकी मां ने खास उसके पैरों के हिसाब से बनवाए थे।जूते देखकर शौर्य की आंखों में चमक आ जाती है और अब उसे स्पोर्ट्स कंपटीशन में भाग लेने का सपना साकार होता नजर आता है।उसी शाम को सभी को चाय देने के बाद अदिति शौर्य को कहती है। "हां !तो मेरा सिपाही तैयार।"
इतने में शौर्य कहता है। "बिल्कुल तैयार।और दोनों मां बेटा पास के एक मैदान में अभ्यास के लिए चल पड़ते हैं।अभ्यास के दौरान शौर्य को बहुत तकलीफ होती है। पहला दिन तो मानो रेस में भाग लेना असंभव सा प्रतीत हो रहा था। पर मां के विश्वास को देखते हुए शौर्य ने अपना विश्वास नहीं खोया।और शौर्य के विश्वास को देखते हुए मां का विश्वास अटल होता गया।अगले ही दिन स्कूल में शौर्य ने स्पोर्ट्स कंपटीशन में अपना नाम दर्ज करा दिया।पहले तो स्कूल में उसके भाग लेने पर मनाई कर दी गई। परंतु उसके अटल विश्वास के कारण स्कूल की प्रधानाचार्य ने हां कर दी।उसके बाद प्रतिदिन अभ्यास जारी रहा।
आखिरकार स्पोर्ट्स डे आ ही गया।उस दिन पूरा परिवार शौर्य का हौसला बढ़ाने उसके साथ स्कूल आया हुआ था।जिस जज्बे के साथ शौर्य ने स्पोर्ट्स कंपटीशन में भाग लिया। वह देखने लायक था।सब बच्चे बहुत तेज गति से भाग रहे थे। और वह उनसे काफी पीछे था। परंतु उसका उस रेस में जोश के साथ भागना उसकी मां और उसके पिता के लिए जीत से भी बढ़कर था। वहां बैठे सभी दर्शक तालियों की गूंज से उसका स्वागत कर रहे थे।
रेस खत्म हो जाने के बाद भागकर मां ने बेटे को जोर से गले लगा लिया था।दोनों के नैनों से मोती रूपी अश्रु की धाराएं बह रही थी।मां ने शौर्य के माथे को चूमते हुए कहा "तूने कर दिखाया मेरे बेटे! मेरे सिपाही!'स्टेडियम में बैठे हुए प्रत्येक व्यक्ति के लिए शौर्य ने एक मिसाल कायम की थी।शौर्य और उसकी मां का जिंदगी जीने का सकारात्मक नजरिया कि "चाहे किसी भी प्रकार की जिंदगी हो।कोशिश करना नहीं छोड़ना चाहिए। वहां बैठे हर एक व्यक्ति के लिए अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर गया।स्कूल के प्रधानाचार्य ने शौर्य के बुलंद हौसले को देखते हुए उसे एक ट्रॉफी से भी नवाजा।बाद में कुछ समय के बाद उसका इलाज हुआ।जिससे कुछ हद तक उस समस्या का निदान हुआ।
जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया शौर्य को आगे चलकर कदम कदम पर चुनौतियों से लड़ने की शक्ति देता गया। यही उसकी असली जीत थी।
उसी शौर्य ने ना केवल यह सीख स्वयं ली कि जीवन में हमेशा सकारात्मक नजरिया रखना चाहिए बल्कि दूसरों को भी सकारात्मक सोच रखने के लिए प्रेरित कर दिया!