Abhinav Singh

Tragedy

3.7  

Abhinav Singh

Tragedy

हक ': 'अस्तित्व की खोज'

हक ': 'अस्तित्व की खोज'

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इस कहानी में माँ और उसके कोख से जन्मे किन्नर की मनोस्थितियों और पति के द्वारा पत्नी के साथ किया गया अमानवीय व्यवहार के कारण विवश होकर पत्नी के आत्महत्या करने का चित्रण किया गया है। और उसका बच्चा जिसका नाम रीना ( किन्नर) हैं वह सब कुछ सहने पर मजबूर रहती है, और अपने 'हक और अस्तित्व की खोज 'के लिए संघर्षरत रहती है। जब बच्चे को अपनी माँ और पिता की जरूरत होती है, तो उस समय उसे घर से निकाल दिया जाता है।

"जिस हाथ में खेलने के लिए खिलौने को पढ़ने के लिए कॉपी कलम होनी चाहिए , उस समय उसके हाथ में घुँघरू पकड़ा दिया जाता है।"

वह अपने 'हक और अस्तित्व की खोज' के लिए और पेट की भूख ' मिटाने के लिए, अपने साथ समाज द्वारा किए गए अभद्र व्यवहार को सहन करती है।


हक : "अस्तित्व की खोज"

बिरजू अपनी पत्नी हीना से कहता है- लो कुछ खा लो और उसकी पत्नी कुछ भी खाने से मना कर देती है। उसकी पत्नी हीना गर्भवती रहती है इस बात की खुशी बिरजू के फूले नहीं समाते हैं और ऐसा लगता मानो वह खुशी से पागल हो गया है।

कुछ क्षण बाद रोने की आवाज़ बिरजू के कानों में पड़ता है और वह बहुत प्रसन्न हो जाता है कि वह पिता बन गया, लेकिन उसकी पत्नी हीना भी बिलख-बिलख कर रो रही है, क्योंकि वह किन्नर की माँ बनी है।

बिरजू अपनी पत्नी से पूछता हैं क्यों रो रही हो??

उसकी पत्नी हीना अस्पष्ट स्वर में बोलती है -

"मैंने जिस बच्चे को जन्म दिया हैं वास्तव में वह किन्नर है।"


यह सुनकर बिरजू की आँखें आश्चर्य से भर गया ऐसा लगा जैसे आकाश से बिजली गिर गई हो और उसके सामने अंधकार छा गया है और वह चक्कर खाकर वहीं गिर गया हो । कुछ क्षण बाद जब वह चेतन अवस्था में आता है तो उसके हृदय के अंदर से एक आवाज़ आया कि -

'हे भगवान मैंने ऐसा क्या पाप किया था जो मैं एक किन्नर का पिता बना।'

समाज में यह बात अग्नि की तरह फैलती है कि हीना ने एक किन्नर को जन्म दिया है।

और समाज की स्त्रियां एक दूसरे से कहने लगी कि माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, तो किन्नर की माँ ही सही।

ऐसी तीखी व्यंग का प्रहार वह सहती हुई अपने आपसे प्रश्न पूछती है??

"क्या उसका भी कोई अस्तित्व है इस समाज में?

हिना अपने कोख से जन्मे किन्नर का नाम" रीना " रखती है।


बिरजू और उसकी पत्नी हीना में लड़ाइयां होती है और दूरियाँ बढ़ती जाती है। बिरजू हीना को दोष देता और रीना को जहर देकर मार देने के लिए कहता है, लेकिन हीना ऐसा करने से इंकार कर देती है। हीना के न मानने पर एक दिन बिरजू अपनी पत्नी हीना को तलाक देने के लिए तैयार हो गया।

 हिना और बिरजू दोनों कोर्ट में गए और तलाकनामा पत्र लेकर कोर्ट के बाहर से ही दोनों का रास्ता अलग हो गया।

 "रीना न तो घर की रह सकी और न ही समाज की"



रीना किन्नर समुदाय में चली जाती है और लता को सबसे अच्छी दोस्त बना लेती है।एक दिन दोनों के साथ शहर के छोटे-मोटे गुंडे बदतमीजी करते हैं

और जब शिकायत के लिए थाना पर जाती हैं और न्याय की दुहाई मानती है,तो थाने के कांस्टेबल के द्वारा भी उन दोनों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता हैं जो दयनीय है।

