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Diya Jethwani

Inspirational

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Diya Jethwani

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हीरे की परख..

हीरे की परख..

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बहुत समय पहले की बात हैं... सर्दियों का समय था.. एक राजा का दरबार लगा हुआ था..। चूंकि सर्दियों का समय था इसलिए राजा ने अपना दरबार बाहर खुलीं हुई धूप में लगाया था..। सभी दरबारी.. सैनिक और राज्य में रहने वाले दरबार में बैठे थे..। राजा भी एक सिंहासन पर बैठा था..। वो अपने राज्य के लोगों की परेशानी को सुन रहा था..। काफी देर तक ऐसे ही सभा चल रहीं थीं..। तभी राजा के दरबार में एक शख्स आया और राजा से कहा:- राजा की जय हो... महाराज मैंने आपके शौर्य और साहस के बहुत से किस्से सुनें चुका हैं..। आपकी बुद्धिमत्ता के भी बहुत किस्से सुने हैं... आज मैं आपको परखने आया हूँ... अगर आप इजाजत दे तो मैं आपकी खिदमत में कुछ पेश करना चाहता हूँ..। 

राजा ने कहा:- कैसी परख.. पहले वो तो बताओ..। 

वो शख्स बोला:- महाराज मेरे पास दो चीजें हैं.. आपको सिर्फ उनमें से असली और नकली की पहचान करनी हैं..। आप चाहे तो अपने दरबार में से किसी की भी मदद ले सकते हैं..। 

राजा ने कहा :- ठीक हैं... पेश करो..। 

उस शख्स ने अपने झोले में से दो हूबहू दिखने वाले पदार्थ निकाले..। रंग.. रुप... सब कुछ दोनों वस्तुओं का बिल्कुल एक जैसा था..। 

उस शख्स ने एक टेबल मंगवाया और उस पर वो दोनों चीजें रख दी और कहा :- महाराज इन दोनों में से एक सच्चा हीरा हैं और दूसरा कांच हैं..। अब आपको हीरे की पहचान करनी हैं..। लेकिन शर्त ये हैं की अगर आपने गलत जवाब दिया तो हीरे के वजन के बराबर आपको मुझे स्वर्ण मुद्राएं देनी पड़ेगी...और अगर आपने सही पहचान कर ली तो वो हीरा मैं आपके राजकोष में जमा करवा दूंगा ..। मैं आपसे पहले बहुत से राज्यों में जा चुका हूँ... लेकिन कहीं भी कोई भी पहचान नहीं कर पाया..। 

राजा ने कुछ देर विचार किया फिर उन दोनों को बहुत गहन तरीके से देखा लेकिन राजा फर्क नहीं ज्ञात कर पाएं..। राजा ने अपने मंत्रियों और सभी दरबारियों से कहा.. लेकिन कोई भी इस कार्य को करने में सक्षम नहीं था..। राजा को स्वर्ण मुद्राओं की चिंता नहीं थीं... क्योंकि राजा के पास धन धान्य की कोई कमी नहीं थीं..। लेकिन राजा को अपने नाम... अपने मान का भय था..। राजा ने राज्य के सभी नागरिकों से कहा की क्या कोई इस कार्य को कर सकता हैं...? 

लेकिन कोई भी इस कार्य को करना नहीं चाहता था..। तभी राजा ने हार मानते हुए उस शख्स को स्वर्ण मुद्राएं देने का आह्वान किया...। 

तभी दरबार में से एक आवाज आई.. रुकिए महाराज..। 

सभी ने उस आवाज की तरफ़ देखा... एक अंधा आदमी था..। 

वो अंधा आदमी अपने स्थान पर खड़ा हुआ और बोला :- महाराज अगर आप इजाजत दे तो मैं कोशिश कर सकता हूँ..। 

ये सुनकर वहाँ बैठे सभी नागरिक और दरबारी जोर जोर से हंसने लगे..। वो सभी कहने लगे:- अब ये अंधा पहचान करेगा..। जिसको खुद को कुछ नहीं दिखता हैं वो असली नकली पहचान करेगा..। 


वो अंधा आदमी एक व्यक्ति के सहारे राजा के समक्ष आया और बोला :- महाराज अगर मैं जीत गया तो आपका मान और नाम बना रहेगा... वरना आप तो वैसे भी हार मान ही चुकें है... एक बार मुझे आजमाने में आपका कोई नुकसान तो हैं नहीं..। 

राजा ने उसकी बात सुनी और कहा :- ठीक हैं...। आओ..। 


एक दरबारी उस अंधे आदमी को उन दोनों चीजों के पास ले गया और उस अंधे आदमी ने बारी बारी से दोनों को अच्छे से छुआ.. और कुछ क्षणों में ही उसने कहा :- महाराज मेरे दाहिने तरफ़ जो हैं वो हीरा हैं और बाहिने तरफ़ जो हैं वो कांच हैं..। 


ऐसा सुन वो शख्स उस अंधे आदमी के पास आया और उनको नतमस्तक करते हुए कहा :- आप बिल्कुल सही हैं.... मुनिवर...आपने बिल्कुल सही पहचाना हैं..। ये हीरा मैं अभी इसी वक्त आपके राजकोष में देता हूँ...। ऐसा कहकर वो शख्स वहाँ से चला गया..। 


उसके जाने के बाद राजा ने उस अंधे आदमी से पुछा :- तुमने इतनी सरलता से बिना देखें पहचान कैसे कर ली..? 

वो अंधा आदमी बोला :- महाराज... मैंने दोनों को छूआ.. जो हीरा था वो इतनी तेज़ धूप में भी ठंडा था.. जबकि जो कांच था वो गर्म हो चुका था..। 

महाराज उसकी बुद्धिमत्ता से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस अंधे आदमी को बहुत सारा धन पुरस्कार स्वरूप भेंट किया..। 


कहानी का भावार्थ :- हम सभी भी कांच की भांति ही छोटी छोटी बातों से बहुत जल्दी गर्म हो जाते हैं... अर्थात गुस्सा हो जाते हैं.. और फिर गुस्से में हम अक्सर गलत कदम उठा लेते हैं..। हमें कांच की तरह नहीं बल्कि हीरे की तरह शीतल और ठंडा रहना चाहिए..। चाहे कितनी भी गर्मी पड़े.. अर्थात कितनी भी मुश्किलें आएं हमें शांत रहकर उनका समाधान करना चाहिए..। 


जय श्री राम...। 



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