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Laxman Dawani

Abstract

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Laxman Dawani

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गज़ल

गज़ल

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ये कहा किस ने की हम दिवाने हुए

हाँ मगर उन से मिल कर बेगाने हुए


अब न चाहत है दिल में न आरजू

सपने वो सारे ही अब पुराने हुए


छोड़ आये बहुत पीछे वो मोड़ हम

जिस जगह पर कभी थे ठिकाने हुए


बज्में महबूब से उठ के क्या चल दिए

हर तरफ अपने ही बस फसाने हुए


आ रहीं याद बीती हुई बातें अब

जिन को भूले हुए तो जमाने हुए


हम जमीं और वो आसमाँ ही रहे

उम्र भर बस यही कुछ बहाने हुए


ज़िन्दगी अब तो दुश्वार लगने लगी

हर कदम मौत के ही ठिकाने हुए।


धड़कनें बनकर साँसों में जो बसते हैं

उन से मिल कर हमें तो जमाने हुए।


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