और वह दोनों अपने आपको अभागन मानती हुई कहती हैं कि - "कि हमारा समाज में कोई अस्तित्व ही नहीं हैं अपनी पेट की भूख मिटाना भी दुर्लभ हो गया है".....।

वह कहती है कि मेरी तो दुनिया ही अलग हैं , मेरा काम पैरों में घुंघरू बांधकर , तालियां बजाते हुए ला भैया ₹10 दे दे कहना है .... ।

 किसी ने दस रुपए दे भी दिए किसी ने वो भी नहीं दिए , इतना ही नहीं अपितु जब रेड लाइटों पर गाड़ी वालों से पैसे मांगती हूँ, तो कोई अपना शीशा तक भी खोलने को राजी नहीं होते , अगर खोलते भी हैं,तो कहते हैं चल हट कोई काम करना तो है ही नहीं .....।

जब रीना कुछ गाड़ी वाले से अपने घर में काम देने की बात करती हैं तो कई लोग भी अनसुना करके आगे चला जाते हैं ।


रीना कहती हैं - " एक पुरुष ना तो स्त्री को समझ सकता हैं और ना एक स्त्री पुरुष को, अगर इन दोनों को कोई समझ सकता है तो वह सिर्फ एक ही हैं और वह है किन्नर जिसे समाज निम्न निम्न नामों से पुकारती है...."।


ऐसे लोगों को समाज नौकरी देने के से हिचकती है,इतना ही नहीं बल्कि उसकी शक्ल देखने तक को राजी नहीं होते।


"ऐसी स्थिति में उसके पास एक ही रास्ता होता है पैरों में घुंघरू बांधकर , हाथों से तालियां बजाकर ला भैया दस रुपए दे दे कहना "।

उन्हें अधिकांशतः समाज में स्वतंत्र रूप से रहने की , स्कूलों में कॉलेजों में पढ़ने के लिए बहुत समस्याओं से लड़ना पड़ता है। दाखिला मिल जाने के बाद भी विद्यार्थी इनके साथ बैठकर पढ़ना तो दूर ,उस कक्षा में जाना भी पसंद नहीं करते ।


 " क्या किन्नर होना समाज के लिए अभिशाप है" ??

 इतना सब कुछ सहने के बाद भी पेट की भूख मिटाने के लिए दिन रात संघर्ष करती है फिर भी एक जून का सुख से रोटी नसीब नहीं होती और दूसरे दिन के बारे में सोचने में भी भय लगता हैं ।

और वह समाज से प्रश्न करती है

इस समाज में विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय के लोग रहते हैं और उसमें एक समुदाय किन्नर का भी होता हैं ,

जिसे कानूनी तौर पर स्वतंत्रता मिलने के बाद भी

इन्हें स्वतंत्र रूप से समाज में रहने का अधिकार नहीं मिलता ।

 समाज में उन्हें अनेक प्रकार के दंश झेलना पड़ता हैं।

एक दिन रीना को अपनी मां की याद आती है और उससे मिलने के लिए जाती है- " उसी समय समाज रूपी भीड़ से एक आवाज आती हैं कि ये वहीं किन्नर हैं जिसके पिता ने हीना को तलाक देकर दूसरी शादी कर ली ,

यह तो सर्वनाशी हैं जिसके जन्म होते ही पूरा हरा-भरा घर जलकर राख हो गया" ।

जब रीना घर पहुंचती हैं तब पता चलता है कि उसने जो सुना था वह सच है ।उसके पिता बिरजू ने हीना को इसलिए तलाक दे दिया कि उसने किन्नर को जन्म दिया था । हीना को अपने पति के द्वारा कही गई बातें याद आती हैं कि जा तू सिर्फ एक किन्नर को ही जन्म दे सकती हैं जिसे सोचकर हीना निराशा से हताशा की स्थिति में चली जाती हैं और एक दिन वह आत्महत्या कर लेती हैं ।यह सुनकर रीना की निगाहें आश्चर्य से भर जाती है

और अपने "हक और अस्तित्व "के लिए लड़तीऔर उसकी खोज में निकल पड़ती हैं

किन्नर समुदाय के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर "जोइता मंडल" 8 जुलाई 2017 को इस्लामपुर कोर्ट परिसर में न्यायाधीश की पद संभालने पहुंची । जो पूरे समाज को एक नया दिशा प्रदान करके अपने हक और अस्तित्व के लिए लड़ना सिखाया ।


















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