Prashant Subhashchandra Salunke

Drama

4.8  

Prashant Subhashchandra Salunke

Drama

हार गया इश्क़

हार गया इश्क़

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होटल के एक आलीशान हॉल में न्यू इअर पार्टी की रंगत जमी हुई थी। डी।जे। पर बज रहे संगीत के स्वर में सब मस्ती में झूम रहे थे। लेकिन इन सभी शोरशराबों से दूर एक कोने में बैठा आलोक मुड़ मुड़ कर अपनी बगलवाली मेज़ की ओर देख रहा था। आलोक के दिल की धड़कने तेज हो रही थी और उसके पीछे कारण था मेज के सामने बैठी अर्नवी। ‘अर्नवी’ जो उसका पहला प्यार थी। कॉलेज में उन दोनो के इश्क़ के किस्से मशहूर थे। मीठी यादों का एक झरना उसके ज़हन में बहने लगा। अर्नवी के साथ गुजारे हर लम्हे उसके तन बदन में हलचल सी मचाने लगे।

“अरे! आलोक तुम यहाँ?” मंदिर की घंटी जैसे मीठे स्वर से गहरी सोच में डूबे आलोक की तंद्रा टूटी। अपने सामने बला की खूबसूरत अर्नवी को देखकर उसका मुंह खुला का खुला रह गया।

अर्नवी हँसकर बोली, “अरे! ऐसे क्या देख रहे हो? मुझे भूल गये क्या?”

आलोक ने ठंडी आह भरते हुए कहा, “अर्नवी, मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ।“ और मन ही मन उसने सोचा, “काश! में तुम्हें भुला पाता।“

अर्नवी आलोक के सामने कुर्सी पर बैठते हुए बोली, “कब से आए हो यहाँ पर?”

आलोक बोला, “तकरीबन एक घंटे से।“

अर्नवी, “एक घंटे से यहाँ बैठे हो और मुझ पर नजर तक नहीं गई?”

आलोक बोला, “अर्नवी, मैंने तो तुम्हें आते ही देख लिया था। लेकिन...”

अर्नवी, “लेकिन... लोग क्या कहेंगे... समाज क्या सोचेगा यह सोचकर मेरे पास नहीं आए। सही कहा न?“

अर्नवी ने मानो आलोक की दु:खती नस दबा दी थी।

अर्नवी आगे बोली, “तो कैसी चल रही है लाइफ। घर पर सब कुशल मंगल है न?”

आलोक निराशा से बोला, “सब ठीक है।“

अर्नवी ने उसके स्वर के पीछे छिपे दर्द को महसूस किया, “भाभी कहाँ है? उन्हें साथ नहीं लाए?”

आलोक ने मायूसी से कहा, “मेरा डिवोर्स हो गया है।“

अर्नवी, “कब?”

आलोक, “दो साल पहले।“

अर्नवी, “पर क्यों?”

आलोक, “मेरी पत्नी अंजली आज़ाद खयालों की थी। उसे घर की चार दीवारों में क़ैद रहना कतई मंज़ूर न था। आए दिन हमारे बीच में लड़ाई झगड़ा होता रहता था। अनबन और रोज की तकरार से में तंग आ गया था। जिंदगी नर्क सी बन गई थी। उसे आज़ादी चाहिए थी सो एकदिन मैंने उसे वह दे दी।“

अर्नवी के कानों पर आलोक के पिताजी दीनानाथ ने कहे शब्द गूंजे, “क्या कहा? अनाथालय में पली बड़ी लड़की को तू इस घर की बहु बनाना चाहता है? जिसकी न माँ का पता है न बाप का ठिकाना उससे शादी करेगा!!! लोग क्या कहेंगे? समाज क्या कहेगा? सब थूकेंगे मुझ पर...”

आँख में आए आंसूओं को छुपाने के लिए अर्नवी ने अपना मुंह एक और फेर लिया।

कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा गई।

डी.जे. की आवाज़ मानो उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी।

आलोक ने मांगी हुई माफ़ी। अर्नवी ने की हुई मनाने की कोशिश। सब पुरानी यादें दोनों के ज़हन में उमड़ आई।

“अरे! अर्नवी, तुम यहां बैठी हो? चलो सब तुम्हारा उधर इंतजार कर रहे है।“ अर्नवी की सहेली अधीरा ने कही बातों से काल की गर्त में डूबे वह दोनों वर्तमान में आ गए।

आलोक ने सामने वाली मेज पर नजर करते हुए पूछा, “तुम्हारे पतिदेव भी आए है? कहां है वह?”

