गुड़िया
गुड़िया
हाथ में गुड़िया देखकर उसको अपनी बेटी मुनिया का स्मरण हो आया। आज गुड़िया देखकर मुनिया बड़ खुश होगी। कब से जिद्द किये जा रही थी-पापा मेरे लिए गुड़िया लाना।
करीब-करीब सभी सामान इकट्ठा कर लिया था उन दोनों ने। छोटी मोटी चोरी कर ही वे दोनों अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। दिखने में पहलवान जैसी कदकाठी वाला वह चोर अचानक ठिठक गया।और मरियल से दिखने वाले अपने साथी चोर से बोल पडा-"रामू देख मुनिया का फोटू।"
"हां दद्दा है तो मुनिया जैसी! मुनिया को भी जब ऐसी ड्रैस पहनाओगे न! तो मुनिया भी ऐसी ही लगेगी"।
"मुनिया जैसी नहीं! मुनिया ही है रे! बिल्कुल परी सी लग रही है"।
अचानक वह ठिठक गया। उसके मन में अनेकानेक विचार कौंधने लगे। इस घर के मालिक ने कितनी मेहनत मजूरी की होगी..... कितनी जी हुजूरी की होगी... कितना पसीना बहाया होगा... तब जाकर इतना सा सामान जोड़ पाया होगा वह और जब ये गुड़िया इस बच्ची से छिन जायेगी तब क्या हाल होगा इस परी का... कितना रोयेगी वह... कितना तडपेगी वह... न न न.... मैं ऐसा कतई नहीं होने दूंगा। "
"अरे रामू सुन! जो सामान जहां था वैसे ही संभाल कर रख दे रे! "
"दद्दा क्या कह रहे हो ये तुम? "दूसरा चोर जो गठरी बांधने में मशगूल था बोल पडा।
"मैं जो कह रहा हूं कर वर्ना....! "
"क्या बात कर रहे हो दद्दा? तुम नहीं चाहते मुनिया भी ऐसी ही परी लगे जैसे ये दिख रही। तुम नहीं चाहते हम भी कुछ अच्छा खायें। तुम नहीं चाहते हम भी कुछ अच्छा पहनें। बावरे न बनो दद्दा!"
जैसा मैं कह रहा वैसा कर....! "
"मैं जा रहा हूं। तुम्हें जो करना है करो!"दूसरा चोर सामान छोड़ तुनक कर पांव पटकता हुआ रफूचक्कर हो गया।
उसकी दृष्टि उस तस्वीर से हट ही नहीं रही थी। साथी के पदचाप सुन हडबडा कर उसने अपने आपको संभाला। वह गठरी खोल कर सामान को जल्दी जल्दी करीने से लगाने लगा।
लौटते समय उसके पांव भारी अवश्य थे। लेकिन उसे लगा जैसे वह उड रहा है स्वच्छंद गगन में। उसके अधरों पर थी गजब की एक मुस्कान और चेहरे पर चमक !
