आरफ़ील Aarfeel

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चचा-मियां की शादी

चचा-मियां की शादी

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भोंपू चचा और मुश्ताक मियां में यूं तो कोई भी खसलत नहीं मिलती थी, लेकिन उन दोनों के पास कुछ एक सा था तो वो था बीवी के गुजरने का गम।


भोंपू चचा गांव गांव जाकर साइकिल पर बच्चों के खिलौने बेचते थे। उनकी साइकिल में एक भोंपू लगा होता, जो बच्चों के लिए इशारा होता था कि भोंपू चचा आ गए हैं खिलौने लेकर। शायद यही वजह होगी कि उनका नाम भोंपू चचा पड़ गया। उधर मुश्ताक मियां रिक्शा चलाते थे। हालांकि उन पर भी बुजुर्गी आनी शुरू हो गई थी लेकिन वो हमेशा नौजवानों में बैठते उठते थे और खुद को उन्ही के जैसा दिखाने की कोशिश में लगे रहते थे। 


भोंपू चचा बाहर ढाबे पर खाना खाकर दिन गुजार रहे थे जबकि मुश्ताक मियां खुद खाना बनाते थे। दोनों में एक चीज और मिलती थी वो थी नई बीवी की तलाश। यही वजह थी कि दोनों सामने मिलने पर सलाम दुआ तो कर लेते लेकिन अंदर ही अंदर दोनों एक दूसरे को अपना मुकाबिल मानते थे। कहीं भी किसी रिश्ते का पता चलता दोनों लग जाते अपनी अपनी दावेदारी में। मुहल्लें वालों को भी अपने अपने हक में करने की जद्दोजहद शुरू हो जाती। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों के बच्चे बाहर कमाते थे और वहीं रहने लगे थे। शादी का सुनते ही इनके बच्चे इनसे और दूरी बनाने लगते। यही वजह थी कि उन्हें मुहल्ले वालों में ही आस नजर आती थी।


एक रोज मुश्ताक मियां नहा धोकर अपना रिक्शा निकाल ही रहे थे कि उन्हें कुछ दूरी पर भोंपू चचा दिखाई दिए। जोकि लड्डन मिस्त्री से बातें कर रहे थे। यहां तक तो सब ठीक था। लेकिन भोंपू चचा की नज़र जैसे ही मुश्ताक मियां पर पड़ी वो लड्डन मिस्त्री को लेकर एक कोने में चले गए। यहीं पर मुश्ताक मियां का दिमाग पैंडल मारने लगा। समझ गए कि आखिर क्या बात हो सकती है। अब तो उन्होंने रिक्शा किनारे खड़ा किया और लग गए पता लगाने कि ये रिश्ता आया कहां से होगा। 


मुहल्ले में चंद लोग ही इन दोनों की शादी को लेकर संजीदा थे, बाकी सामने से तो अच्छे से मिलते लेकिन पीठ पीछे भोंपू चचा और मुश्ताक मियां के बीच इस जंग को देखना चाहते थे। ताकि वो इसमें अपने तफरीह का रास्ता निकाल सकें। यही वजह थी कि किसी एक के यहां रिश्ता आता तो दूसरे को आसानी से इस रिश्ते की तफ्सील पता चल जाती। मुश्ताक मियां को भी पता चल गई। 


फिर क्या था मुश्ताक मियां तैयार हुए और मुहल्ले के एक नौजवान को लेकर पहुंच गए उसी लड़की वाले के यहां रिश्ता लेकर। अपनी दावेदारी पेश करके मुश्ताक मियां अब मुहल्ले में सीना निकालकर ऐसे दाखिल हुए जैसे कोई बड़ी जंग जीत आए हो। उन्हे पूरा भरोसा था कि ये शादी तो उनसे ही होगी।


उधर ये बात जब भोंपू चचा को पता चली तो वो बड़े लाल ताल हुए। गुस्से में पहुंच गए मुश्ताक मियां के दरवाज़े। फिर क्या था बहस शुरू हो गई। मुहल्ले वालों की भी मुराद पूरी हो गई। लोग सुलह कराने के जरिए दोनों का मजा ले रहे थे। खैर कुछ देर बाद मुहल्ले के बुजुर्गों ने बीच बचाव कराया और मामला शांत कराया। लेकिन जाते जाते मुश्ताक मियां सीना चौड़ा करके बोले, 

"सुनो भोंपू जिसके अंदर काबिलियत होगी उसकी शादी होगी इससे।" 

