हाथी के दाँत

हाथी के दाँत

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वृद्धाश्रम में सबकी आँखें नम थीं और मन भारी। मुग्धा की बातें मानों सबका हृदय चीर रही थीं।

"क्यों हमारे घर के बरगद इतने लाचार हैं ? हिंदुस्तान में वृद्धाश्रम की कल्पना ही मुझे परेशान कर जाती है। हमारे संस्कार हमें बुजुर्गों से जुड़ना सिखाते हैं, मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती कि मेरी माँ जैसी सास कहीं और जाकर रहें। आप सभी के लिए मैं हूँ, इस क्लब की सदस्याएँ हैं। आप सभी हमारे माँ-बाप के समान हैं, ये नंबर रखिए, हम सब एक आवाज पर हाज़िर हो जाएंगे।"

इन बातों पर तालियों से आश्रम गूंज उठा। वृद्धों के हाथ आशीष को उठ गए। घर आते वक्त आँख बंद किए मुग्धा कल के अखबार की कल्पना में खो गई।

'कितनी तस्वीरें लीं पत्रकारों ने।, घर आकर बैठी ही थी कि उसकी त्योरियाँ चढ़ गई।

"सुधा ओ सुधा। इस बुढ़िया को नींद की दवा नहीं दी अब तक। हज़ार बार कहा है कि मेरे घर आने के पहले इसे सुला दिया कर पर तेरी समझ में नहीं आता। जाने कितनी उम्र लेकर आई है बुढ़िया।"

मुग्धा का बड़बड़ाना जारी था।


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