गगणयान

गगणयान

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२०२२ का जनवरी का महीना था । सुबह ९ बजे का वक़्त था । मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था । में इसरो के अनुसन्धान केंद्र के एक कमरे में अपने मेडिकल टेस्ट के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा था । असल में मैं एन डी ए में सेलेक्ट होने के बाद दो साल की ट्रेनिंग के लिए इसरो आ गया था और मिलिट्री ट्रेनिंग के साथ साथ मेरी विज्ञान की ट्रेनिंग भी चल रही थी ।


इसरो ने दो लोगों को गगणयान के लिए चुना था उनमे से एक मैं था और दूसरी एक लड़की थी । उस दिन हम दोनों का आखरी मेडिकल टेस्ट था । अगले ही दिन हमें गगणयान में चन्द्रमा की तरफ जाना था । पिछले कुछ महीनों से हमारी सख्त ट्रेनिंग चल रही थी ।


कुछ देर बाद जब मैं अंदर गया तो लड़की का टेस्ट पहले ही हो चुका था । मेरा टेस्ट भी जल्दी पूरा हो गया और दोनों को पास कर दिया गया । तभी वहां पर इसरो के चीफ आये और उन्होंने हम दोनों का अभिवादन किया और कहा कि ''गगणयान की सफलता अब तुम दोनों पर निर्भर करती है , गलती की जरा भी गुंजाईश नहीं है ''। उनके मन में डेढ़ साल पहले चन्द्रयान के विक्रम लैंडर के क्रैश का दर्द साफ़ झलक रहा था । उन्होंने हमसे इसका जिक्र भी किया । हम दोनों ने अपनी तरफ से पूरा आश्वासन दिया और अपने अपने चैम्बर में चले गए ।


उस रात मुझे नींद थोड़ी कम आई और जब आई तो सपना आया कि गगणयान अपने ऑर्बिट से भटक गया और हम किसी अनजान ग्रह पर पहुँच गए हैं । हमारे यान के पास कुछ एलियंस हैं । में यान से बाहर जा ही रहा था कि तभी मेरी नींद टूट गयी । ये सब उस चिंता के कारण था जो इतने बड़े मिशन से पहले होना स्वाभाविक थी ।


अगले दिन हम गगणयान में बैठे थे । हम अपने घर वालों से बहुत दूर बैठे थे पर हमें पता था कि सब हमें लाइव देख रहे हैं क्योंकि गगणयान के प्रक्षेपण का सीधा प्रसारण हो रहा था सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में । इसरो के सारे वैज्ञानिक भी बहुत खुश थे पर उनके मुख पर चिंता के भाव भी साफ़ झलक रहे थे ।


फिर वो वक़्त भी आ गया जब काउंटडाउन शुरू हो गया और गगणयान धरती की सतह से ऊपर उठ गया । हम ऊपर से देख रहे थे के धरती छोटी होती जा रही है और आखिर में वो एक नीले गोले के बराबर रह गयी थी । कुछ देर बाद हम धरती के वातावरण से बाहर अंतरिक्ष में पहुँच गए । यान में हम दोनों के सिवा कम्प्यूटर्स थे और विक्रम लैंडर था जिसमें बैठ कर हमें चाँद की सतह पर उतरना था । इस बार भी लैंडर को विक्रम नाम दिया गया था ।


क्योंकि हमारे पास चंद्रमाँ तक पहुँचने के लिए २० दिन थे और कुछ ज्यादा काम भी नहीं था तो हम उपकरणों पर नज़र रखते हुए ढेर सारी बातें करते थे ।

ये भी सोचते थे के चाँद पर पहुंच कर हमें कैसा लगेगा और वहां पहुँचने वाले हम पहले भारतीय होंगे ।


हम दोनों एक दुसरे को पसंद भी करने लगे थे और अपनी आगे की जिंदगी के बारे में भी सोचने लगे थे पर उस वक़्त सबसे ज्यादा जरूरी इस मिशन का सफल होना था और हम नहीं चाहते थे कि हम अपने लक्ष्य से थोड़ा सा भी भटकें ।