अर्नवी ने आँख में आए आंसूओं को पोंछते हुए कहा, “अब वह इस दुनिया में नहीं है।“

आलोक ने चकित होकर पूछा, “मतलब?”

अर्नवी ने जवाब दिया, “मेरी शादी एक ऐसे इंसान से हुई थी जिसे परिवार से ज्यादा शराब से प्यार था और एकदिन उनका वही प्यार उन्हें ले डूबा! लीवर खराब हो जाने की वजह से उनका देहांत हो गया।“

आलोक बोला, “ओह! माफ़ करना। मेरी वजह से खामखाँ तुम्हारे दिल को ठेस पहुँची। उनका देहांत कब हुआ?“

अर्नवी, “कुछ साल पहले ही वह चल बसे।”

दोनों की आँखों में आँसू थे।

दोनों के ज़हन में सवालों का सैलाब था।

दोनों के अतीत बिखरे पड़े हुए थे।

आलोक ने अर्नवी की और नजर भर कर देखा वह वैसी ही खूबसूरत दिखती थी जैसे की कॉलेज में हुआ करती थी।

“ठीक है, तो मैं चलती हूँ। वहां पर मेरी सहेलियाँ मेरा इंतजार कर रही है।“ अर्नवी ने अपनी जगह से उठते हुए कहा।

कुछ सोचकर आलोक ने कहा, “अर्नवी...

अर्नवी के पैर रुक गए। उसने पलटकर कहा, “क्या?”

एक गहरी सांस लेकर आलोक ने पूछा, “मुझ से शादी करोगी?”

अर्नवी ने चौंककर पूछा, “क्या कहा?”

आलोक ने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, “तुम मुझसे शादी करोगी?”

आलोक की कही बात सुन कर अर्नवी दंग सी रह गई। वह बोली, “आलोक, यह क्या बेतुकी बातें कर रहे हो? तुम्हें जरा सा भी ख्याल है की तुम क्या कह रहे हो?”

आलोक, “हां, मैं बेवकूफ़ था जो समाज के डर से तुम्हारे प्यार का स्वीकार न कर पाया। पर अब... अब... मैं तुमसे शादी करके गिला दूर करना चाहता हूँ। तुम्हारी मांग में मेरे नाम का सिंदूर भरना चाहता हूँ। मुझे कोई परवाह नहीं की यह समाज और उसमें रहते लोग क्या सोचेंगे। मुझे इस बात की कतई चिंता नहीं की मेरे परिवार वाले क्या कहेंगे। बस मुझे इतना पता है की मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ। जो ग़लती सालों पहले मुझ से हुई थी आज उसे सुधारना चाहता हूँ।“

अर्नवी ने गुस्से से कहा, “अब आलोक? अब!!! आज जब हम दोनों की ज़िंदगियाँ तबाह हो चुकी हैं, तब जाके तुम्हें इस बात का अहसास हुआ? यही बात अगर तुमने उस वक्त कही होती तो मैं तुम्हें प्यार से गले लगा लेती पर इस वक्त तुम्हारी कही इन्ही बातों से मुझे नफरत हो रही है। तब तुम्हें समाज का डर था और आज मुझे! मैं अविनाश की बेवा हूँ। उसके बेटे की माँ हूँ। तुमसे शादी करुँगी तो लोग मेरे बारे में क्या कहेंगे? मेरा बेटा मेरे बारे में क्या सोचेगा? माफ़ करना आलोक, पर जिस समाज के तुम मर्द होते हुए भी सामना नहीं कर पाए उसका सामना मैं औरत होते कैसे कर पाऊँगी? और समझो मैंने हिम्मत की भी तो क्या तुम अपने निर्णय पर डटे रह पाओगे? नहीं... इस बात पर मुझे ज़रा भी यकीन नहीं। क्योंकि मैंने तुम्हारी बुजदिली को भुगता है। अब मुझ में वह हिम्मत नहीं। मुझे माफ़ कर दो।“

आलोक धीरे से बोला, “लेकिन अर्नवी... सुनो तो...”

आलोक की तरफ ध्यान दिए बगैर अर्नवी चुपचाप वहां से निकल गई।

आलोक चिल्ला चिल्ला कर अर्नवी को वापस बुलाना चाहता था।

उसे मना कर प्यार से गले लगाना चाहता था।

लेकिन

‘लोग क्या कहेंगे?’

‘समाज क्या सोचेगा?’

यह सोचकर आलोक खामोशी से अपनी जगह पर बैठा रहा।

उसके दिल में उठा इश्क़ का सैलाब अंदर ही अंदर घुट कर मर गया।

आज फिर समाज और इश्क़ के टकराव में हार गया था इश्क़ ।



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