ये बात सुनकर भोंपू चचा बोले तो कुछ नहीं लेकिन खून का घूंट पीकर वापस आ गए।


एक दो दिन गुजरने के बाद आखिर वो रिश्ता भोंपू चचा से तय हो गया। उन खातून की उम्र चचा से काफी कम थी। भोंपू चचा आज फूले नहीं समा रहे थे। उधर जब ये बात मुश्ताक मियां के कान में पड़ी तो उन्हें ऐसा लगा जैसा किसी ने सीसा पिगला के कान में डाल दिया हो। 


3 लोगों की मौजूदगी में निकाह हो गया। अब तो मुश्ताक मियां मुहल्ले में बहुत कम नजर आते। अलल सुबह ही अपना रिक्शा लेकर निकल जाते और फिर देर रात घर को आते। 


कुछ दिन बीत गए। अब भोंपू चचा की बेगम गुलफशां ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। बेचारे भोंपू चचा सारा दिन खिलौने बेचते, शाम में आते ही सारे पैसे बीवी को देने पड़ते। खाना भी खुद बनाते और कपड़े भी धोते। इतना तक तो ठीक था। अब जरा सी न नुकुर में बीवी का हाथ भी उठने लगा था। ये ऐसी खबर थी जो ज्यादा दिन घर की चारदीवारी में नहीं रुक सकी। मुहल्ले में ये खबर आग की तरह फैल गई कि भोंपू चचा बेगम से पिटते हैं। 


कई दिनों से बैकफुट पर चल रहे मुश्ताक मियां को ये खबर किसी च्वनप्राश सी ऊर्जा दे गई। अब तो मुश्ताक मियां शेखी बघारते हुए बताते कि यही वजह थी कि उन्होंने शादी से इंकार कर दिया था। वो ऐसे ही किसी से क्यों शादी कर लें, भई अपनी भी इज्जत है। 


उधर भोंपू चचा लाख परेशान होने के बाद भी बीवी को छोड़ने का सोच भी नहीं सकते थे। वो उन्हे कोर्ट कचहरी की धमकी देती थी। हालंकि एक रोज वो खुद इनके सारे पैसे और समान लेकर फुर्र हो गई। ये जब सुसराल पहुंचे जहां सिर्फ इनकी सास ही थी, उसने भी पल्ला झाड़ लिया कि मुझे नहीं पता वो कहां है। अब बेचारे सीधे साधे भोंपू चचा वापस आ गए। 


अब भोंपू चचा का मुहल्ले में दिखना कम हो गया। वो अलल सुबह जाते और देर रात आते। इधर मुश्ताक मियां पूरे मुहल्ले में घूम घूम कर बताते कि मैं हर किसी के लिए थोड़ी ना मरा जा रहा हूं। ना मेरी अभी कोई उम्र निकली जा रही। मैं तो खुद ही बना लेता हूं खाना। मेरी जिंदगी थोड़ी रुकी हुई है।


कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। अब एक बार फिर मुश्ताक मियां को पता चला कि भोंपू चचा की फिर से शादी है इतवार को। रिश्ता तय हो गया है। और ये रिश्ता किसी और ने नहीं बल्कि उनके ही पड़ोसी शाकिर ने लगवाया है। अब तो मुश्ताक मियां को बड़ा सदमा लगा। पहुंच गए शाकिर के घर। 


"आओ आओ मुश्ताक मियां। सब खैरियत?"

घुसते ही शाकिर बोले।

"आपको क्या करना हम जिएं या मरें।" बड़ी दर्द भरी आवाज़ में मुश्ताक मियां बोले। 

"अरे ऐसा क्यों बोल रहे? क्या हुआ?"

"क्या बताएं हम तो आपको अपना मानते थे लेकिन आप तो उस भोंपू के तरफदार निकले। उसका निकाह तय करा दिया। जबकि बगल में ही हम नजर नहीं आए।" कुर्सी खींचते हुए मुश्ताक मियां धम्म से बैठ गए।


अरे ऐसी बता नहीं है मुश्ताक मियां। आपने ही कहा था कि आपको अभी शादी की इतनी जल्दी नहीं। आप खुद खाना बना लेते हैं। खुश है अपनी जिंदगी में। जबकि उधर भोंपू चचा खाने पीने को तरस रहे थे। तो हमने सोचा उनके लिए सोचना चाहिए। 


ये बात सुनकर मुश्ताक मियां सन्नाटे में आ गए। अब उन्हें समझ नहीं आया कि शेखी बघारनी है या वाकई में अपना दर्द दिखाना है। इसी पशोपेश में वो वापस घर आ गए। खुद को कोसते हुए कि खा मा खा हीरों क्यों बनना था। इतना शेखी न दिखाई होती तो आज शादी हो गई होती। 


अब फिर से मुश्ताक मियां का मुहल्ले में दिखना कम हो गया। वो अलल सुबह जाते और देर रात वापस आते।



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