Aman Upadhyay

Romance

3.5  

Aman Upadhyay

Romance

गुज़रते हुए लम्हें!

गुज़रते हुए लम्हें!

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'पहचाना?'

'नहीं कौन?'

'पहले ये बता कैसी है तू?'

'ठीक हूँ।  पर बोल कौन। । । '

'वो छोड़, क्या बोला तूने तू ठीक है? मेरे साथ होती थी तो मस्त होती थी।  अब बस ठीक?'

'आह! डॉनल।  हाँ यार बस ठीक ही हूँ।  दो घंटे से मेंहदी लग रही थी।  अब एक घंटे से सुखा रहे हैं हम। ’

एक आह-सी हम भी भर के रह गये।  आवाज़ भारी करके अपने नये नंबर से फोन किया था हमने।  उसको बातों ही बातों में याद दिलाया कि हमारे साथ थी, तो वो मामूली सा ‘ठीक’ न होकर असाधारण तरीके की ‘मस्त’ हुआ करती थी।  शायद इसी बात से पहचान लिया था उसने हमको।

पिछले चार सालों से साथ थे हम।  मगर। । । आज। । । आज उसकी शादी है।

'कहाँ खो गया?'

'नहीं। । । कुछ नहीं, तू बता?'

'अबे चल।  हमको पता है अभी क्या एक्सप्रेशन है तेरा, डॉनल। '

एक कार्टून कॅरक्टर के नाम पर हमको बुलाती थी वो-’डॉनल्ड डक’।  और उसको छोटा कर, मेरे होठों के पास आ, जब भी वो ‘डॉनल’ कहके बुलाती, तो मानो इधर-उधर भटकता हुआ मन शाम के पक्षियों की तरह शांत हो के उड़ने लगता।  लगता कि बस अभी ही उसकी बाहों में कहीं बसेरा मिल जाऐ और हम उसमे उड़ते उड़ते खो जाऐं । कहती थी इस समय कोई तेरे चेहरे के भाव देख ले उसे तुझसे प्यार हो जाए।

हम कहीं उन्हीं यादों में खो गुम हो गये।  वापस आए तो वो हेलो-हेलो कर रही थी।

'चल कुछ काम है।  जाना है'

'भग जा!'

ऐसी ही आदत थी उसकी।  अक्सर रातों में लंबी बातों के दौर चला करते थे।  और आदतन, हम बीच ही में सो जाया करते।  पर तब भी वो कॉल बंद नहीं करती थी और फोन कहीं रख के अपना काम करने लगती।  टीवी देखती।  गाने गाती।  नाचती।  और न जाने क्या-क्या करती।  फिर वापस आ के कहती, डॉनल!

हमको तो पता नहीं चला कभी, पर कहती थी तू नींद में बातें करता है; इसीलिए नहीं बंद करते हम कॉल।  सुबह उठकर हम देखते तो याद ही न आता की क्या बात की रात भर।  जबकि फोन कहता की आपने सुबह चार बजे तक बातें की।

कहती थी तू नींद में बातें करता है।  तू नींद में सब कुछ सच बोलता है।  कुछ भी पूछो, तो एक बहुत ही प्यारी बच्चों की आवाज़ में तू बात करता है।  हम ठहरे छह फुट के।  वो पाँच तीन की।  लगता की अपने बारे में ही बोल रही होगी।  मानने को तैयार ही न होते कि हमारे जैसा गबरू जवान भी बच्चों सी बातें करता होगा।  खैर हम हँस के बात टाल दिया करते। फिर जब अपने मन की बात उसके मुँह से सुनता, तो लगता, इसको हमारे मन की कई परतों में छुपी, इतनी अंदर की बात पता कैसे चली?

मन को उड़ने की कुछ ज़्यादा ही छूट दे दी थी शायद हमने।  उड़ता-उड़ता सोचने लगा की आज उसकी शादी है।  क्या-क्या हो रहा होगा वहाँ?

एक बाप होगा कहीं जो हर संभव कोशिश कर रहा होगा की कोई कमी न रह जाए।  एक भाई होगा जो ख़ुद कुछ भी पहना हुआ होगा पर बहन का गज़रा तक खुद ला के दे रहा होगा।  एक माँ किसी कोने में कोई दिया जलाते-जलाते दो-तीन आँसू बहा रही होगी।  हर तरफ हलचल होगी।  हलवाई कुछ मसाला कम पड़ने पर रुष्ट हो गया होगा।  माली चौखट पे फूल लगाने के बाद सीढ़ियों को जानबूझ के सूना छोड़ गया होगा।

शाम ढल चुकी है।  पक्षी अपने बसेरे की तरफ चुपचाप उड़ने लगे हैं।  हम भी अपने बसेरे में खो जाना चाहते थे पर आज उसकी शादी है।

हम अपने परिवार वालों से छुपकर अपनी छत की मुंडेर पे तनहा बैठे हैं।  ऐसे कि मानो कोई शायर बारिश के इंतज़ार में दीवार के सहारे ही सो रहा हो।

मेरे मन की हर बात गहराई से जानने वाली लड़की थी वो।  हर बात पे हमसे लड़ने वाली लड़की।

बड़ी झील के नज़दीक चलते चलते चुपके से हाथ थामने वाली लड़की थी वो

आज उसकी शादी है।

हमको बाहों में भरने को अपनी एड़ी  पे खड़ी रहने वाली लड़की थी वो।

हमको बाहों में भरने को अपनी एड़ी  पे बहुत देर तक खड़ी रहने वाली लड़की थी वो।

हर बार गुस्सा हो के बहुत जल्दी मान जाने वाली लड़की।

दिन रात बात करने की क्षमता रखने वाली लड़की।  आज उसी लड़की की शादी है।

अपने होठों से मेरी गर्दन पे हवा के बुलबुले बनाने वाली लड़की थी वो।

केवल मेरी सफेद शर्ट पहन कर पूरे कमरे में उछल कूद करने वाली लड़की थी वो।  उसके कानो को होठों से छूने पर सिहर जाने वाली लड़की थी वो।  मेरे 'ठीक से जाना' कहे बिना न जाने वाली लड़की।

आज उसकी शादी है।

 

हमसे!

 


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