हार जीत
हार जीत
"तुम ठीक तो हो न ?"
वह मुझसे पूछ रही थी।
मेरी वह इतनी पुरानी दोस्त इतने सालों के बाद मुझ से मिल रही थी।
इतना अर्सा बीत गया था।दसवी के बाद आज उम्र के इस पचास पार के पड़ाव पर मिलना और बातचीत के धागों के सिरों को पकड़ने की हमारी कोशिश बनती बिगड़ती जा रही थी।
इतने अरसे बाद हमारे दोनों के भी interest बदल से गए थे।मैं एक ऊँचे पद पर काम करने वाली एक प्रोफेशनल और वह एक हाउस वाइफ।
मेरा काम का दायरा,मेरा बातचीत में झलकता आत्मविश्वास,मेरे चीजों को deal करने के तरीके और भी कई सारी प्रोफेशनल बातें वह बड़े कुतूहल से देखती जा रही थी।और मैं यह सब उसकी नजरों में पढ़ रही थी।
उसके पति ने ही शायद मुझे फेस बुक पर ढूंढने में उसकी मदद की थी।फिर facebook पर friend request भेजा था।और फिर मिलने की बात करके वह मेरे ऑफिस में आ गयी।
वह एक खुशनुमा शाम थी। चार बजे के आसपास मैं अपने ऑफिस के काम मे बिजी थी।वह पूरी family के साथ आयी थी।उसके आने के बाद मैंने उसका बड़ी ही गर्मजोशी से वेलकम किया।
हम दोनो सवाल जवाब नुमा बातें कर रही थी।वह पति के बारे में और बच्चों के बारे में बड़े ही फक्र से बताने लगी।उसका बार बार अपने पति के बारे में बोलना,मेरे ऑफिस में उसकी बार बार इधर उधर जाती नज़रे और उसकी बातों के बीच झलकती वेदना जैसे सब कुछ बयाँ कर रही थी।
एक अच्छे से reputed college से professional डिग्री हासिल करने के बावजूद वह शादी के बाद घर परिवार मे ही सिमटकर रह गयी थी।
मेरे जहन में एक बात कौंध गयी।क्या कोई पति या कोई पुरुष घर परिवार में रम सकता है
professional डिग्री होने के बावजूद जैसे औरतें रमती है ?
नहीं, नहीं कभी नही।आपने भी तो लड़कियों को बचपन से ही तो गुड्डे गुड़ियों के खेल खेलते हुए देखा है न? शादी होने के बाद उनको घर परिवार की दुहाई दे कर गृहस्थी में रमाया जाता है......क्या मैं गलत कह रही हूँ,नही न?
