गरम चाय
गरम चाय
ट्रेन में अपर बर्थ पर एक भाई साहब चद्दर तान के मोबाइल से अपनी साली से बतिया रहे हैं... साइड लोअर सीट पर उनकी धर्मपत्नी सो रही हैं... पत्नी उम्मीद से हैं और उनके बगल में तीन-चार साल का भूतकाल सोया हुआ है..!
भाई साहब को लग रहा है कि पत्नी अभी तक सोई हुई है और पत्नी उनका यह भ्रम बने रहने दे रही है...! शायद फोन पर साली ने 'ठंड कैसी है' जैसा ख़तरनाक प्रश्न पूछा होगा और भाई साहब ने 'साली आधी घरवाली' तर्क के साथ उसे यह बताया कि 'वे ठंडे पड़े हैं.. जीजा को गरम करने की जिम्मेदारी साली की है...!'
जब भाई साहब ने यह उष्णकटिबंधीय बात कही तो शायद फोन पर किसी पुरुष के हँसने की आवाज़ आई... भाई साहब ने उर्दू साहित्य में कदम-कदम पर मिलने वाले 'रक़ीब' का सरलीकृत सम्बोधन 'दुश्मन' कहकर अपने साढू भाई को 'राम-राम' की... और चूँकि अब साली साहिबा के आसपास उनके पतिदेव आ चुके थे तो भाई साहब ने बताया कि नेटवर्क की समस्या है, आवाज़ कट रही है...!
वार्तालाप करने के बाद भाई ने जब नीचे झाँक कर देखा तो उनकी श्रीमती जी उनकी तरफ़ उसी निगाह से देख रही थीं जिस तरह से नेता जी के झूठे वादों पर क्रोधाग्नि में जल रहे वोटर उन्हें कातर दृष्टि से देखते हैं...! बगल में लेटा बेटा भी उठ चुका है... उन्होंने बेेेेटे को धमकाया -
''स्वेटर पहन ले नहीं तो बाप के जैसे तू भी गरमी माँगता फिरेगा...!''
बेटा इस बाउंसर को समझ नहीं पाया...! उधर भाई साहब को अंदाजा लग गया कि मामला गड़बड़ हो चुका है... चुपचाप नीचे उतरे... कुछ देर बाद चायवाला आया तो उन्होंने दबी ज़बान में श्रीमती जी से पूछा- 'चाय पियोगी जानेमन ?'
वो बमक गईं- 'दुनिया भर की ठंड तुम्हें लग रही है.. तुम्हीं पीयो... पीयो ही क्यों ? नहा लो गरम चाय से...!'
यह कहकर वे बेेटे को स्वेटर पहनाने लगीं... चायवाला एक कप चाय निकालकर हाथ में लिए देर तक खड़ा रहा.. फ़िर बड़बड़ाते हुए चला गया- 'जब लेना नहीं होता तो निकलवा क्यों लेते हैं लोग चाय...?'