वो दिन भी आ गया जब गगणयान चाँद की ऑर्बिट में स्थापित हो गया । अब हमें विक्रम लैंडर में बैठ कर चाँद की सतह पर उतरना था । एक एक मिनट भारी पड़ रहा था । आखिर तीन घंटे बाद हम चाँद की सतह पर थे । हम मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे और इसरो के जो लोग हमारे कांटेक्ट में थे हम उनकी तालिओं की आवाज भी सुन सकते थे । मैंने लेडीज फर्स्ट कह कर अपनी साथी को पहले उतरने दिया । उस ने भारत का झंडा हाथ में ले कर पहला कदम चाँद पर रखा । मैं भी उसके पीछे पीछे उतर गया और फिर हम ने तिरंगे को वहां स्थापित किया और जय हिन्द के साथ सलाम किया ।


लैंडर में तो नकली वायुमंडल के कारण हमें कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं हो रही थी पर चाँद पर वायुमंडन न होने के कारन हमें एक तो ऑक्सीजन मास्क पहनने पड़ रहे थे दूसरा ग्रुत्वकर्षण कम होने के कारन हम मानो कूद रहे थे । चलना काफी मुश्किल हो रहा था । देखने में चाँद की सतह पहाड़ों और बड़े बड़े गढ्ढों से भरी हुई थी । हमने जल्दी से सतह से और ड्रिल करके सतह के भीतर से कुछ सैंपल लिए और लैंडर के अंदर आ गए ।


अभी तक हम चाँद के उस भाग में थे जो सूरज की तरफ रहता है और जिसमें रौशनी होती है । अब हमें चाँद के उस भाग में जाना था जो सूरज की दूसरी तरफ होता है और जहाँ हर वक़्त अँधेरा रहता है । उस भाग में अभी तक कोई साइंटिस्ट कभी नहीं गया था । जब हम उस हिस्से में पहुंचे तो वहां तूफ़ान सा आया हुआ था. । हमने जल्दी से बहार निकल कर कुछ सैंपल लिए और लैंडर में आकर बैठ गए । वहां की चट्टानें ऐसे लग रहीं थीं जैसे बर्फ की बनी हों । तभी एक चट्टान हमारे लैंडर से टकराई । हमें लगा शायद हम अब यहाँ से निकल नहीं पाएंगे पर किस्मत से लैंडर ने हमें गगणयान तक पहुंचा ही दिया ।


गगणयान में आकर जब हमने मिशन सफल होने की बात इसरो में बताई तो सब तरफ ख़ुशी की एक लहर सी फ़ैल गयी । अब गगणयान पृथ्वी की और चल पड़ा । क्योंकि हमारा अभियान अब सफल हो चुका था , अब हमारे पास भी काफी दिन थे आगे की जिंदगी के बारे में सोचने के लिए । हमने घर पहुंचकर शादी करने का प्लान बना लिया था ।


जब हम धरती पर पहुंचे तो हमारा स्वागत ऐसे किया गया जैसे हम कोई जंग जीत कर आ रहे हों । बहुत दिनों तक पूरे देश में जश्न का माहौल बना रहा । हमने न जाने कितने इंटरव्यू दिए । हमारे बड़े बड़े होर्डिंग्स चौराहों पर लग गए । कुछ दिन बाद तो हमारी शकल और नाम के खिलोने बाजार में बिकने लगे ।


इसरो को भी एक बहुत बड़ी सफलता मिल गयी थी और अब उसका दर्जा भी नासा के बराबर का हो गया था । भारत की इस सफलता पर सभी देश बधाई दे रहे थे और भारत एक नयी शक्ति की तरह उभर रहा था । अब इसरो और नासा एक जॉइंट प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे जिसमें की पांच लोगों को मंगल ग्रह पर भेजने का प्लान था ।


हम दोनों ने शादी कर ली थी । कुछ महीनों बाद एक दिन हमें इसरो से फ़ोन आया की मंगल मिशन के लिए भी भारत से हम दोनों को चुन लिया गया है । इस दूसरे रोमांचक मिशन के लिए अब हमने तैयारी शुरू कर दी है और उम्मीद है कि हम अगले साल इस मिशन को भी पूरा करके आप सब लोगों को खुशखबरी देंगे ।




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