गुलाब
गुलाब
हाथों में गुलाबों का गुच्छा लिए वो मेट्रो स्टेशन पर खड़ी इधर-उधर देख रही थी। उसके होंठ किसी किताब में वर्षों से रखे गुलाब की पंखुड़ियों की मानिंद ज़र्द पड़ चुके थे। सर्द हवाएं उसके रूखे बालों को इस तरह उड़ा रहीं थीं, जैसे किसी तपती दोपहर में पीले पड़ चुके पत्तों में नईं जान डाल रही हों। मोटी डोरेदार आंखों में किसी की राह तकते हुए बेचैनी साफ़ नज़र आ रही थी। जो मेट्रो की सीढ़ियों से उतरते लोगों को देख रही थी। पर भीड़ थी कि चलती जा रही थी। बिना किसी की परवाह किए।
उसे शायद किसी का इंतज़ार था। कुछ घण्टों, महीनों या फिर सालों से। या नहीं भी... वो भीड़ में थोड़ा आगे बढ़ती, लेकिन अंजान दिखते चेहरे उसके कदम वापस खींचने पर मजबूर कर देते। वो जिसका इंतेज़ार कर रही थी वो अब तक उसे दिखा नहीं था। यूं भी कह सकते हैं कि उसे दिखा तो पर उतनी हिम्मत नहीं कर सकी आगे बढ़कर उसके पास जाने की।
सामने से आते एक लड़के को देख उसकी निगाहें ठहर गईं। अब मानों उस मेट्रो स्टेशन पर उन दोनों के सिवाय कोई और नहीं था। अभी थोड़ी देर पहले ही जो भीड़ बेतहाशा भाग रही थी, अचानक से कहीं ग़ायब हो गई थी। किसी जादू की तरह।
ज़र्द पड़ चुके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान बिखर गई थी। आंखों में एक अलग तरह की चमक और चेहरे पर तेज साफ़ झलक रहा था। मानों किसी सूख चुके तालाब में बरखा की पहली बूंद पड़ी हो।
सबकुछ थम सा गया था। सुबह के वक़्त देखे किसी सपने की तरह। एक खूबसूरत मीठा सपना।
शाम हो चली थी। दिन का उजाला शाम की आगोश में समा चुका था। जिस तरह कोई मोती सीप में छुप जाता है। भले ही स्ट्रीट लाइट जल गईं हों, लेकिन सड़क चांद की दूधिया रौशनी से गुलज़ार थी। उस अंधेरी रात में समूचा चांद ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ख़त्म हो चुके अरमानों में कोई उम्मीद की किरण नज़र आती हो।
लड़की थोड़ी सहमी हुई थी। लेकिन वो चाहकर भी अपने कदमों को उसकी ओर ले जाने से रोक नहीं पा रही थी। लड़के की निगाहें भी किसी को ढूंढ रही थीं। किसी के इंतेज़ार में थीं।
अचानक तेज़ी से बढ़ते हुए क़दम थम गए। जैसे ऊपर ब्रिज से गुज़रती हुई मेट्रों में अचानक से इमरजेंसी ब्रेक लगा दिए गए हों। चांद भी अब गायब हो गया था। अब सिर्फ़ खंभे की रौशनी ही सड़क पर पड़ रही थी। जनवरी महीने की ठंडी हवा अब लू के थपेड़ों जैसी लग रही थी।
लड़के ने किसी को गले लगाया था। शायद वो वही थी जिसके इंतेज़ार में वो लड़का इधर-उधर देख रहा था। उन दोनों के मिलने से साफ नजर आ रहा था कि वो काफ़ी समय बाद मिल रहे थे।
जो कदम अचानक से थम गए थे, अब वो पीछे हटते हुए दीवार तक जाकर सट गए थे। वो काफ़ी देर तक आसमान में निकले सितारों की भीड़ को ताकती रही । जब तक उसकी बेख्याली एक ज़ोर से धक्के और तेज़ आवाज़ से टूट न गई।
"सुबह से बहुत कम फूल ही बिके हैं और तू है कि यहां खड़ी आसमान ताक रही है। वो कपल खड़े हैं, जा उनको फूल बेच के आ।"
कुछ देर के लिए वो भूल गई थी कि उसके हाथ में जो गुलाब हैं उसको बेचना है उसे।
हालांकि उस लड़की का ख़्वाब पूरा हो चुका था। लड़के ने गुलाब ले लिया था। हां ये अलग बात है कि उस लड़की के हिस्से में प्यार के बदले उस गुलाब की क़ीमत आई थी।

