एयर कूलर : मेक इन इंडिया
एयर कूलर : मेक इन इंडिया
नमस्ते भाभी। कैसी हो।"
" नमस्ते भई नमस्ते। आज इतने दिनों बाद तुम्हें भाभी की याद आई।" कुसुम ने हंसते हुए कहा।
" लो भाभी पहले मिठाई खाओ। फिर जी भर कर उलाहना देना।" सतीश ने कहा।
अरे भाई किस चीज की मिठाई खिलाई जा रही है । अपनी भाभी को।" कुसुम के पति ने बाहर आते हुए पूछा।
" भाई मेरा वो कूलर वाला प्रोजेक्ट पूरा हो गया है।"
" अरे वाह ।ये तो बहुत अच्छी बात है।" कुसुम के पति राजेश ने कहा।
" इतना ही नहीं आपने जो मुझे ' मेक इन इंडिया' के न्यू इंवेंशन ऑफ द इयर अवॉर्ड के बारे में बताया था। तो मैंने अपने इस कूलर को उस कार्यक्रम में एंट्री करा दी थी। आप सब के आशीर्वाद से मेरा ये कूलर राज्य सरकार ने पुरस्कार हेतु चुन लिया है।
यह तो बहुत बड़ी उपलब्धि है, सतीश। सच तुमने तो अपनी कल्पना को हकीकत में बदल कर दिखा दिया।" राजेश ने सतीश की पीठ थपथपाई ।
"दोनों भाई मुझे भी कुछ बताओगे या मुझे भूल गए।" कुसुम बनावटी गुस्से से बोली। उसकी बातें सुनकर दोनों हंसने लगे।
"भाभी आप को कैसे भूल सकता हूं। आप दोनों की प्ररेणा व समय समय पर मुझे सही सलाह देने के कारण ही तो आज मैं यहां तक पहुंचा हूं। भाभी मैं एक ऐसे कूलर पर काम कर रहा था। जो कम पानी व कम बिजली खपत में अधिक ठंडक दे सके। साथ ही बंद होने के बाद भी ए. सी. की तरह एक दो घंटे कमरा ठंडा रख सके। आपको तो पता ही है कि हमारे देश में गर्मियों में बिजली व पानी की किल्लत हो जाती है। ए. सी. का खर्चा गरीब लोगों की पहुंच से बाहर है और उसमें बिजली भी ज्यादा खर्च होती है। अपने राजस्थान के गांवों में तो मैंने लोगों को सबसे ज्यादा परेशान होते देखा है क्योंकि वहां तो वैसे ही पानी की समस्या रहती है। इसलिए मैंने ये कूलर बनाने की सोची। इसके लिए मैं लगभग दो सालों से तैयारी कर रहा था और सरकार की तरफ से लगने वाली वर्कशॉप भी अटेंड करता था। कई बार निराश भी हुआ फिर गांव के वो दिन और मां का लाचार चेहरा जैसे ही याद आता फिर हिम्मत कर जुट जाता।अब जाकर मेरा यह सपना हकीकत में बदल पाया है। भाई ने ही मुझे सरकार के' मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के बारे में बताया था और लोन दिलवाने में भी मदद की। सच भाभी आप लोगों के सहयोग से ही आज यहां तक पहुंचा हूं नहीं तो इस बेसहारा का तो यहां कौन था।"
" चल पगले। कैसी बातें करता है।ये सब तो तेरी दिन रात की मेहनत का फल है।" कुसुम मुस्कुराते हुए बोली।
"अच्छा भाई अब चलूं। रविवार को आप दोनों को मेरे साथ समारोह में शामिल होना है। तैयार रहना।"
उसके जाने के बाद राजेश तो अंदर जा कर लेट गए। किन्तु कुसुम को तो मानो अब भी यक़ीन नहीं हो रहा था। सतीश , राजेश के मामा का लड़का है।इनका ननिहाल राजस्थान में है। उसे आज भी याद है जब वह शादी करके आई थी तो उस समय सतीश कोई १५ - १६ साल का था और अक्सर उसकी सास व पति के साथ बैठ कर खूब काल्पनिक बातें करता। काम करते हुए जब कभी उसकी बातें सुनती तो हंसे बगैर नहीं रह पाती थी। राजेश ने बताया था कि ये छह भाई बहन है। काफ़ी गरीबी है वहां। मामा ने किसी तरह दो लड़के व दो लड़कियों की शादी कर दी। इसका बड़ा भाई भी यहीं रहता है। लेकिन ज्यादा आता जाता नहीं है। बीमारी के कारण मामाजी कुछ महीनों पहले चल बसे। तब से मामी भी कुछ बीमार रहने लगी है। बड़ी बहू लड़ कर यहां पति के पास आ गई और दूसरा बेटा बहू हमेशा खर्चे का रोना रो घर में लड़ाई झगड़ा रखते है। यह बात इसके बाल मन पर लग गई और यह पढ़ाई लिखाई छोड़ काम धंधे की तलाश में यहां आ गया। लेकिन यहां बड़ी भाभी उसे जीने नहीं देती। इसलिए अपना दिल हल्का करने यहां आ जाता है। अब जल्दी से जल्दी कुछ सीख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है ताकि मां का सहारा बन सके। मुझे जब ये सब पता चला तो अपने पर थोड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई कि मै बिना कुछ समझे इस जज़्बाती लड़के का मजाक उड़ा रही थी।
सतीश का रुझान शुरू से ही बिजली का काम सीखने में था। इसलिए इन्होंने एक जानकार इलेक्ट्रिशयन के पास इसे काम सीखने भेज दिया। अपनी लगन से इसने एक साल के भीतर ही काफी काम सीख लिया। थोड़े बहुत पैसे भी अब मिलने लगे थे। पर आंखों में सपने अब भी बड़े थे। हमेशा यही कहता था। मौका मिल ने दो भाभी एक दिन कुछ बड़ा करके
दिखलाऊंगा। तब वो हमेशा उसका हौसला बढ़ाती।
एक दिन वो आया तो बहुत उदास था। इनके जोर देने पर बोला कि भाई मैं यहां कोई छोटा मोटा मेकैनिक तो नहीं बनने आया था। ये तो मेरा सपना ना था।आगे कैसे बढूं, कुछ समझ नहीं आ रहा।
तब कुसुम ने ही उसे ओपन स्कूल से अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी थी साथ ही उसके बाद आई. टी. आई. से बिजली मेकैनिक का डिप्लोमा कोर्स कर ने के बारे में भी बताया था।
ये सलाह उसे रास आ गई और उसने कुछ ही वर्षों में दोनों कर दिखाया। इस डिप्लोमा के कारण जल्द ही उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई। दिन में नौकरी करता और उसके बाद अपनी छोटी सी बिजली की वर्कशॉप पर काम करता। अपनी दिन रात की मेहनत के बल पर उसने एक छोटा सा मकान भी खरीद लिया था। मां और छोटे भाई को अपने पास बुला कर उसकी पढ़ाई लिखाई फिर से शुरू करवाई और अपना घर भी बसा लिया था।
याद करते हुए उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। गांव से आए उस छोटे से लड़के ने अपने जुनून, मेहनत व प्रबल इच्छा शक्ति के दम पर अपनी कल्पना को हकीकत का जामा पहना, सफलता की एक नई इबारत लिख दी थी।
दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना पढ़कर इस विषय में अपने अमूल्य विचार जरूर दें।