फ़िक्र वाला प्यार
फ़िक्र वाला प्यार
"मैं तो ऐसे ही करूंगी और मुझसे ऐसे ही होगा। मुझे सुनाने की जरूरत नहीं हैं।" ना जाने क्यों लेकिन एक लाइन में सब कुछ वो छुपा था जो मुझे बदलने के लिए काफी था। आखिर मेरी गलती भी तो क्या थी सिर्फ इतनी की मुझे उसकी खैरियत का हाल बताया नहीं गया था जो मुझे बुरा लगा। अब अगर किसी की फ़िक्र हो तो उसका हाल तो जानना जरूरी ही होता हैं। अगर फ़िक्र को प्यार का नाम दूँ तो शायद कुछ हद सही भी होगा। क्यों की जब तक फ़िक्र नहीं हैं तब तक प्यार नहीं हैं। जिससे प्यार नहीं होता हैं उसकी फ़िक्र कहाँ हमें रहती हैं यूं तो सड़कों पर सैकड़ों लोग चलते रहते हैं मैंने कभी किसी गैर को मुझसे बात करने के लिए नहीं बोला। खेर मैंने तो किसी परिचित को भी बात करने का नहीं बोला। क्यों की मेरी जिंदगी की परिधियाँ तुम तक ही तो सीमित हो गयी थी। पूरे दिन में किसी से बात हो तो सिर्फ तुमसे हो। और ऐसा 1 2 दिन से नहीं कितने ही महीनों से चल रहा था। लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि मैं किसी के लिए उतना भी जरूरी नहीं हूँ जितनी वो मेरे लिए जरूरी हैं। जब सोचा तो पाया कि मैंने किसी को इतना जरूरी समझ लिया था जितना शायद उसको भी अच्छा नहीं लगा। तभी उसके शब्दों में परेशानी की महक आ रही थी। शायद मेरी बातों से वो अब परेशान होने लगी हैं । एक ऐसी भी घड़ी उसकी जिंदगी में थी जब वो किसी को चाहती थी और वो उसका हाल भी 2-4 दिनों में नहीं पूछा करता था। और एक लम्हा यह भी हैं जब कोई सिर्फ उसका हाल जानने के लिए लड़ता है और उसकी भाषा में बोलूँ तो सुनाता हैं। दोनों ही वजहों से वो खुश नहीं थी। यूं तो मेरी जिंदगी में बहुत से सपने हैं लेकिन रिश्तों को लेकर एक ऐसा सपना हैं जो शायद इस जन्म में पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा हैं मेरा सपना हैं कि मेरी जिंदगी में एक ऐसा रिश्ता हो जिसे मेरी उतनी ही फ़िक्र हो जितनी मुझे उसकी हो। जिसके लिए मेरा फ़िक्र करना परेशानी का सबब नहीं बन जाएं। हमेशा से ऐसे रिश्ते की तलाश रहती हैं। सैकड़ो रिश्ते बनाने के बाद भी उस एक रिश्ते की कमी जीवन को बेरंग अक्सर बना दिया करती हैं। सच बताऊँ तो मेरा जीने का दायरा ही उस तक सीमित हो गया था। इतनी ज्यादा अपेक्षा कर ली थी जो शायद उससे सहन नहीं हुई। मैने कभी सोचा भी नहीं था कि उसको भी मेरी कोई बात इतनी बुरी लग सकती हैं जिससे वो मेरे से परेशान हो सकती है। मैंने बस यही सोचा था कि मैं आखिर कर क्यों रहा हूँ यह सब कुछ सिर्फ इसलिए ही न की मेरी उससे बात नहीं हुई। और बात करना तो उसको भी अच्छा लगता है तो फिर इसमें मैं उसको कुछ बोलूँ तो उसको शायद बुरा नहीं लगेगा। लेकिन ग़लतफहमी मैंने पाली थी जिसका अहसास कल हुआ।
उसने कहा कि वो कहीं जाती है तो मैं ऐसा ही करता हूँ लेकिन उसने यह नहीं सोचा की जब कोई दूर जाता है तभी तो उसकी याद आया करती हैं तभी तो उसके बारे में चिंता हुआ करती हैं। खैर शायद ग़लती मेरी ही थी की जब भी वो कहीं जाती हैं यूं तो मैं उसके साथ नहीं रहता हूँ लेकिन एक परछाईं की तरह हमेशा उसके साथ रहता हूँ। अगर वो कहीं जाती है तो मुझे भी ऐसा लगता है कि मैं भी कहीं गया हुआ हूं। उस दिन मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता । हमेशा मन में लगता रहता है कि वो कैसी होगी उसको कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई होगी। बस इसलिए लिए बार बार हाल जानने की इच्छा होती हैं। काहिर नासमझ तो मैं हूँ जो किसी के इतना पास में आ गया। कभी भी किसी के साथ धोखा करने की नहीं सोचता। हमेशा यही सोचता हूँ जो हैं वो सिर्फ और सिर्फ मेरा हैं लेकिन जो मेरा हैं वो उतना मेरा नहीं हैं जितना मुझे लगता हैं।

