गेंदारानी

गेंदारानी

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हम रोज की तरह बरांडे में बैठकर सड़क किनारे बनते हुये मकान को देख रहे थे।

पुरूष और महिला मजदूर दोनों काम कर रहे थे पर हमको एक महिला मजदूर ने मन मोह लिया। सांवला सा रंग नीला सलवार कुरता कमर में कस कर बंधी हुई ओड़नी। बालों में बड़ा सा गेंदे का फूल।

दोपहर को खाने की छुटटी हुई तो कागज में रोटी बांधकर पानी की तलाश में आ गयी हमारे पास, बोली, मेम दीदी पानी मिलेगा हमें ?

हमने कहा- काहे नहीं।

हम थोड़ी सी मिठाई, दाल चावल और पानी ले आये।

वह देखकर खुश हो गयी और खाने बैठ गयी। उसकी खुशी से समझ आ रहा था कि उसको भूख लगी है। हमने नाम पूछा तो बोली- गेंदा रानी।

फिर रोज आने लगी हमरो भी उसका रोज इंतजार रहता था। पता चला चार बाल गोपालों की मां है, पति भाग गया है।

कुछ दिन बीते, एक दिन देखें की लोग उसको मारपीट कर भगा रहे हैं। हम जब तक पहुँचते तब तक जा चुकी थी। समय बीत रहा था, हमारा मन नहीं लगता था।

एक दिन उसकी सहेलियों से पता लेकर पहुँच गये। सवेरे का समय था। अपने बालगोपालों को तैयार कर विद्यालय भेज रही थी। उसने हमको नहीं देखा था। पीछे मुड़ी तो हमको देखकर चौंक गयी और खुशी से हँसने लगी।

बैठाया, पानी पिलाया। हमने पूछा- उस दिन की घटना के बारे में तो वह बोली- ठेकेदार सोना चाह रहा था हमारे साथ।

हमने खींचकर चाँटा मारा और थूक दिया। बस हमको मारपीट कर काम से निकाल दिया गया। हमको ऐसी रोटी नहीं चाहिये। अपने बाल गोपालों को जहर देना पंसद करूँगी।हमने उसको गले लगाकर कहा- सलाम करते हैं तेरे हौसले को।


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